विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया)
लखनऊ
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आप हैरान न हो। इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव बड़ा ही चटकारे वाला आैर मजेदार होगा। प्रदेश की जनता को चुनाव की घोषणा होते ही आये दिन सोशल मीडिया से भी ज्यादा मनोरंजन मिलेगा। अभी तक चुनाव रैलियों, प्रचार संसाधनों तथा गाड़ियों की भीड़ से होता था आैर रात अंधेरे में मतदान से पहले कुछ लोगों की थैलियां गरम हो जाती थी परन्तु इस बार इन सबके इतर भी होने जा रहा है। इसका संकेत पहले ही मिलने लगे है। जैसे-जैसे विधानसभा का चुनाव नजदीक आता जा रहा है, नेताओं के नये-नये शिगुफे बाहर आते जा रहे है।
उत्तर प्रदेश चुनाव में इस बार "" लड़का-लड़का Œ कबड्डी "" होने जा रहा है। इस कबड्डी मैच के फाइनल में समाजवादी लड़का ( टीपू) अौर कांग्रेसी लड़का (बऊआ) के बीच है। टीपू को अपनी सरकार बचानी है तो बऊआ को 27 बरस के सूखे खेत को लहलहाना है। टीपू साइकिल चलाकर खेतों की निगरानी करना चाहता है तो बऊआ खाट पर बैठकर खेतोें को निहारना चाहता है। अब एक समस्या है, इन दोनों लड़को को- राजनीतिक चौपाल के अलावा दोनों ने ही खेत नही देखे है। एक पैदा हुआ तब तक बाप खेत-गांव छोड़कर राजनीति के मालदार जमींदार हो गये थे तो दूसरा रियाइसी- सियासी परिवार में ही पैदा हुआ। एक के बाप ने कमायी संपदा तो दूसरे को विरासती हिब्बा मिला। अब मजबूरी है इन दोनों को माल कमाने की कोई चिन्ता नही है तो कबड्डी - कबड्डी कर ही अपना गंवई खेल का आनन्द लेना चाहते है। इसके दो फायदे होने है। कबड्डी-कबड्डी करने से फेफड़े मजबूर होगे, जांघ हाथ मारने पर पैर-हाथ मजबूर होगे आैर चिल्लाने से लड़खड़ाती जुबां साफ हो जाएगी। अब क्या कहे - अमीर घरों की एक दिक्कत होती है कि दुलार में लोग बच्चों को तुतला कर बोलने की जो लत लगा देते, वह बड़ा होने पर भी जल्दी जाती नही है। अमीर घरों के लड़कों को नौकर-चाकर आैर चापलूस सेवादार भी कई तरह की गलत आदते डाल देते है।
खैर आदतों की बात छोड़िये आैर कबड्डी - कबड्डी पर ही जारे आजमाइये। इस लड़का-लड़का कबड्डी में दोनों कप्तानों की स्थिति थोड़ा जुदा है। समाजवादी लड़का अड़बड़े बाप के दबाव में पांच साल से सरकार चला रहा है। हमेशा डर लगा रहता है कि पता नही कब बाप किसके बहकावे में लड़के का कान उमेठ दे। बाप के इस कान उमेठू आदत से लड़का बड़ा परेशान रहता है, मां भी तो बचाने नही आती। डर लगा रहता है कि कही मां तो नही बहका देती। खैर संस्कारी लड़का है आैर समाज को यह बताना भी है, इसलिए मोहिनी मुस्कान से वह मीडिया को बता देता है कि बेटे का कान उमेठने का बाप का जन्मजात अधिकार है। हालांकि यही लड़का अभी तक अपने बेटे का कान नही उमेठ सका। एक बार गुस्से में अपने बेटे के कान तक हाथ ले गये परन्तु पितृवत मोह ने हाथ खींच लिया। अब कांग्रेसी बऊआ की बात ही अलग है। 45 की उम्र होने को हुई परन्तु अभी तक कुंवारा बेचारा मां की गोद में ही छिपा रहता है। मां बार-बार गोद से बाहर खींचकर झिड़कती है जाओं काम सम्हालों परन्तु गोद से अलग हटते ही वह डर के मारे ऐसे कांपने लगता है कि मोहग्रस्त मां फिर से उसे खींचकर गोद में बैठा लेती है। इस बऊआ की मां 10 बरसों तक इसे केन्द्र में मंत्री-प्रधानमंत्री बनाने का सपना ही देखती रही लेकिन लड़का तो मां की अंगुली ही छोड़ने को तैयार नही हुआ। अब डेढ़ बरस से कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की लगातार मांग हो रही है लेकिन लड़का तो कमरे में ही दुबक जाता है। परेशान मां ने मन कड़ा कर उत्तर प्रदेश के चुनाव मे बेटे को खाट पर बैठाने का निर्णय लिया आैर खाटी यात्रा पर भेज दिया।
अब एक समस्या आ गयी है। उत्तर प्रदेश के चुनाव में चार प्रमुख दल है। सपा आैर कांग्रेस के पास तो लड़के है परन्तु भाजपा आैर बसपा के पास लड़के ही नही है। सपा आैर कांग्रेस ने लड़का-लड़का कबड्डी शु डिग्री कर दिया है। पहले कांग्रेस के कुंवारे लड़के बऊआ ने समाजवादी लड़के अखिलेश को लड़का कहा। हालांकि अखिलेश तीन बच्चों के बाप है। फिर अखिलेश ने राहुल को लड़का कहकर ताल ठोक दी। वैसे भी भारतीय समाज में जब तक लड़के की शादी न हो उसे लड़का ही कहा जाता है। अब इस लड़का-लड़का कबड्डी में भाजपा के विवाहित नरेन्द्र मोदी के कोई लड़का ही नही है आैर बसपा की मायावती कुंवारी है। अब यह कबड्डी नही खेल सकते तो "" भाई - बहन "" की जुगलबंदी हो सकती है। वैसे भी भाजपा-बसपा का ""भाई-बहन"" का पुराना रिश्ता है।
8th September, 2016