लखनऊ। समाजवादी यदुबंशी परिवार का कलह रविवार की सुबह ही पूरे शबाब पर पहुंच गयी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विधायकों, सांसदों तथा अन्य समर्थकों की अल्पकालिक बैठक के बाद अचानक जो बड़े फैसले लिए, उससे न केवल अपनी ताकत दिखायी बल्कि सपा मुखिया एवं अपने पिता को यह भी एहसास करा दिया कि उनके असली राजनैतिक वारिस वही है आैर अब वह कमान संभालने को तैयार है। इसके पहले जब परिवार में विवाद की सुगबुगाहट हुई थी तो पार्टी कार्यालय में कार्यलय में कार्यकर्ताओं से बातचीत करते हुए मुलायम सिंह यादव ने शंका पैदा की थी कि शिवपाल ने पार्टी छोड़ दी तो आधी पार्टी उसके साथ चली जाएगी। रविवार की बैठक के बाद अखिलेश ने साबित कर दिया कि प्रदेश के समाजवादी उनके साथ है आैर संगठन में भी शिवपाल की कोई हैसियत नही है। अखिलेश ने अमर सिंह को सीधे दलाल कहकर आैर उनके समर्थकों को पार्टी से बाहर करने का संकेत देकर अप्रत्यक्ष रूप से शिवपाल ही हमला किया। मुख्यमंत्री का संकेत था कि अमर सिंह जैसे लोगों के जाल में फंसे शिवपाल दलालों, अपराधियों को संरक्षण दे रहे है। विधानमंडल दल की बैठक में मुख्यमंत्री की ईमानदारी की जिस तरह कसीदे कढ़े गये, उससे भी साबित है कि सपा की भ्रष्टाचार वाली छवि बनाने में शिवपाल समर्थकों का हाथ है।
उल्टा पड़ा शिवपाल का दांव--
मैनपुरी की जनसभा में भूमाफियाओं तथा भू-कब्जा करने वालों की बात कहकर पार्टी से इस्तीफा देने की बात कहकर शिवपाल यादव ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने की बात कहकर शिवपाल ने पहली बार यह उजागर किया कि सरकार तथा यदुबंशी परिवार में सब कुछ ठीक नही चल रहा है। तब इस बात को लोगों ने हल्के में लिया था। इसके बाद माफिया मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता का सपा में विलय कराने को लेकर जिस प्रकार जिद्द दिखायी गयी, उससे यदुबंशी परिवार की कलह खुलकर सामने आ गयी। वर्ष 2012 की विधानसभा चुनाव के पहले से ही अखिलेश यादव ने अपराधी विरोधी जो अपनी छवि बनाने का प्रयास किया, उस पर समय-समय पर शिवपाल तथा उनके समर्थक टिंच करने का प्रयास कर रहे थे। सरकार बनने के बाद भी अखिलेश इस मसले पर सतर्क रहे जबकि यादवी साम्राज्य के विस्तार में वह पिता से 10 कदम आगे निकल गये। कौमी एकता के विलय के सवाल पर मुख्यमंत्री को विश्वास में लिए बगैर जिस प्रकार कार्रवाई हुई, उसके नतीजे में पहली बार अखिलेश ने कड़ा कदम उठाते हुए शिवपाल का कद घटा दिया आैर इसमें मुख्य भूमिका निभाने वाले बलराम यादव को मंत्रिमंडल से बरखास्त कर दिया। सपा का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद शिवपाल ने अखिलेश समर्थक युवा विंग के सभी पदाधिकारियों को पार्टी से बरखास्त कर दिया परन्तु रविवार को मुख्यमंत्री ने शिवपाल को मंत्रिमंडल से हटाकर अपनी ताकत का एहसास करा दिया। इस प्रकार शिवपाल का पिछले तीन माह से हर राजनीतिक दांव उलटा पड़ता जा रहा है।
यादवी लोक प्रियता में अखिलेश, मुलायम पर भारी--
यादवी बर्चस्व से ही मुलायम का राजनीतिक कद बढ़ा है। उत्तर प्रदेश में यादवों का एकछत्र नेता बनने के बाद ही मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन किया। वर्ष 1990 में मुख्यमंत्री रहते मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवायी जिससे वह मुल्ला मुलायम बने। इस यादव-मुस्लिम गठजोड़ ही सपा की राजनीतिक ताकत है। वर्तमान राजनीतिक दौर में यादवी बर्चस्व में अखिलेश यादव अपने पिता से बहुत आगे निकल गये है। साढ़े चार वर्ष के शासन में प्रदेश में जितनी भी नियुक्तियां हुई, उसमें 60 से 80 भर्तियां यादव समुदाय को मिली। यहां तक कि लोक सेवा आयोग जैसी पीसीएस की नौकरियों में भी सारे मानकों को धत्ता बताते हुए