लखनऊ-- इन दिनों सपा सरकार की ओर से लगातार प्रदेश में फिल्मों की शूटिंग पर ज़ोर दिया जा रहा। सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद फिल्मों के उद्योग को बढ़ावा देने के लिए लीड रोल में नज़र आ रहे हैं। फिल्मों को टैक्स फ्री करना तो कभी करोड़ों का अनुदान देना प्रदेश की फिल्म नीति का एक हिस्सा है। प्रदेश के कलाकारों को भी सरकार अपने खर्च पर फिल्म की पढ़ाई के लिए मायानगरी भेज रही है। इन सब प्रयासों के लिए हाल ही में सूबे को मोस्ट फिल्म फ्रेंडली स्टेट का अवार्ड भी मिला है।
क्या है मकसद--
- जानकार मानते हैं कि भविष्य में सूबे को इससे राजस्व में बढ़ोतरी होंगे।
- किसी फिल्म की शूटिंग के लिए भारी रकम खर्च होती है।
- पूरी क्रू के रहने खाने का इंतज़ाम, एक जगह से दूसरी जगह ट्रेवल पर खर्च, बिजली पानी और अन्य चीज़ो पर भी भारी खर्च आता है।
- सरकार इस पर अनुदान भी देती है पर फिर भी राजस्व में मुनाफा ही होता है।
- मेट्रोपोलिटन सिटी बनने में मिलेगी मदद, बढ़ेगा रोज़गार।
टूरिजम को बढ़ावा--
- प्रदेश में फिल्म उद्योग बढ़ने के बाद टूरिजम को भी बढ़ावा मिलेगा ।
- मार्किट एनालिस्ट, मधु गुप्ता ने एक ट्रेवल वेबसाइट को बताया कि जुलाई 2015 में ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा के रिलीज होने के बाद उसी साल भारत से स्पेन का टूरिजम में 32 प्रतिशत का इजाफा हुआ था।
- इस फिल्म में स्पेन की कई सुन्दर जगह और अजब और गरीब खेलों का नज़ारा दिखाया गया था |
- प्रदेश में ऐसी कई जगह और हिडन कल्चर हैं, जिससे दुनिया के अधिकतर लोग वाकिफ नहीं हैं। यह वो राज्य हैं जहां संस्कृति, तहज़ीब और कई रहस्मयी चीज़े हैं जिसे एक सीमित क्षेत्र तक ही जाना जाता है ।
- फिल्मों में दर्शाने से लोगों के लिए यह नयी चीज़ के रूप में उभर के आएगा और लोग इन्हें जानने के साथ इनकी ओर आकर्षित भी होंगे।
पहले भी हुई थी कवायद--
- उत्तर प्रदेश में कई बार फिल्म उद्योग की स्थापना के लिए सुविधाएं देने की घोषणा की गई, पर कई करणों के चलते संभव नहीं हो पाया।
- फिल्म अभिनेता सुनील दत्त ने 1967 में उत्तर प्रदेश को फिल्म उद्योग की स्थापना के लिए मुफीद जगह बताई थी ।
- तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्त ने उप्र में फिल्म उद्योग स्थापित करने के प्रयास भी किए पर सरकार गिरते ही प्रयास में ठन्डे बस्ते में चले गए ।
- 1975 में वी.पी. सिंह सरकार ने प्रदेश में चलचित्र निगम की स्थापना की थी और फिल्म बनाने वालों को उपकरण और सब्सिडी (तीन लाख रुपये) देने की घोषणा भी की गई थी ।
प्रदेश की राजधानी लखनऊ को मेट्रोपोलिटन सिटी बनाने के लिए कवायद की जा रही है । मेट्रो, आईटी हब के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम का निर्माण भी ज़ोरों पर है। ऐसे में राजधानी के युवाओं का मानना है, कि मेट्रोपोलिटन शहर वो होता है जहां दिन की तरह नाईट लाइफ हो । लोग 24x7 की शिफ्ट्स में काम करें और रात हो या दिन ट्रांसपोर्ट, खान पान और सुरक्षा जैसी सुविधा भी जनता को मुहैया हो । एनसीआर में भी अधिकतर यही दोनों सेक्टर 24x7 कार्यगत हैं, जिससे अन्य सेक्टर इनकी ज़रूरत पूरी करने में कार्यगत हैं। इससे ज़्यादा युवाओं को रोज़गार मिलेगा ।
19th May, 2016