NPA जिसका पूरा नाम गैर प्रदर्शन सम्पत्ति ( Non Performing Asset ) है। यदि कोई व्यक्ति जिसने बैंक से ऋण लिया है और व न तो ब्याज दे पा रहा है और न ही मूलधन कहने का मतलब की वह ऋण देने में असमर्थ हो जाता है तो ऐसी स्थिति में बैंक उस लॉन को Non-Performing Asset (NPA) या Bad Loan करार देती है।
NPA का वर्गीकरण
बैंकों द्वारा NPA को इन चार तरीकों में वर्गीकृत किया है- स्टैण्डर्ड, सब स्टैण्डर्ड, डाउटफुल औल लॉस। इन सबका वर्गीकरण सम्पत्ति कितने समय तक NPA के रूप में रही उसके आधार पर होता है।
1.स्टैण्डर्ड एसेट – यदि लोन समय से पे होती रहे तो उसे स्टैण्डर्ड लोन करत हैं।
2.सब स्टैण्डर्ड एसेट – यदि की व्यक्ति जिसने लॉन लिया है वह 90 दिनों तक बकाया भुगतान नहीं करता है तो इसे स्पेशल मेन एकाउंट कहा जाता है। यदि यह एकाउंट 12 माह या इससे अधिक अवधि तक ज्यों का त्यों रहता है तो इसे सब स्टैण्डर्ड एसेट कहा जाता है।
3.डाउटफुल एसेट – जब सब स्टैण्डर्ड एसेट 12 माह या इससे अधिक अवधि तक पूर्वत चला आता है, ऋणी इस पर किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है तो बैंक इसको डाउटफुल एसेट में एनपीए करार देता है। इसके उपरांत 3 साल तक ऐसे ही रहता है तो बैंक का निम्नप्रकार कार्यवाही कर सकता है।
पहली साल सुरक्षित ऋण के अंतर्गत बकाया राशि का 25 प्रतिशत और असुरक्षित ऋण के अंतर्गत बकाया राशि का कुल 100 प्रतिशत चुकाना होगा।
1 से 3 साल के बीच सुरक्षित ऋण के अतर्गत बकाया राशि का 40 प्रतिशत या असुरक्षित ऋण के अंतर्गत बकाया राशि का 100 प्रतिशत चुका होगा।
3 साल से ज्यादा हो जाने पर सुरक्षित ऋण के अंतर्गत बकाया राशि का 100 प्रतिशत और असुरक्षित ऋण के अंतर्गत भी बकाया राशि का 100 प्रतिशत चुकाना होगा।
4.लॉस एसेट- इस वर्ग में उन सम्पत्तियों को रखा गया है जब आंतरिक अथवा बाह्य ऑडिटर इसे लॉस एसेट के रूप में प्रमाणित कर दें।
NPA के बढ़ने के कारण
प्रोजेक्ट के पूरा होने में विलम्ब के कारण ब्याज तथा मूलधन की क़िस्त भुगतान में देरी होना।
ब्याज दरों में बृद्धि होने के कारण किश्त भुगतान में परेशानी।
सार्वजनिक बैंकों द्वारा NPA की गणना के सम्बन्ध में विदेशों में पहले से चली आ रही विधि के स्थान पर सिस्टम आधारित पद्धित अपनाने के कारण NPA में बृद्धि हुई है
बाजार में मौजूद अनिश्चितता के कारण जिन लोगों ने ऋण लिए हैं उनके द्वारा ऋण न चुका पाना भी एक मुख्य वजह है।
जान बूझकर ऋण न चुकाने (willful defaulter) वालों व्यक्तियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है और ऐसे बकायेदारों के खिलाफ राजनीतिक दखल के कारण पर्याप्त कार्यवाही न हो पाना भी एक बड़ी वजह है।
जिस उद्देश्य के लिए ऋण लिया जाता है उस काम के लिए उस धन का उपयोग नहीं किया जाना।
2.सब स्टैण्डर्ड एसेट – यदि की व्यक्ति जिसने लॉन लिया है वह 90 दिनों तक बकाया भुगतान नहीं करता है तो इसे स्पेशल मेन एकाउंट कहा जाता है। यदि यह एकाउंट 12 माह या इससे अधिक अवधि तक ज्यों का त्यों रहता है तो इसे सब स्टैण्डर्ड एसेट कहा जाता है।
3.डाउटफुल एसेट – जब सब स्टैण्डर्ड एसेट 12 माह या इससे अधिक अवधि तक पूर्वत चला आता है, ऋणी इस पर किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है तो बैंक इसको डाउटफुल एसेट में एनपीए करार देता है। इसके उपरांत 3 साल तक ऐसे ही रहता है तो बैंक का निम्नप्रकार कार्यवाही कर सकता है।
1 से 3 साल के बीच सुरक्षित ऋण के अतर्गत बकाया राशि का 40 प्रतिशत या असुरक्षित ऋण के अंतर्गत बकाया राशि का 100 प्रतिशत चुका होगा।
NPA के बढ़ने के कारण
जान बूझकर ऋण न चुकाने (willful defaulter) वालों व्यक्तियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है और ऐसे बकायेदारों के खिलाफ राजनीतिक दखल के कारण पर्याप्त कार्यवाही न हो पाना भी एक बड़ी वजह है।
22nd February, 2018