काठमांडू-लंबी राजनीतिक उथल-पुथल के बाद नेपाल लोकतंत्र के अहम पड़ाव पर पहुंच गया है। नेपाल सरकार ने 26 नवंबर को आम चुनाव कराने की घोषणा की है। नवगठित सात राज्यों के चुनाव भी साथ में ही कराए जाएंगे। 239 वर्षों की राजशाही खत्म होने के बाद हिमालयी देश में पहली बार संसदीय चुनाव कराए जाएंगे।
नए संविधान में 21 जनवरी, 2018 से पहले नई संसद के गठन का प्रावधान है। ऐसे में संसदीय चुनाव निर्धारित अवधि के मुताबिक ही कराने की घोषणा की गई है। कानून मंत्री यज्ञ बहादुर थापा ने कैबिनेट के फैसले की पुष्टि करते हुए कहा, 'इसमें कोई संदेह नहीं कि देश में बहुत बड़ा उत्सव होने जा रहा है।'
बता दें कि संसदीय चुनाव प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के लिए व्यक्तिगत तौर पर भी बेहद महत्वपूर्ण है। नेपाल के अंतिम राजा ज्ञानेंद्र ने वर्ष 2002 में उन्हें अक्षम करार देते हुए पद से हटा दिया था। उन्हें माओवादियों को नियंत्रित करने और चुनाव न करा पाने के कारण अक्षम करार दिया गया था।
नेपाल में होने वाले चुनाव पर भारत और चीन की नजरें भी टिकी हैं। वर्ष 2006 में माओवादी संघर्ष खत्म होने के बाद से ही नेपाल राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। पुनर्निर्माण के दौर से गुजर रहे नेपाल को कभी मधेशी आंदोलन तो कभी भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ा है।