यूरिड मीडिया डेस्क
-महाशीर मछली मध्यप्रदेश की संरक्षित श्रेणी की मछली है. इसे राज्य मछली का दर्जा भी मिला है. नर्मदा नदी में यह पाई जाती है. नर्मदा में लगातार हो रहे रेत खनन और बढ़ते प्रदूषण के कारण महाशीर की आबादी तेजी से घट रही है.
पहले नर्मदा में इनकी आबादी 28 से 30 प्रतिशत तक थी. अब यह घटकर चार प्रतिशत रह गई. नर्मदा किनारे रहने वाले लोगों के लिए महाशीर पूजनीय है. महाशीर का श्रृंगार भी किया जाता है. श्रृंगार सोने-चांदी के आभूषण पहनाकर किया जाता है.
नर्मदा नदी को ही अपना घर बना चुके सीताराम केवट से महाशीर पूरी तरह घुल मिल गई हैं. मुंह से वे कुछ आवाजें निकालते हैं और महाशीर उनके हाथों में आकर खेलने लगतीं हैं. सीताराम ने पिछले सोमवार एकादशी के मौके पर महाशीर का श्रृंगार एक ग्राम सोने की मोतियों से जड़े नथ से किया.
इससे पहले सिंहस्थ का एक साल पूरा हो जाने पर खरगौन के जौहरी मनीष रत्नाकर ने सोने की लाल मोती से जड़ी नथ से महाशीर का श्रृगांर किया. ऐसी मान्यता है कि सिंहस्थ खत्म होने का एक साल पूरा होने पर यदि महाशीर का श्रृंगार किया जाए तो पुण्य प्राप्त होता है.
नथ महाशीर के मुख के ऊपर पहनाई जाती है.
महाशीर यानि टाइगर ऑफ फ्रेश वाटर
महाशीर को टाइगर ऑफ फ्रेश वाटर यानी ताजे पानी की रानी कहा जाता है. यह साफ पानी में ही पलती-बढ़ती है. शायद हमें अगली पीढ़ी को चित्रों में ही बताना पड़ेगा कि नर्मदा नदी में टाइगर रिवर यानी महाशीर मछलियां (टोरा-टोरा) लाखों की तादाद में हुआ करती थीं.
महाशीर को टोरा-टोरा भी कहा जाता है जो अब लुप्त हो रही है. पानी में महाशीर की अल्हड़ मस्ती देखने के काबिल हुआ करती थी. इसकी सुन्दरता और चंचलता की वजह से इसे मछलियों की रानी कहा जाता रहा है.
मध्य प्रदेश सरकार के जैव विविधता बोर्ड के ताजा अध्ययन में कहा गया है कि नर्मदा के प्रवाह क्षेत्र में बड़े बांध बन जाने के कारण महाशीर मछली को खतरा बढ़ा है. महाशीर मछली की तासीर प्रवाहित जल धाराओं में ही पनपने की होने से इसके अस्तित्व पर संकट गहरा गया है.
चिंताजनक तथ्य यह भी है कि इसके अंडे और बच्चे अब नदी के प्रवाह क्षेत्र में नहीं मिल रहे हैं. महाशीर के प्रजनन और अपने कुनबे को बढ़ाने की प्राकृतिक स्थितियां इसके लिये बाधक हो रही हैं. महाशीर मछली प्रवाहित स्वच्छ जल धाराओं में ही प्रजनन करती है. जैव विविधता सर्वे में मध्य प्रदेश में मछलियों की 215 प्रजातियां हैं. इनमें से 17 पर विलुप्ति का खतरा है.
नर्मदा में कहां है अभी महाशीर
नर्मदा में अब बहुत कम ऐसी जगहें बची हैं जहां महाशीर नर्मदा नदी के कुछ-कुछ हिस्सों में प्रवाहित जल-धाराओं के कारण बची है. जैव विविधता बोर्ड ने इन्हें चिन्हित भी किया है. ओंकारेश्वर बांध से लेकर खलघाट के बीच ऐसी जगहें मिली हैं जहां अब सरकारी कोशिशों से इन्हें संरक्षित करने की योजना बनाई जा रही है.
कुछ हिस्सों में कृत्रिम जल धाराओं से नदी के पानी को प्रवाहित कर महाशीर के संरक्षण पर भी काम चल रहा है. दूषित पानी में यह जिंदा नहीं रह पाती है. नर्मदा नदी अपनी कुल लंबाई 1312 किमी में से मध्यप्रदेश के 1077 किमी में बहती है. राज्य सरकार महाशीर को विलुप्त होने से बचाने के लिये 26 सितम्बर 2011 को इसे राज्य मछली (स्टेट फिश) का दर्जा दिया है.
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने महाशीर को विलुप्त माना है. नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्स लखनऊ ने भी इसके विलुप्त होने के खतरों पर चिंता जताई है.
केन्द्रीय अर्न्तस्थलीय मत्स्यकी अनुसन्धान संस्थान कोलकाता की सर्वे रिपोर्ट बताती है कि अब इन मछलियों का उत्पादन घटकर 10 से 15 फीसदी ही रह गया है.
महाशीर मध्य प्रदेश के अलावा पंजाब, हिमाचल और उत्तराखंड की कुछ नदियों सहित एशिया में पाकिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका और थाइलैंड में भी बहुतायत में मिलती है.
इसके अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग रंग मिलते हैं. कहीं तांबई, कहीं चांदी की तरह तो कहीं सुनहरा और कहीं काला. मुख्य रूप से इसकी सात उप प्रजातियां हैं. मछुआरों के लिये भी यह सुडौल आकार और ऊंची कीमत की वजह से महत्त्व की होती है.
29th May, 2017