यूरीड मीडिया- बांग्लादेश में पिछले कुछ हफ्ते से जारी आरक्षण आंदोलन में शेख हसीना की प्रधानमंत्री की कुर्सी चली गई। हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद सोमवार को शेख हसीना ने अपने इस्तीफे की घोषणा की। यह एलान सेना प्रमुख वकर-उज-जमान ने टेलीविजन पर किया। इस्तीफे के साथ ही शेख हसीना ने देश छोड़ दिया। पूर्व प्रधानमंत्री फिलहाल भारत में रुकी हुई हैं।
देश में हुए ताजा राजनीतिक उथल-पुथल के बाद सबकी नजरें अंतरिम सरकार पर टिकी हैं। सेना प्रमुख ने शेख हसीना के इस्तीफे की जानकारी देते हुए घोषणा की थी कि अंतरिम सरकार बनाई जाएगी। उधर आंदोलन चलाने वाले छात्र नेताओं की मांग के अनुसार नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस को अस्थायी सरकार की कमान सौंपी गई है।
सवाल है कि बांग्लादेश में अंतरिम सरकार कैसी होगी? इसमें किसकी क्या भागीदारी होगी? अस्थायी सरकार की जिम्मेदारी क्या होगी? सरकार में सेना की भूमिका क्या हो सकती है?
पहले जानते हैं बांग्लादेश में अंतरिम सरकार की जरूरत क्यों पड़ी?
आरक्षण के मुद्दे पर जारी छात्र आंदोलन के बीच 5 अगस्त को प्रधानमंत्री शेख हसीना ने राष्ट्रपति को इस्तीफा देकर देश छोड़ दिया। इस बीच, सेनाध्यक्ष जनरल वकार-उज-जमान ने देश को चलाने के लिए अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा की।
बांग्लादेश का संविधान कहता है कि यदि प्रधानमंत्री ने इस्तीफा दे दिया है तो कैबिनेट के दूसरे मंत्रियों, राज्य मंत्रियों और उप-मंत्रियों का भी इस्तीफा माना जाता है। इसका मतलब है कि कैबिनेट भंग कर दी गई है। हालांकि, संवैधानिक प्रावधान यह भी कहते हैं कि मंत्री, राज्य मंत्री और उपमंत्री नई सरकार बनने तक अपने कर्तव्यों को जारी रख सकते हैं।
बांग्लादेश के संविधान के अनुच्छेद 57 में कहा गया है कि प्रधानमंत्री का पद खाली होगा यदि वह किसी भी समय राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंप देता है। अन्य मंत्रियों के कार्यकाल के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 58 (4) में कहा गया है कि यदि प्रधानमंत्री इस्तीफा दे देते हैं या अपने पद पर बने नहीं रहते हैं, तो प्रत्येक मंत्री को इस्तीफा दे दिया गया माना जाएगा।
देश में संसदीय चुनाव के लिए मतदान इसी साल 7 जनवरी को हुआ था। शेख हसीना की अवामी लीग ने पार्टी ने 300 में से 224 सीटें जीती थीं। अवामी लीग की सहयोगी जतिया पार्टी ने 11, स्वतंत्र उम्मीदवारों ने 61 सीटें जीतीं और बाकी सीटें अन्य पार्टियों के खाते में गई थीं।
नतीजों के बाद 11 जनवरी को नई कैबिनेट का गठन हुआ था उस मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री सहित 37 सदस्य थे। बाद में प्रधानमंत्री सहित मंत्रिमंडल के सदस्यों की संख्या 44 हो गई। मंत्रिमंडल का गठन पांच साल के लिए किया जाता है। हालांकि, यह कैबिनेट लगभग सात महीने बाद ही भंग कर दी गई है।
बांग्लादेश में अंतरिम सरकार कैसी होगी?
