यूरीड मीडिया डेस्क-- न्याय में देरी न्याय न मिलने के बराबर हैं | अंग्रेजी की यह कहावत भारत की धीमी न्यायपालिका की तस्वीर को बयां कर रही हैं | हमारे भारत में अलग-अलग राज्यों के हाईकोर्ट में एक केस के निपटारे में औसतन तीन साल और जिले की अदालत में लगभग 5 साल का वक़्त लग जाता हैं | केस को देर से निपटने में यूपी का इलाहाबाद उच्य न्यायालय पहले स्थान पर हैं , जबकि पटना हाई कोर्ट चौथे स्थान पर हैं | न्याय की देरी में सबसे बड़ी वजह भारत में जजों की कमी हैं |
जिला अदालत के केस निपटारे मे 5 साल--
- भारत के उच्य न्यायालों में जहां एक केस को सुलझाने में 3 साल का वक़्त लगता हैं, तो वही जिला अदालतों का हाल इससे भी बुरा हैं |
- जिला अदालत में एक केस को हल करने में 5 साल से भी अधिक वक़्त लगता हैं |
- लगभग 417 जिला अदालतें हैं ,जिसमे लगभग 17 लाख मामलो को देखा गया हैं |
- रिपोर्ट में सबसे अधिक चौकानें वाले आकड़ें उत्तर प्रदेश और बिहार के हैं |
बिहार हाईकोट चौथे स्थान पर--
- केस के निपटरे में बिहार का पटना हाईकोर्ट चौथे स्थान पर हैं |
- बिहार में एक केस को सुलझने ने 3 साल का वक़्त लगता हैं |
क्यू लगता हैं अधिक समय--
- एक केस की सुनवाई के लिए हाईकोर्ट में 20 से 68 दिनों का समय लग जाता हैं |
- रिपोर्ट के मुताबिक कोलकाता उच्य न्यायालय में दर्ज किसी मामले में एक सुनवाई के बाद दूसरी सुनवाई के लिए औसात 25 दिनों का समय दिया जाता हैं
तय मानक से कम न्यायाधीश--
- 1987 में लॉ कमीशन की ओर से दी गई 120वीं रिपोर्ट के मुताबिक देश के हर 10 लाख नागरिकों पर 50 जजों की नियुक्ति की सिफारिश की गई थी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका |
- भारत के राज्यों में न्याय ना मिलने का सबसे बड़ा कारण न्यायधीशों की कमी हैं |
- देखा जाए तो हर 10 लाख नागरिको पर सिर्फ 17 न्यायाधीश मौजूद हैं |
- राज्यसभा में पेश किए गए आंकड़ो के मुताबिक 1 अगस्त 2015 तक देश के हाईकोर्ट में करीब 633 न्यायाधीश थे. जबकि सर्वोच्च न्यायालय में कुल 28 न्यायाधीश थे |
- देश के हाईकोर्ट में 384 जज़ों के पद अभी भी खाली हैं जबकि आधीनस्थ न्यायालयों में लगभग 4580 पद खाली है |
यूपी को सबसे ज्यादा मिलता हैं--
- न्यायायिक ढांचे में सुधार के लिए हर साल केंद्र की ओर से प्रयास किए जाते हैं, वित्तीय सहायता से लेकर बुनियादी ज़रूरतें पूरा कराना केंद्र का एक अहम हिस्सा हैं |
- वित्तीय सहायता लेने में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर हैं |
31st May, 2016