यूरिड मीडिया ब्यूरो
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पूरबी उत्तर प्रदेश में एक कहावत है - : यही जुबां पान खिलाती है आैर यही जुबां जुता खिलाती है:। यह मसला न तो जुबां फिसलने का है आैर नही अति उत्साह में कुछ भी बोल जाने का। साफ है जुबां निकलेगी तो कुछ कर ही गुजरेगी। कमान से निकला तीर आैर मुंह से निकली जुबां- कर्ता के वश में नही होती। इसका असर बाद में व्यक्ति के लिए पछतावे से ज्यादा कुछ भी नही होती। यह बाते तब ज्यादा प्रभावी हो जाती है जब व्यक्ति किसी बड़े मुकाम पर हो। यह जुबां कब आैर किसे घाव दे जाएगी, कुछ भी कहना संभव नही हो पाता है लेकिन असल में तो उसका सबसे बड़ा भागीदार तो बोलने वाला ही होता है। संदर्भ है - भाजपा के युवा नेता दयाशंकर सिंह की जुबां का। यह न तो जुबां फिसलने का मामला है आैर नही अति उत्साह में प्रचार पाने की ललक।
भारत की राजनीति में नेताओं की बदजुबानी का यह पहला मामला नही है। आज देश के बड़े कहे जाने वाले नेता किसको क्या नही कह जाते लेकिन यह सब बाते कुछ दिनों बाद जनता भूल जाती है। कुछ ही दिनों की बात है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पूरे संघ परिवार को ही गांधी का हत्यारा करार दे दिया आैर अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले को संज्ञान में लिया है। नेता कई बाते ऐसे रौ में कह जाते है जिसका कोई सर-पैर नही होता है। अमरीका में रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति उम्मीदवार ट्रप ने देश में मुसलमानों के प्रवेश पर ही प्रतिबंध लगाने की बात कह दी। भारत ही नही विश्व भर में बदजुबानी तो नेताओं की एक धरोहर सी बनती जा रही है।
दयाशंकर की जुबांबाजी से केवल वही प्रभावित नही हुए बल्कि उसका खामियाजा पूरी पार्टी को आज भुगतना पड़ रहा है। बसपा कार्यकर्ताओं ने गुरूवार को दयाशंकर को ऐसी गालियों से नवाजा जो उन्होंने अभी तक कल्पना भी नही की होगी परन्तु जिस पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए वह अपने विद्यार्थी जीवन से संघर्षरत थे, वह एक ही मिनट में वर्षो की तपस्या खाकसार हो गयी। अगले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटा भाजपा नेतृत्व जहां तिनके-तिनके जोड़ने में लगा हुआ था, वह सब तार-तार होकर बिखरता नजर आ रहा है। यही नही लगातार कई चुनाव हार रहे दयाशंकर को भी इस बार आस बंधी थी कि अगले चुनाव में शायद नैया पार लग जाए परन्तु उससे पहले ही उन्होंने खुद ही अपने घर में पलीता लगा दिया। दोस्तों में मीठी जुबां आैर भाजपा में मिलनसार प्रवृति के दयाशंकर कई वरिष्ठ नेताओं के कृपा पात्र थे परन्तु अपनी प्रकृति के खिलाफ निकली इस जुबां से अब वह कुछ सफाई देने की भी स्थिति में नही है आैर नही कोई उनके साथ खड़ा होने को तैयार है। भाजपा में दयाशंकर से चिढ़ने वाले तो इसी बात से खुश है कि चलों एक पद खाली हुआ आैर वहां अपनी जुगत भिड़ायी जा सकती है तो दूसरी तरफ टिकट मांगने वाले प्रतिद्वन्दियों को इस बात की खुशी है कि एक प्रबल दावेदार पहले ही मैदान से बाहर हो गया। प्रदेश भाजपा में दयाशंकर प्रदेश मंत्री से उपाध्यक्ष के पद पर हाल ही में प्रमोट हुए थे। दयाशंकर को अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओँ से सबक लेना चाहिए कि बलिया में ही प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में नरेन्द्र मोदी ने उज्जवला कार्यक्रम में कहा था कि मैने तो ऐसे ही धनवान लोगों से गैस सब्सिडी छोड़ने की बात कही थी आैर एक करोड़ 10 लाख लोगों ने कुछ ही माह में छोड़ दिया। यह बड़े पद पर बैठे व्यक्ति के चरित्र का ही प्रभाव है कि उसके आह्वान पर जनता क्या प्रतिक्रिया देती है। नरेन्द्र मोदी ने इस संदर्भ में भारत की जनता का विश्वास जीता।
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पूरबी उत्तर प्रदेश में एक कहावत है - : यही जुबां पान खिलाती है आैर यही जुबां जुता खिलाती है:। यह मसला न तो जुबां फिसलने का है आैर नही अति उत्साह में कुछ भी बोल जाने का। साफ है जुबां निकलेगी तो कुछ कर ही गुजरेगी। कमान से निकला तीर आैर मुंह से निकली जुबां- कर्ता के वश में नही होती। इसका असर बाद में व्यक्ति के लिए पछतावे से ज्यादा कुछ भी नही होती। यह बाते तब ज्यादा प्रभावी हो जाती है जब व्यक्ति किसी बड़े मुकाम पर हो। यह जुबां कब आैर किसे घाव दे जाएगी, कुछ भी कहना संभव नही हो पाता है लेकिन असल में तो उसका सबसे बड़ा भागीदार तो बोलने वाला ही होता है। संदर्भ है - भाजपा के युवा नेता दयाशंकर सिंह की जुबां का। यह न तो जुबां फिसलने का मामला है आैर नही अति उत्साह में प्रचार पाने की ललक।
21st July, 2016