यूरिड मीडिया डेस्क
-भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को गुजरे हुए पांच दशक पूरे हो चुके हैं. अपने दौर में नेहरू एक लाइटहाउस माने जाते थे जो जल्द ही आजाद हुए देश 'भारत' को, एक जहाज की तरह राह दिखा रहा था. वो भी तब जब दुनिया खतरनाक समंदर की तरह गुटों में बंटी हुई थी.
नेहरू के विशेषज्ञ मानते हैं कि बाद में इंदिरा, राजीव और राहुल गांधी की कांग्रेस के काल में नेहरू की इस छवि को बहुत ही नुकसान उठाना पड़ा. इन वंशजों के कर्म इसका कारण बने. क्योंकि इनके बुरे कर्मों का क्रेडिट भी नेहरू ही पाते रहे.
नेहरू को बदनाम करने की जिम्मेदारी का वहन सोशल मीडिया..
हालांकि इन वंशजों के साथ ही नेहरू को बदनाम करने की जिम्मेदारी का वहन सोशल मीडिया पर नेहरू के अपमान के लिए चलाए जा रहे झूठे कैम्पेन भी करते हैं. जिसके पीछे 'राजीव दीक्षित स्कूल ऑफ थॉट्स' से प्रभावित लोग हैं.इन कैम्पेन के जरिए, 'प्रधानमंत्री नेहरू मुस्लिम थे, इसलिए वो मुस्लिमों का पक्ष लेते थे', 'नेहरू ने भारत को मिल रही यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल की सीट ठुकरा दी थी', 'नेहरू के साथ एक धर्मगुरु ने बुरा बर्ताव किया था, जैसे तमाम झूठ सोशल मीडिया, खासकर फेसबुक और वाट्सएप्प पर वायरल करवाए जाते हैं. और इस तरह लोगों को नेहरू से नफरत करना सिखाया जाता है.हिंदी में पढ़ने वालों को सावधान रहने की जरूरत है
नेहरू की प्रमुख किताबें...
देश के पढ़ने-लिखने वाले तबके के बीच नेहरू को लेकर माहौल अलग है. नेहरू की प्रमुख किताबें जिनका प्रकाशन हिंदी में होता है वो हैं - 'मेरी आत्मकथा', 'भारत की खोज', 'विश्व इतिहास की झलक' और 'पिता के पुत्री के नाम पत्र'. इनमें से पहली तीन किताबों का प्रकाशक 'सस्ता साहित्य मंडल' है और आखिरी किताब 'नेशनल बुक्स ट्रस्ट' से छपकर आती है.
सस्ता साहित्य मंडल के बीएस चौहान ने इन किताबों के बारे में बताते हुए कहा कि 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' का हिंदी अनुवाद 'भारत की खोज' हमेशा से ही हमारी सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में से रही है. इसके पाठकों में छात्रों के साथ ही वो पाठक भी शामिल हैं जिनकी भारत के इतिहास में रुचि है.
वहीं सस्ता साहित्य मंडल के ही संजय वर्मा का कहना है कि 'विश्व इतिहास की झलक' भी हमारी सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में से एक है. हालांकि बड़ी संख्या में इसके पाठक विश्व इतिहास में रुचि रखने वाले छात्र ही हैं. वहीं नेशनल बुक ट्रस्ट के अमित सिंह कहते हैं कि हमारी किताब 'पिता के पुत्री के नाम पत्र' आज भी हमारी सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में से एक बनी हुई है.
हालांकि प्रकाशन से जुड़े लोग स्वीकार करते हैं कि किताबों की बिक्री में पिछले कुछ सालों में कमी आई है. इसके लिए वो इंटरनेट के प्रसार को जिम्मेदार मानते हैं. साथ ही ये भी बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में इन किताबों की सरकारी खरीद में भी कमी आई है.
'ग्लिम्प्स ऑफ वर्ड हिस्ट्री'...
गुडरीड्स दुनिया का सबसे प्रख्यात साहित्यिक सोशल नेटवर्क वेबसाइट है. इसकी मालिक अमेजन कंपनी है. गुडरीड्स पर आज भी नेहरू की किताबों का प्रभाव बना हुआ है. वेबसाइट पर 'ग्लिम्प्स ऑफ वर्ड हिस्ट्री' को 5 प्वाइंट्स में से 4.23 रेटिंग मिली हुई है. वहीं 'ऑटोबायोग्राफी', 'द डिस्कवरी ऑफ इंडिया' और 'लेटर्स फ्रॉम अ फादर टू हिज डॉटर' की रेटिंग 4 के आस-पास बनी हुई है.
नेहरू के बारे में ये आंकडे बहुत कुछ कहते हैं. पर ख्याल रखने वाली बात ये भी है कि ये तभी तक हैं जब तक उन्हें कट्टरवादी समूह निशाना नहीं बनाते. क्योंकि गुडरीड्स की पेरेंट कंपनी अमेजन की वेबसाइट पर राणा अयूब की किताब 'गुजरात फाइल्स' और बरखा दत्त की 'दिस अनक्वाइट लैंड' को निशाना बनाते हुए, (स्नैपडील अनइंस्टाल करो की तर्ज पर) 1 स्टार देने की पहल की गई थी. जबकि वहीं गुडरीड्स पर इन किताबों की रेटिंग आज भी बहुत अच्छी है.
लोगों ने नेहरू को कहा धन्यवाद...
कुछ लोग कह सकते हैं कि यहां पर पॉलिटिक्स का असर है क्योंकि गुडरीड्स तक साधारण जनता की पहुंच नहीं पाती. पर कारण इससे काफी अलग लगता है क्योंकि गुडरीड्स पर ज्यादातर लोग पूरी किताब पढ़ने वाले हैं. जो किताब का रिव्यू तभी करते हैं जब उन्होंने उसे खुद पढ़ा हो, ना कि पॉलिटिक्स से प्रेरित होकर.गुडरीड्स पर लोगों के रिव्यू की बात करें तो ज्यादातर लोगों ने इस तरह के लेखन के लिए नेहरू को धन्यवाद कहा है. और ज्यादातर रिव्यू में किताब को 5 स्टार दिए गए हैं. लोगों ने इसे मस्ट रीड बताया है. किसी ने लिखा है, 'इस किताब को पढ़ने के बाद नेहरू के बारे में पहले से बने पूर्वाग्रह टूट गए.'
27th May, 2017