यूरिड मीडिया ब्यूरो
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राजनीतिक प्रबंधक प्रशांत किशोर की सलाह मानते हुए कांग्रेस ने विधान चुनाव से पहले बदलाव की ललक तो दिखलाई परन्तु इसमें कुछ नया एवं प्रभावी असर नहीं दिखलाई दे रहा है। कांग्रेस में राहुल गांधी की ताजपोशी के हालात में तो होना ये चाहिए था कि कोई नया दमदार एवं बेदाग चेहरा सामने आता। ऐसा न कर कांग्रेस नेतृत्व ने ये तो साबित कर दिया है कि पार्टी में राजनीतिक सोच का दिवालियापन हो गया है। दशकों से उत्तर प्रदेश की राजनीति से दूर रहने वाली 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला को बागडोर सौंप कर पार्टी के दागदार, धोखेबाज एवं विवादास्पद, बूढ़े लोगो को हो सेनापति बना दिया गया।
उत्तर प्रदेश में 60 % युवा मतदाता है , ऐसे में 18 से 30 % मतदाता की भावना दादी एवं ताऊओ के विचारो से कैसे मेल खाएगी। इससे साबित होता है कि काँग्रेस का राजनीतिक प्रबन्धक बड़े करीने से राहुल को किनारे लगाना चाहता है। इस संदर्भ मे प्रशांत कि भावना कुछ भी हो लेकिन यह सब कुछ उन्हीं की सिफारिश पर हुआ है तो साफ है कि वह कोंग्रेसी चक्रव्युह के शिकार हो गए हैं। उत्तर प्रदेश के ज़्यादातर युवा जानते ही नहीं कि उमा शंकर दीक्षित कौन थे और शीलाजी किसी राज्य की सीएम रही है, ये भी कम ही जानते है।
केवल दीक्षित लिखने से ब्राह्मण काँग्रेस को वोट देगा
, ये सोचनीय बात है
। काँग्रेस ने शीला जी को जो टीम दी है उसमे सभी 65 के उपर के है और कई मामलो मे विवादस्पद भी है। काँग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर
, प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष संजय सिंह तथा समन्वय समिति के अध्यक्ष प्रमोद तिवारी एवं इनके सदस्य सभी 60 से उपर है । इस समय जब की बीजेपी ने 75 से अधिक के मंत्रियो को हटा दिया है तो काँग्रेस पुरानी लीक पर ही चल रही है । काँग्रेस के पास कई बेदाग एवं निष्ठावान युवा चेहरे हैं परंतु उनको पूरी मुहिम से अलग रखा गया है ।