शेख हसीना के इस्तीफे के बाद अब सबकी नजरें अंतरिम सरकार पर हैं। सरकार के गठन को लेकर देश में सियासी हलचल भी शुरू हो गई है। राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने तीनों सशस्त्र सेनाओं के प्रमुखों, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं, नागरिक समाज के प्रतिनिधियों और आरक्षण आंदोलन के नेताओं सहित प्रमुख हितधारकों के साथ एक बैठक की है। उच्च स्तरीय बैठक के बाद राष्ट्रपति ने देश की संसद को भंग कर दिया है जिससे देश में अंतरिम सरकार के गठन का रास्ता खुल गया है।
जानकारी के मुताबिक, छात्र नेताओं का मंगलवार को सेना प्रमुख जमान से मुलाकात की है। इस मुलाकात के दौरान छात्र नेताओं ने नई सरकार के प्रारूप पर चर्चा की। उधर सेना प्रमुख ने भी देश के विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बैठक की है। सेना प्रमुख अंतरिम सरकार के प्रस्ताव को लेकर राष्ट्रपति के पास गए हैं। उसके बाद यह घोषणा की गई कि अंतरिम सरकार के मुखिया यूनुस होंगे। इस बीच, सेना प्रमुख ने प्रदर्शनकारी छात्रों से घर वापस जाने का आग्रह किया।
तो बांग्लादेश की अस्थायी सरकार में कौन क्या भूमिका निभाएगा?
अस्थायी सरकार के गठन के बाद सबसे बड़ा सवाल यह था कि शेख हसीना के बाद देश का नेतृत्व कौन करेगा। इन सवालों के बीच देश में कुछ अहम घटनाक्रम हुए। शेख हसीना के हटने के बाद उनकी कट्टर विरोधी खालिदा जिया को जेल से रिहा कर दिया गया। जिया को 2018 में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भेजा गया था। पूर्व प्रधानमंत्री और बीएनपी अध्यक्ष जिया को मंगलवार को जेल से रिहा कर दिया गया।
उधर बांग्लादेश में लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना के इस्तीफे का कारण बने प्रदर्शनकारी छात्र नेताओं ने कहा था कि वे सेना के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार नहीं चाहते हैं, बल्कि नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस की सलाह वाली सरकार चाहते हैं। यूनुस भी अंतरिम सरकार के सलाहकार बनने के लिए सहमत हो गए।
मुख्य विपक्षी बीएनपी ने राष्ट्रपति से बिना किसी देरी के अंतरिम सरकार बनाने का आग्रह किया है। पार्टी के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कहा कि देरी से देश को फिर से राजनीतिक शून्यता का सामना करना पड़ सकता है। इससे पहले जब एक प्रेस वार्ता में बीएनपी नेता से पूछा गया था कि क्या वे डॉ. मुहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख नियुक्त करने के छात्रों के प्रस्ताव का समर्थन करते हैं, तो उन्होंने कहा था, 'यह हमारे समर्थन का मसला नहीं है। अगर राष्ट्रपति हमसे अनुरोध करेंगे तो हम उन्हें नाम उपलब्ध करा देंगे।'
बीएनपी नेता ने कहा था कि संविधान के अनुसार राष्ट्रपति अब देश के प्रमुख हैं और अंतरिम सरकार के गठन की देखरेख का एकमात्र अधिकार उनके पास है। आलमगीर ने कहा, 'मैं एक बात स्पष्ट कर दूं कि हमें छात्रों पर पूरा भरोसा है। हमने उनके आंदोलन के साथ एकजुटता दिखाई है और उनका समर्थन करना जारी रखेंगे। इस मामले में सर्वदलीय विचारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।'
अस्थायी सरकार की जिम्मेदारी क्या होगी?
