मुलायम को 'राम-गोपाल' आइना
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17 अक्टूबर 2016
विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया)
लखनऊ। राजनीतिक जीवन के लगभग 60 वर्षो में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव को पहली बार अपना चेहरा दिखायी दिया है। सभी प्रतिद्वन्दियों को समय-समय पर दोहरी चाल से मात देने वाले मुलायम अब की बार अपनी ही चाल में फंसकर रह गये है। मुलायम को यह आइना कोई बाहरी या प्रतिद्वन्दी ने नही दिखाया है बल्कि यह अपने ही घर का है। इस आइने में व्यक्ति के चेहरे के कई विद्रुप चिन्ह एवं भाव भी परिलक्षित हो जाते है जिन्हें आदमी स्वयं तो देख नही पाते आैर दूसरे देखने वाले भय या लालच में बताते नही। इसकी सच्चाई सामने आते ही परिवार तथा नजदीकी संबंधियों की भी कई विकृतियां जाहिर हो जाती है। यदि ऐसा हुआ तो यादवी परिवार में वर्षो से दबी रंजिश की कड़वाहट भयंकर गन्दगी का सैलाब लाएगी। इससे सामाजिक विकृतियां भी पैदा होगी। यही वजह है कि यादव परिवार के चिन्तक ने कुछ ही शब्दों में वर्तमान से लेकर भविष्य का खाका खींच दिया है। रामगोपल के इस पत्र के बाद यादव परिवार में नये मोर्चे पर संग्राम छिड़ गया है।
पढ़बे-लिखले होई खराब-- भारतीय समाज के ग्रामीण इलाकों में यह कहावत रही है कि ""पढबे-लिखले होईब खराब-खेती कइले घर आई अनाज""। दशकों पहले की इस कहावत को आज बढ़ते शिक्षित समाज के लिए भले ही अपरिहार्य हो परन्तु देश की 75 प्रतिशत शिक्षित युवा आबादी पर यह आज भी फिट बैठती है। पीएचडी, इंजीनियरिंग आैर ग्रेजुएशन किया युवा चपरासी के लिए आवेदन करने के बाद भी बेरोजगार ही घूमता रहता है। घटती खेती का क्षेत्रफल अब आम परिवारों के जीवन यापन के लिए समुचित नही रह गया है। पढ़ा-लिखा युवा खेती कार्य न कर शहर में मजदूरी करने को विवश है। यहां तक कि एमबीए एवं इंजीनियरिंयग की लाखो रूपये फीस देने के बाद भी 7-8 हजार रूपये मासिक की नौकरी से समय गुजारने को बाध्य होना पड़ रहा है।..आगे क्लिक करे..
..ऐसे में पिछड़े ग्रामीण सामाजिक पृष्ठिभूमि के पराछाई वाले राजनेता रामगोपाल की भूमिका भी इस समय प्रदेश के सबसे शक्तिशाली यादव परिवार में बेरोजगार पढ़े-लिखे की ही भांति है। रामगोपाल की अपनी कोई राजनीतिक पृष्ठिभूमि नही है आैर वे मुलायम सिंह यादव की कृपा से ही राज्यसभा आैर राजनीति में बने हुए है। वैसे अन्य राजनीतिक दलों से पिन्ड छुड़ाकर मुलायम सिंह ने जब अपना राजनीतिक दल बनाया तो रामगोपाल ही उनके चिन्तक माने जाते थे। तबसे रामगोपाल सपा के वैचारिक सिपहसालार माने जाते थे लेकिन पारिवारिक कलह में जब मुलायम सिंह ने अपने राजनीतिक संघर्ष का साथी अपने सगे भाई शिवपाल यादव को बनाया तो अचानक चचेरे राम गोपाल मक्खी की तरह निकाल बाहर कर दिये गये। इससे साफ हो गया कि लाठी के साथ लाठी चलाने वाला ही सही हिमायती कहा जाता है जबकि कलम से साथ देने वाले को हाशिये पर डाल दिया जाता है।