उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के विधायक दल के नेता गया चरण दिनकर कहते हैं कि चुनाव को लेकर आचार संहिता लागू है और इस वजह से दायरे में रहकर कार्यक्रम होगा.
मायावती अपने सफ़रनामे का नया अंक जारी करेंगी और मीडिया से मुखातिब होंगी.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मायावती अपनी पार्टी के उम्मीदवारों का एलान कर चुकी हैं.
पार्टी मायावती के जन्मदिन के बहाने कैडर को सक्रिय करने के इरादे में है. उत्तर प्रदेश की सभी विधानसभाओं में पदाधिकारियों को कार्यक्रम आयोजन की जिम्मेदारी दी गई है.
दिनकर कहते हैं, " पूरे प्रदेश के 403 विधानसभा क्षेत्रों में पदाधिकारी अपने तरीके से कार्यक्रम करेंगे."
वो चुनाव की तैयारियों का जिक्र भी करते हैं, "ऐसा माहौल बना है कि बहुजन समाज पार्टी चुनाव के बाद पूर्ण बहुमत की सरकार बनाएगी. "
नीला रंग, हाथी का निशान और बहुजन समाज के पुरोधाओं की मूर्तियों से सजे पार्क बहुजन समाज पार्टी की पहचान रहे हैं.
बीते कई सालों से पार्टी प्रमुख मायावती के जन्मदिन पर 'भव्यता' का प्रदर्शन भी इस पहचान का हिस्सा हो गया है.
लेकिन इस बार मायावती के जन्मदिन पर 'उस भव्यता' का प्रदर्शन नहीं होगा.
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान मायावती के जन्मदिन के आयोजन और ऐसे दावों को बहुजन समाज पार्टी की मजबूरी बताते हैं.
वो कहते हैं, " मायावती के लिए ये करो या मरो का चुनाव है. बीएसपी का इतिहास ये है कि जब वो सत्ता में रहती हैं तब बीएसपी का ग्राफ बढ़ता है. सत्ता से बाहर रहने पर ग्राफ गिरने की संभावना ज्यादा होती है. "
शरत प्रधान कहते हैं कि 2014 के चुनाव के बाद से ही बीएसपी के ग्राफ गिरने की बात की जा रही है. मायावती की असल चिंता यही है.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी को करीब बीस फ़ीसदी वोट मिले थे लेकिन वो एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही थी.
मायावती का आधार खिसकने का दावा भारतीय जनता पार्टी भी करती है.
किसी वक्त स्वामी प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक जैसे मायावती के करीबी नेताओं ने बहुजन समाज पार्टी का दामन छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का हाथ थाम लिया.
बहुजन समाज पार्टी का दावा है कि ऐसे नेताओं के जाने से पार्टी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा है.
बसपा के चरण दिनकर कहते हैं, "हमारी पार्टी में सिर्फ एक नेता है मायावती. बाकी सब वर्कर हैं. स्वार्थी नेता जाते हैं लेकिन उनके साथ समुदाय नहीं जाता है "
लेकिन, मायावती की पार्टी से निकलकर भारतीय जनता पार्टी में गए ब्रजेश पाठक इस दावे को खोखला बताते हैं.
उनका दावा है, " तथ्य ये है कि बहुजन समाज पार्टी के पास इस समय जनाधार लगभग समाप्त हो चुका है. सिर्फ एक जाति का लगभग नौ फ़ीसदी वोट उनके पास है. उनके साथ पिछड़ी या अगड़ी जातियों का कोई आधार नहीं है. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनमानस उनसे अलग हो गया है. "
मायावती के सहयोगी भले ही इस दावे को हवा में उड़ा रहे हों लेकिन पार्टी उम्मीदवारों का ऐलान करते समय उन्होंने जिस तरह से टिकट बंटवारे में 'सोशल इंजीनियरिंग' को सामने रखा, उससे जाहिर हुआ कि वो इस कोशिश में हैं कि कोई तबका नाराज़ न रहे. बहुजन समाज पार्टी सभी समुदायों और जातियों की पार्टी नज़र आए.
साथ ही बीजेपी से मिलने वाली चुनौती के जवाब में मायावती ने सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर नोटबंदी तक लगातार केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाए रखा.
दिनकर कहते हैं, "युद्ध युद्ध की तरह लड़ा जाता है. सोशल इंजीनियरिंग अपने जगह कायम है."
लेकिन ब्रजेश पाठक का दावा है कि ये कोशिश असरदार साबित नहीं होगी. वो कहते हैं कि मायावती समाज के विभिन्न तबकों को संभालकर रखने में सक्षम नहीं हुईं. उन्होंने लोगों को इस्तेमाल कर निकाल फेंकने का काम किया.
शरत प्रधान भी बीएसपी की सोशल इंजीनियरिंग को 'हाईप' बताते हैं.
वो कहते हैं, " 2007 में मायावती को सोशल इंजीनियरिंग से ज्यादा फायदा नहीं हुआ था. उन्हें ब्राह्मणों के ज्यादा वोट नहीं मिले थे बल्कि एंटी समाजवादी पार्टी वोट मिला था. आज उनकी नज़र मुसलमानों के वोट पर है. ये वोट बैंक मायावती के रिवाइवल के जरुरी है तो अखिलेश के सर्वाइवल के लिए जरुरी है. "
यही वजह है कि मायावती बार-बार समझाती हैं कि मुसलमान 'समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के पक्ष में मतदान कर अपने वोट को बर्बाद नहीं करें'.
समाजवादी पार्टी में बिखराव को मायावती अपने हक में बताती हैं लेकिन समाजवाटी पार्टी उनकी इस सोच को 'नकारात्मक राजनीति' करार देती है.
समाजवादी पार्टी की नेता जूही सिंह कहती हैं, " हमने आज तक उनको ये कहते नहीं सुना कि वो जनता के लिए क्या करेंगे ये जरूर कहते सुना है कि वो अन्य पार्टियों को क्यों न वोट दें. किसी पार्टी को रोकने के लिए वोट दें.उनके पास न कोई प्लान है और न ही कोई दृष्टिकोण है "
मायावती के पास कोई प्लान है या नहीं, इस सवाल पर शरत प्रधान कहते हैं, "मायावती के पास एक एडवांटेज है कि उनके पास बेस वोट बहुत है. खिसकने के बाद भी उनके पास प्रतिबद्ध वोट बहुत है जो किसी और पार्टी के पास नहीं है."
वो कहते हैं कि मायावती इसी वोट बैंक के सहारे मुसलमान वोटरों को साथ लाना चाहती हैं. लेकिन उनकी जीत तभी पक्की होगी जबकि इस वोट का बंटवारा न हो.
15th January, 2017