आंदोलन के दौरान लूटपाट, बर्बरता और हिंसा, यहां तक कि हत्याएं भी, बड़े पैमाने पर हुई हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद, सभी के लिए स्थिरता और सुरक्षा सुनश्चित करना होगा ताकि बिना किसी देरी के कानून और व्यवस्था फिर से स्थापित हो। बांग्लादेश के विभिन्न हिस्सों में अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले की खबरें हैं। उन्हें सुरक्षा देना भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी।
सेंटर फॉर पॉलिसी डायलॉग की कार्यकारी निदेशक डॉ. फहमीदा खातून ने देश की मौजूदा आर्थिक चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला है। डॉ. खातून ने स्थानीय अखबार के लिए लिखे एक लेख में कहा कि पिछले 15 सालों से लगातार भ्रष्टाचार और पक्षपात के कारण लोगों को आर्थिक लाभ से वंचित रखा गया है। सरकार का पूरा ध्यान आर्थिक विस्तार पर था, जिसका आम जनता के जीवन पर कोई खास असर नहीं पड़ा। देश के युवा रोजगार की संभावनाओं की कमी और कोटा प्रणाली के जरिए तरजीही व्यवहार से हाशिए पर हैं। आगामी सरकार को उथल-पुथल से अर्थव्यवस्था को बचाया जाना चाहिए।
डॉ. खातून के अनुसार, लोगों में मुद्रास्फीति का दबाव और अपर्याप्त धन का प्रतिकूल असर पड़ रहा है। आर्थिक नींव को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया गया है। इसके चलते सभी आर्थिक सूचकांक कमजोर में हैं।
आगामी सरकार के लिए राजनीतिक स्थिरता कायम करना भी अहम होगा जिसमें सेना की भूमिका दिखाई दे सकती है। सेना प्रमुख ने अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा करते हुए समय से पहले चुनाव कराने और सामान्य स्थिति लाने की बात कही है। सेना का कहना है कि अंतरिम सरकार सरकार के जरिए देश की सारी गतिविधियां चलेंगी। सेना प्रमुख ने यह भी कहा कि सभी हत्याओं और दूसरे अन्यायों पर मुकदमा चलाया जाएगा।
हालांकि, किसी भी सरकार या खुद सेना के लिए स्थिर राजनीतिक व्यवस्था को बहाल करना और सभी दलों के साथ समन्वय बनाना मुश्किल काम होगा। बांग्लादेश ने कई बार सेना या इसकी समर्थित सरकार का भी दौर देखा है। देश 1975 से 1990 के बीच सैन्य शासन के अधीन था और आखिरी बार सैन्य समर्थित सरकार ने दिसंबर 2008 तक दो साल तक सत्ता संभाली थी।
बांग्लादेश को खुद को संभालने के साथ-साथ पड़ोस में घटने वाली चुनौतियों से निटपने होगा। सबसे बड़ी समस्या म्यांमार में चल रहा गृह युद्ध और रोहिंग्या शरणार्थियों का बांग्लादेश की ओर फिर से पलायन की आशंका है, जबकि पहले से ही देश में 12 लाख रोहिंग्या शरण लिए हुए हैं। हसीना सरकार म्यांमार के गृह संघर्ष से काफी हद तक दूर रही। लेकिन बांग्लादेश की सेना रखाइन में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए कदम उठा सकती है। सेना बचे हुए रोहिंग्याओं को जहां वे हैं वहीं रखने और बांग्लादेश से बाहर निकालने का प्रयास कर सकती है जिसके बांग्लादेश के लिए अप्रत्याशित नतीजे हो सकते हैं।
देश में हुए ताजा राजनीतिक उथल-पुथल के बाद सबकी नजरें अंतरिम सरकार पर टिकी हैं। सेना प्रमुख ने शेख हसीना के इस्तीफे की जानकारी देते हुए घोषणा की थी कि अंतरिम सरकार बनाई जाएगी। उधर आंदोलन चलाने वाले छात्र नेताओं की मांग के अनुसार नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस को अस्थायी सरकार की कमान सौंपी गई है।
सवाल है कि बांग्लादेश में अंतरिम सरकार कैसी होगी? इसमें किसकी क्या भागीदारी होगी? अस्थायी सरकार की जिम्मेदारी क्या होगी? सरकार में सेना की भूमिका क्या हो सकती है?
पहले जानते हैं बांग्लादेश में अंतरिम सरकार की जरूरत क्यों पड़ी?
