विजय शंकर पंकज ( यूरिड मीडिया )
लखनऊ
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पिछले 12 वर्षो से सत्ता का बनवास झेल रही भारतीय जनता पार्टी को अगले साल हो रहे विधानसभा चुनाव में भी बहुमत हासिल करना आसान नही होगा। प्रदेश में चुनावी समीकरण के लिए भाजपा नेतृत्व विभिन्न जातियों को अपने पाले में लाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। प्रतिद्वन्दी दल भी भाजपा की इस चाल को समझ कांट करने में जुटे हुए है। इस कड़ी में भाजपा के खिलाफ सबसे बड़ा दांव कांग्रेस ने खेला है। कांग्रेस की यह चाल सफल रही तो भाजपा का बना बनाया खेल बिगड़ सकता है। भाजपा ने अभी तक भले ही मुख्यमंत्री प्रत्याशी की घोषणा नही कि है परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से साफ है कि जिस अध्यक्ष के नेतृत्व में विधानसभा का चुनाव लड़ा जाएगा, वही मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार होगा।
प्रदेश में भाजपा नेतृत्व पहले से ही मानकर चल रहा है कि सवर्ण वोट उसकी जेब में है। यही वजह है कि सवर्ण वर्ग की लगातार अनदेखी कर भाजपा अतिपिछड़े एवं अति दलित वोट बैंक को साधने में लगी हुई है। लोकसभा चुनाव में जीत को भाजपा इसी समीकरण को सफलता की कुंजी मान रही है। इसके बावजूद भाजपा नेतृत्व को यह समझना पड़ेगा कि अभी पिछले वर्ष बिहार विधानसभा के चुनाव में यह समीकरण पस्त हो चुका है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में अब भी अतिपिछड़ा एवं अति दलित वोट किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ा नही है। यही वोट बैक प्रदेश की राजनीति का सत्ता समीकरण साधता है। प्रदेश में केवल दो जातियां यादव (सपा से) तथा चमार एवं जाटव ( बसपा से) एकनिषठ जुड़ा हुआ है। पिछड़ो की राजनीति करने वाली समाजवादी पार्टी पर यादव वर्ग का ठप्पा लग चुका है आैर इस कड़ी में अन्य पिछड़ी जातिया हाशिये पर चली गयी है। पिछड़ो में कुर्मी, कुशवाहा-मौर्या, लोधी, शाक्य, नोनिया, राजभर आदि ऐसी कई जातियां है जिनमें काफी राजनीतिक चेतना है आैर वे अपने क्षेत्रों में अपने अधिकार को लेकर मजबूत दावेदार भी है फिर भी इनका अभी तक कोई मजबूत नेता नही बन पाया है। इसी प्रकार बसपा के साथ जुड़ा दलित समाज के चमार एवं जाटवों को ही तरजीह मिली जिससे पासी, दुसाध, धोबी, कोरी आदि जातियां अपने को ठगा महसूस कर रही है।
प्रदेश में अतिपिछड़े एवं अतिदलित विरादरी को साधने के लिए भाजपा ने काफी मशक्कत की है। केन्द्र में जहां इस वर्ग के कई नेताओं को मंत्री पद देकर साधने का प्रयास किया गया है तो प्रदेश में युवा सांसद केशव प्रसाद मौर्या को अध्यक्ष बनाकर चेहरा बनाया गया है। भाजपा की इस रणनीति का विश्लेषण किया जाय तो केशव प्रसाद मौर्या ही प्रदेश अध्यक्ष के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की पहली पसन्द होते हुए मुख्यमंत्री पद के भी चेहरा होगे। मुख्यमंत्री का प्रत्याशी घोषित न करने के पीछे भाजपा की दुविधा यह है कि कही सवर्ण वोट बैंक खिसक न जाय। केशव प्रसाद के लिए सबसे बड़ा संकट उन्ही की विरादरी के बसपा से हटे बाबू सिंह कुशवाहा एवं स्वामी प्रसाद मौर्या है। यह दोनों ही नाम विरादरी में अच्छी साख रखते है। ऐसे में भाजपा को इन्हें साथ लेकर चलने की चर्चाए है। इसी प्रकार कुर्मी विरादरी के अपने पाले में लाने के लिए भाजपा ने अपना दल की अनुप्रिया पटेल को केन्द्र में मंत्री बनाकर गोट खेली है। इसके बावजूद भाजपा में कुर्मी विरादरी के कई बड़े नेता ओम प्रकाश सिंह, विनय कटियार, प्रेमलता कटियार तथा राजकुमार वर्मा आदि इस समय पार्टी में हाशिये पर ठकेल दिये गये है। सपा ने बेनी प्रसाद वर्मा को राज्यसभा भेजकर इस वर्ग में भी अपनी पैठ बनाने की जुगत की है परन्तु बेनी का कुछ ही क्षेत्रों में प्रभाव है।
भाजपा नेतृत्व को यह इल्म है कि अति पिछड़े एवं अतिदलित वर्ग पर ज्यादा जोर देने पर सवर्ण मतदाता विदक सकता है। यही वजह है कि पूर्वी यूपी से कलराज मिश्र, मनोज सिन्हा के साथ ही महेन्द्र नाथ पाण्डेय को मंत्री बनाकर उन पर विश्वास जताया गया है। ठाकुर विरादरी से राजनाथ सिंह बड़े राष्ट्रीय नेता है तो उनके पुत्र पंकज सिंह को प्रदेश महामंत्री बनाकर समीकरण साधा गया है। ऐसे में भाजपा को अभी कायस्थ विरादरी का समीकरण ठीक करना होगा। भाजपा के लिए संकट यह है कि कांग्रेस ने जिस प्रकार चुनावी समीकरण में ब्राह्मण शीला दीक्षित, प्रमोद तिवारी, राजेश मिश्र एवं जीतिन प्रसाद को आगे किया है तो ठाकुर विरादरी से संजय सिंह, पिछड़े वर्ग से राजबब्बर तथा आर.पी.एन.सिंह को उतारा है। वैसे संजय सिंह का बेटा भाजपा से अमेठी से चुनाव लड़ने की तैयारी में है आैर इस दुविधा को देखते हुए संजय ने अपनी दूसरी पत्नी अमिता सिंह को चुनाव मैदान से हटा लिया है। ऐसी स्थिति में भाजपा को जातीय समीकरण साधने में दुधारी तलवार पर चलनें का कमाल दिखाना होगा।
19th July, 2016