लखनऊ:- आधुनिकता की इस दौड़ में आगे निकलते हुए हम शायद अपना अस्तित्व भूलते जा रहे हैं, चाँद पर पहुँचने की होड़ में हम अपनी बुनियादी चीज़ों को भी महत्व देना भूल रहे हैं. कुछ ऐसी ही शिकायत है लखनऊ में आज ज़िंदगी जीने की जद्दोजहद करने वाले पथरकटो की हम नवाबोँ से |
किसी ज़माने में हर नवाब कि रसोई की शान कहे जाने वाले सिलबट्टे आज सडकों के किनारे ही सीमित रहने को मजबूर हैं |
इन्ही सिल्बट्टो पर छिनने का काम करने वाले ग्यानदास और उनका परिवार पिछले कई सालों से इसी कारीगरी के काम को कर रहा है, लेकिन आजकल के इस दौर मे इन्ही सिलबट्टो की खत्म होती अहमियत और जीविका कमाने की असमर्थता का दर्द इनकी आंखो में भी आँसू ला देता है |
एक समय में इसी काम को अपनी जीविका बनाने वाले ग्यानदास का कहना है कि कभी तो सिर्फ इसी कारीगरी से पूरा घर खर्च निकल आता था, लेकिन अब खरीददार ही इतने कम मिलते हैं और अगर लोग आते भी हैं तो भी दिन भर के बस 100 या 200 रूपए ही मिल पाते हैं |
अब सोचने वाली बात यह है की लघु उद्योगों को बढावा देने का दावा करने वाली सपा सरकार को यह क्यूँ नहीं दिख रहा है कि उनके शासन में कुछ ऐसे भी उद्योग विलुप्त होने की कगार पर हैं जो ना सिर्फ किसी को उसके जीवन को जीने का सहारा देते हैं, बल्कि इस राज्य को उसकी संस्कृति और सभ्यता से भी जोडते हैं |
14th May, 2016