यूरिड मीडिया डेस्क:-
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही राज्य की प्रभावी राजनीतिक दलों का सेंसेक्स आए दिन धरता-बढ़ता जा रहा है। यह चुनावी गणित प्रदेश में प्रभावी चार प्रमुख दलों के बीच ही उलझा है। अन्य छोटे दलों की भूमिका चुनावी जीत से ज्यादा वोट कटवा की ही होकर रह जाने की संभावना है।
प्रदेश के चुनावी समीकरण में सबसे पहले बसपा ने चुनावी सर्वेक्षण के माध्यम से बढ़त बनाने का प्रयास किया। सपा सरकार के खिलाफ चार वर्षों से चला आ रहा कानून व्यवस्था का भूत नए सिरे से जनता कि हुबान से बाहर आने लगा है। ऐसे हालात में सपा कमज़ोर मान मुस्लिम वर्ग ने भी बसपा कि तरफदारी शुरू कर दी है। वर्ष 2007 में सपा कि सरकार कानून व्यवस्था के मुद्दे पर ही चली गयी थी उसी को हथियार बना कर बसपा राज्य में पूर्ण बहुमत कि सरकार बनाने में सफल रही। सत्ता कि आहट मिलते ही बसपा ने तो बरसों पहले घोषित प्रत्याशियों का पत्ता फेकना शुरू कर दिया। प्रत्याशियों में यह बदलाव सीटों कि बोली के संदर्भ में उभरकर आया है। अपने सहयोगों के मनोभाव से अनिभिज्ञ ने तो जब अपने सरकार बनाने के सपने देखा रहा था उसी बीच स्वामी प्रसाद मौर्य व आर.के.चौधरी जैसे दिग्गज नेताओं ने बसपा छोड़ मायावती को बड़ा झटका दिया है। बसपा के घर में हो रही तोड़-फोड़ से अब मुस्लिम मतदाता भी विदकने लगा है।
बसपा का ग्राफ गिरते ही सपा ने नए सिरे से मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने का प्रयास शुरू कर दिया है। इसके साथ ही समाज के अन्य वर्गों को जोड़ने के लिए सपा ने राज्य सभा व विधान परिषद के चुनाव में छत्रीय,कुर्मी व अन्य पिछड़े वर्ग के नेताओं को शामिल कर वोट बैंक बढ़ाने का प्रयास शुरू कर दिया है। चुनावी गणित के हिसाब से जातीय समीकरण को साधने में भाजपा व सपा नया दलों से आगे है। भाजपा ने तो स्वर्ण मतदाताओं के साथ ही अति दलित व अति पिछड़े मतदाताओं को साथ लाने कि एक चेन-पूल बना रखी है। पिछड़े वर्ग का मौर्य, कुशवाहा प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रभावी राजभर व नोनिया बिरादरी कि पार्टी भारतीय समाज पार्टी को भी भाजपा ने अपने साथ मिला लिया है। अनुप्रिया पटेल को केंद्र में मंत्री बनाकर भाजपा ने कुर्मी बिरादरी में अपने पैठ और मजबूत कर ली है। इस चुनावी गणित में बसपा व काँग्रेस काफी पीछे चल रही हैं।
काँग्रेस ने नए सिरे से अपने को चुनावी रेस में शामिल करने के लिए ‘चुनाव ओर्गनाइसर’ की ख्याति पाये प्रशांत किशोर की सेवाएँ ली हैं। इसके बावजूद अंदरूनी कला के चलते काँग्रेस अभी किसी भी चुनावी योजना को अमलीजामा नहीं पहना पायी है। प्रदेश की राजनीत में हासे में जा चुकी राष्ट्रिय लोक दल अपनी ज़मीन तलाशने के लिए गठबंधन तलाश रहा है लेकिन रलोद मुखिया अजीत सिंह की आविश्वसनीयता इसमें आड़े आ रही है। अभी चुनाव नजदीक आते-आते नेताओं के दल बदलने व गठबंधन की और ज़ोर पकड़ेगी। इसमें बसपा छोड़े स्वामी प्रसाद मौर्य, आर.के. चौधरी और बाबू सिंह कुशवाहा की महती भूमिका होगी।
9th July, 2016