आरक्षण के मुद्दे पर जारी छात्र आंदोलन के बीच 5 अगस्त को प्रधानमंत्री शेख हसीना ने राष्ट्रपति को इस्तीफा देकर देश छोड़ दिया। इस बीच, सेनाध्यक्ष जनरल वकार-उज-जमान ने देश को चलाने के लिए अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा की।
बांग्लादेश का संविधान कहता है कि यदि प्रधानमंत्री ने इस्तीफा दे दिया है तो कैबिनेट के दूसरे मंत्रियों, राज्य मंत्रियों और उप-मंत्रियों का भी इस्तीफा माना जाता है। इसका मतलब है कि कैबिनेट भंग कर दी गई है। हालांकि, संवैधानिक प्रावधान यह भी कहते हैं कि मंत्री, राज्य मंत्री और उपमंत्री नई सरकार बनने तक अपने कर्तव्यों को जारी रख सकते हैं।
बांग्लादेश के संविधान के अनुच्छेद 57 में कहा गया है कि प्रधानमंत्री का पद खाली होगा यदि वह किसी भी समय राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंप देता है। अन्य मंत्रियों के कार्यकाल के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 58 (4) में कहा गया है कि यदि प्रधानमंत्री इस्तीफा दे देते हैं या अपने पद पर बने नहीं रहते हैं, तो प्रत्येक मंत्री को इस्तीफा दे दिया गया माना जाएगा।
देश में संसदीय चुनाव के लिए मतदान इसी साल 7 जनवरी को हुआ था। शेख हसीना की अवामी लीग ने पार्टी ने 300 में से 224 सीटें जीती थीं। अवामी लीग की सहयोगी जतिया पार्टी ने 11, स्वतंत्र उम्मीदवारों ने 61 सीटें जीतीं और बाकी सीटें अन्य पार्टियों के खाते में गई थीं।
नतीजों के बाद 11 जनवरी को नई कैबिनेट का गठन हुआ था उस मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री सहित 37 सदस्य थे। बाद में प्रधानमंत्री सहित मंत्रिमंडल के सदस्यों की संख्या 44 हो गई। मंत्रिमंडल का गठन पांच साल के लिए किया जाता है। हालांकि, यह कैबिनेट लगभग सात महीने बाद ही भंग कर दी गई है।
बांग्लादेश में अंतरिम सरकार कैसी होगी?
शेख हसीना के इस्तीफे के बाद अब सबकी नजरें अंतरिम सरकार पर हैं। सरकार के गठन को लेकर देश में सियासी हलचल भी शुरू हो गई है। राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने तीनों सशस्त्र सेनाओं के प्रमुखों, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं, नागरिक समाज के प्रतिनिधियों और आरक्षण आंदोलन के नेताओं सहित प्रमुख हितधारकों के साथ एक बैठक की है। उच्च स्तरीय बैठक के बाद राष्ट्रपति ने देश की संसद को भंग कर दिया है जिससे देश में अंतरिम सरकार के गठन का रास्ता खुल गया है।
जानकारी के मुताबिक, छात्र नेताओं का मंगलवार को सेना प्रमुख जमान से मुलाकात की है। इस मुलाकात के दौरान छात्र नेताओं ने नई सरकार के प्रारूप पर चर्चा की। उधर सेना प्रमुख ने भी देश के विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बैठक की है। सेना प्रमुख अंतरिम सरकार के प्रस्ताव को लेकर राष्ट्रपति के पास गए हैं। उसके बाद यह घोषणा की गई कि अंतरिम सरकार के मुखिया यूनुस होंगे। इस बीच, सेना प्रमुख ने प्रदर्शनकारी छात्रों से घर वापस जाने का आग्रह किया।
तो बांग्लादेश की अस्थायी सरकार में कौन क्या भूमिका निभाएगा?
अस्थायी सरकार के गठन के बाद सबसे बड़ा सवाल यह था कि शेख हसीना के बाद देश का नेतृत्व कौन करेगा। इन सवालों के बीच देश में कुछ अहम घटनाक्रम हुए। शेख हसीना के हटने के बाद उनकी कट्टर विरोधी खालिदा जिया को जेल से रिहा कर दिया गया। जिया को 2018 में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भेजा गया था। पूर्व प्रधानमंत्री और बीएनपी अध्यक्ष जिया को मंगलवार को जेल से रिहा कर दिया गया।
उधर बांग्लादेश में लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना के इस्तीफे का कारण बने प्रदर्शनकारी छात्र नेताओं ने कहा था कि वे सेना के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार नहीं चाहते हैं, बल्कि नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस की सलाह वाली सरकार चाहते हैं। यूनुस भी अंतरिम सरकार के सलाहकार बनने के लिए सहमत हो गए।
मुख्य विपक्षी बीएनपी ने राष्ट्रपति से बिना किसी देरी के अंतरिम सरकार बनाने का आग्रह किया है। पार्टी के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कहा कि देरी से देश को फिर से राजनीतिक शून्यता का सामना करना पड़ सकता है। इससे पहले जब एक प्रेस वार्ता में बीएनपी नेता से पूछा गया था कि क्या वे डॉ. मुहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख नियुक्त करने के छात्रों के प्रस्ताव का समर्थन करते हैं, तो उन्होंने कहा था, 'यह हमारे समर्थन का मसला नहीं है। अगर राष्ट्रपति हमसे अनुरोध करेंगे तो हम उन्हें नाम उपलब्ध करा देंगे।'
बीएनपी नेता ने कहा था कि संविधान के अनुसार राष्ट्रपति अब देश के प्रमुख हैं और अंतरिम सरकार के गठन की देखरेख का एकमात्र अधिकार उनके पास है। आलमगीर ने कहा, 'मैं एक बात स्पष्ट कर दूं कि हमें छात्रों पर पूरा भरोसा है। हमने उनके आंदोलन के साथ एकजुटता दिखाई है और उनका समर्थन करना जारी रखेंगे। इस मामले में सर्वदलीय विचारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।'
अस्थायी सरकार की जिम्मेदारी क्या होगी?
