विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया)
लखनऊ:-
मुलायम सिंह यादव कि यह कैसी चेतावनी, धमकी या सुझाव है। घर का विवाद तो घर में ही सुलझाना समझदारी होती है परन्तु यहां तो उलटी धारा बह रही है। घर में चुप्पी आैर बाहर ढिढोरा। न भाई को समझा रहे हैं आैर नही बेटे की सुन रहे हैं। मुलायम का यह व्यवहार किसका भला करेगी। मुलायम समझदार आैर जनता की नब्ज पहचानने वाले अनुभवी नेता है लेकिन उनके क्रियाकलाप तो महाभारत काल के यदुबंशी इतिहास की ही पुनरावृति कर रहे हैं। यादव परिवार के इस कलह को केवल पारिवारिक ही करार नही दिया जा सकता है, यह राजनीतिक आैर सत्ता पर पकड़ बनाने की ललक है। यह मुलायम की विरासत को हड़पने का घमासान है। दुखद यह है कि यह होड़ उस समय शुरु हुई है जब कुछ ही माह बाद विधानसभा का चुनाव होना है आैर सत्तारूढ़ दल होने के नाते उसको बरकरार रखने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की है।
समाजवादी पार्टी का घमासान राजनीतिक न होकर अब पारिवारिक पृष्ठिभूमि में सिमट कर रह गया है। वैसे भारत में समाजवाद नाम की कोई विचारधारा नही है बल्कि उसके नाम पर पार्टी का गठन है आैर कब्जा एक ही परिवार का है। मुलायम सिंह के पुराने समाजवादी साथी अब नही रहे आैर उनकी राजनीतिक गतिविधिया भी समाजवादी क्रियाकलापों से दूर है। मुलायम परिवार का संघर्ष भाइयों में न होकर पुत्रों के कारण शुरु हुआ। गैर राजनीतिक परिवार के मुलायम ने भारतीय राजनीति में एक ऐसा मुकाम हासिल किया कि उनके किसी भाई को उनके सामने चुनौती के लिए खड़ा होना भी संभव नही है। मुलायम के परिवार अभी तक जो लोग भी सांसद से मंत्री तक विभिन्न पदों पर पहुंचे है, वह सब मुलायम की कृपा है। समाजवादी पार्टी में भी मुलायम को चुनौती देने वाला कोई नही है आैर ना ही उनके परिवार को छोड़ कोई अन्य प्रमुख पद के लिए दावा कर सकता है। मुलायम परिवार का सत्ता संघर्ष लगभग एक दशक पुराना है। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत मिलने के बाद मुलायम ने पारिवारिक सत्ता संघर्ष को खत्म करने के लिए अपने ज्येष्ठ पुत्र अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाकर अपनी राजनीतिक विरासत का संकेत दे दिया। वैसे उत्तर प्रदेश में मुलायम के बाद शिवप्रसाद यादव समाजवादी पार्टी ने दूसरी शख्सियत माने जाते थे। वैसे दावेदारी तो आजम खां भी अप्रत्यक्ष रूप से जताते थे परन्तु वह हमेशा ही खुशफहमी के ही शिकार रहे आैर पार्टी छोड़ने के बाद उन्हें अपनी राजनीतिक ताकत का भी एहसास हो गया।
अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही दिनों बाद मुलायम परिवार का अन्दरूनी संघर्ष खुलकर सतह पर आने लगा। यही वजह रहा कि बीते चार वर्ष से ज्यादा समय हर तीन माह पर मुलायम कोई न कोई चेतावनी आैर धमकी अखिलेश का सार्वजनिक मंचों से देते आ रहे है। यह मुलायम की सोची चाल है या वृद्धावस्था का असर जो अपने अन्य पारिवारिक सदस्यों के दबाव में अखिलेश पर सार्वजनिक ताने कसते है। पहले तो अखिलेश आैर समाजवादी समर्थकों ने पिता की बेटे को डांट समझ कर उसे भूला दिया परन्तु अब तो स्थितियां दिनों-दिन खराब होती जा रही है। यही वजह रही कि कौमी एकता दल के विलय को लेकर अखिलेश ने खुली चेतावती दे दी। अब उसी को प्रतिष्ठा का विषय बनाकर शिवपाल सार्वजनिक तौर पर इस्तीफा देने की बात कहकर दबाव की राजनीति कर रहे है। क्या शिवपाल यादव का यह दायित्व नही था कि कौमी एकता के विलय की घोषणा करने से पहले सपा का प्रदेश अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इसकी जानकारी देते। समाजवादी सरकार में भूमाफियाओं, अपराधियों तथा कब्जेदारों के बारे में अखिलेश से ज्यादा शिवपाल जानते है आैर यह भी जानते है कि उन्हें पार्टी में किसका संरक्षण है। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बड़ी भूमिका मिलते है अखिलेश अपराधियों को पार्टी में लिए जाने के विरोधी थे अौर आज भी है। पिछले चुनाव में अखिलेश की इसी छवि का लाभ भी मिला। चार वर्ष से ज्यादा सरकार में रहते किसी अपराधी को संरक्षण देने का अखिलेश पर आरोप नही लगा। प्रदेश की कानून-व्यवस्था खराब होने का प्रमुख कारण पार्टी के ही कई वरिष्ठ जिम्मेदार रहे जिन अखिलेश सख्त कार्रवाई नही कर सकते है। ऐसे में जबकि चुनाव सामने है, समाजवादी के कुछ वरिष्ठ प्रदेश के जाने-माने माफियाओं को पार्टी में शामिल कर जीत हासिल करने का ख्वाब देख रहे है। मुसलमानों के रहनुमा कहलाने वाले मुल्ला मुलायम ( यह मुलायम का ही दिया नाम है), इतना कमजोर हो गये है कि मुसलमान उनके नाम पर समाजवादी पार्टी को वोट न देकर किसी मुस्लिम माफिया के नाम पर वोट देगा। इससे साफ है कि चुनाव नजदीक देखकर सपा के वरिष्ठ हताशा मंे आ गये है जबकि अखिलेश को उनसे ज्यादा अपने काम पर विश्वास है। सपा आैर परिवार का मुखिया होने के नाते मुलायम सिंह यादव का यह दायित्व है कि सार्वजनिक तौर पर ऐसी धमकियां देना बंद कर कमरे में बैठकर, सबसे बात कर निर्णय करे। मुलायम को समझना होगा कि सत्ता की विरासत एक को ही मिलती है आैर उसको बांटने का प्रयास करने का मतलब सब कुछ बिखर जाना है।
16th August, 2016