आंदोलन के दौरान लूटपाट, बर्बरता और हिंसा, यहां तक कि हत्याएं भी, बड़े पैमाने पर हुई हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद, सभी के लिए स्थिरता और सुरक्षा सुनश्चित करना होगा ताकि बिना किसी देरी के कानून और व्यवस्था फिर से स्थापित हो। बांग्लादेश के विभिन्न हिस्सों में अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले की खबरें हैं। उन्हें सुरक्षा देना भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी।
सेंटर फॉर पॉलिसी डायलॉग की कार्यकारी निदेशक डॉ. फहमीदा खातून ने देश की मौजूदा आर्थिक चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला है। डॉ. खातून ने स्थानीय अखबार के लिए लिखे एक लेख में कहा कि पिछले 15 सालों से लगातार भ्रष्टाचार और पक्षपात के कारण लोगों को आर्थिक लाभ से वंचित रखा गया है। सरकार का पूरा ध्यान आर्थिक विस्तार पर था, जिसका आम जनता के जीवन पर कोई खास असर नहीं पड़ा। देश के युवा रोजगार की संभावनाओं की कमी और कोटा प्रणाली के जरिए तरजीही व्यवहार से हाशिए पर हैं। आगामी सरकार को उथल-पुथल से अर्थव्यवस्था को बचाया जाना चाहिए।
डॉ. खातून के अनुसार, लोगों में मुद्रास्फीति का दबाव और अपर्याप्त धन का प्रतिकूल असर पड़ रहा है। आर्थिक नींव को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया गया है। इसके चलते सभी आर्थिक सूचकांक कमजोर में हैं।
आगामी सरकार के लिए राजनीतिक स्थिरता कायम करना भी अहम होगा जिसमें सेना की भूमिका दिखाई दे सकती है। सेना प्रमुख ने अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा करते हुए समय से पहले चुनाव कराने और सामान्य स्थिति लाने की बात कही है। सेना का कहना है कि अंतरिम सरकार सरकार के जरिए देश की सारी गतिविधियां चलेंगी। सेना प्रमुख ने यह भी कहा कि सभी हत्याओं और दूसरे अन्यायों पर मुकदमा चलाया जाएगा।
हालांकि, किसी भी सरकार या खुद सेना के लिए स्थिर राजनीतिक व्यवस्था को बहाल करना और सभी दलों के साथ समन्वय बनाना मुश्किल काम होगा। बांग्लादेश ने कई बार सेना या इसकी समर्थित सरकार का भी दौर देखा है। देश 1975 से 1990 के बीच सैन्य शासन के अधीन था और आखिरी बार सैन्य समर्थित सरकार ने दिसंबर 2008 तक दो साल तक सत्ता संभाली थी।
बांग्लादेश को खुद को संभालने के साथ-साथ पड़ोस में घटने वाली चुनौतियों से निटपने होगा। सबसे बड़ी समस्या म्यांमार में चल रहा गृह युद्ध और रोहिंग्या शरणार्थियों का बांग्लादेश की ओर फिर से पलायन की आशंका है, जबकि पहले से ही देश में 12 लाख रोहिंग्या शरण लिए हुए हैं। हसीना सरकार म्यांमार के गृह संघर्ष से काफी हद तक दूर रही। लेकिन बांग्लादेश की सेना रखाइन में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए कदम उठा सकती है। सेना बचे हुए रोहिंग्याओं को जहां वे हैं वहीं रखने और बांग्लादेश से बाहर निकालने का प्रयास कर सकती है जिसके बांग्लादेश के लिए अप्रत्याशित नतीजे हो सकते हैं।
7th August, 2024