यह काम किया गया। ऐसे में आज प्रदेश का हर यादव का आदर्श अखिलेश बन गये है। प्रदेश के इस सबसे बड़े यदुबंशी परिवार में पिछले दो माह से जो कलह मची है, उसमें भी ज्यादातर यादवों की सहानुभूति अखिलेश के ही प्रति है। यहां तक कि मुलायम समर्थक बुजुर्ग यादव नेता भी अब अखिलेश के प्रति सहानुभूति जता रहे है आैर यह खुलकर कहने लगे है कि नेता जी (मुलायम) स्त्री मोह में (पत्नी साधना) बड़े बेटे के साथ अन्याय कर रहे है। इस प्रकार युवा से बुजुर्ग तक ज्यादातर यादवों की सहानुभूति अखिलेश के साथ ही जबकि शिवपाल को अब यादव अपना नेता ही ही नही मानता है।
समझौते का फार्मूला--
सपा के बरिष्ठ नेताओं विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय, नरेश अग्रवाल तथा अन्य कई नेताओं ने मुख्यमंत्री की विधायकों के साथ बैठक की खबर के बीच मुलायम सिंह यादव से मुलाकात कर मामले को सुलझाने का प्रयास किया परन्तु उसके पहले ही अखिलेश ने कई मंत्रियों तथा अमर सिंह की नजदीकी जया प्रदा को बरखास्त कर अपने तेवर साफ कर दिये। बाद में शिवपाल भी मुलायम सिंह यादव से मिले परन्तु वहां से बिना सरकारी गाड़ी से लौटे। बाद में कई मंत्री लगातार मुलायम सिंह यादव से मिलते रहे। अखिलेश के कड़े तेवर से मुलायम खेमा सकते में है तो शिवपाल समर्थक सड़कों पर विलाप कर रहे है। सपा के चिन्तकों का कहना है कि अब समझौते का एकमात्र यही रास्ता है कि अखिलेश को प्रदेश के चुनाव तथा प्रत्याशी चयन का पूरा अधिकार सौंपा जाय आैर बाद में मुलायम सिंह यादव उसे राजनीतिक वारिस घोषित करे। पार्टी से बरखास्त अखिलेश समर्थकों को वापस लिया जाय। अमर सिंह को पार्टी से निकाले जाने के साथ ही शिवपाल की राजनीतिक दखलन्दाजी बंद हो आैर उन्हें राज्य से हटाकर राष्ट्रीय राजनीति में ले जाया जाय।
अखिलेश की गायत्री से गुप-चुप--
विधायकों से बैठक के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने काफी देर तक मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति के साथ अकेले वार्ता की। गायत्री अभी तक शिवपाल के नजदीकी माने जाते रहे है परन्तु 7 मंत्रियों की बरखास्तगी में गायत्री बच गये है। सूत्रों का कहना है कि गायत्री के पास पहले खनन मंत्रालय थे जिससे हजारों करोड़ो की कमाई की चर्चा रही है। राजनीतिक हलके में यह काफी दिनों से चर्चा रही कि गायत्री इस काली कमाई को सीधे तौर पर मुलायम सिंह की पत्नी साधना को पहुंचाते थे। इसी दबाव के कारण मुख्यमंत्री चाहते हुए भी कभी गायत्री के खिलाफ कार्रवाई नही कर पाये। अब परिवार तथा सरकार में चल रही उठापटक के बीच मुख्यमंत्री आैर गायत्री के बीच मुलाकात में खनन के अवैध धन के लेन-देन पर ही विस्तृत चर्चा हुई। मुख्यमंत्री को अन्देशा है कि परिवार में उनके विरोधी खनन की अवैध कमाई का उनके विरोध राजनीतिक इस्तेमाल कर सकते है।
शिवपाल का वार--
मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी के बाद सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के घर से लौटने के बाद शिवपाल यादव ने चचेरे भाई राम गोपाल पर हमला करते हुए कहा कि जिस पर नेता जी ने सर्वाधिक भरोसा जताया, वही आदमी आज अखिलेश को आगे कर पार्टी को तोड़ने में लगा हुआ है। शिवपाल ने कहा कि राम गोपाल के उनके बेटे के खिलाफ सीबीआई जांच चल रही है। उससे बचने के लिए बीजेपी के इशारे पर काम कर रहे हैं।
विधायकों से बैठक के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने काफी देर तक मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति के साथ अकेले वार्ता की। गायत्री अभी तक शिवपाल के नजदीकी माने जाते रहे है परन्तु 7 मंत्रियों की बरखास्तगी में गायत्री बच गये है। सूत्रों का कहना है कि गायत्री के पास पहले खनन मंत्रालय थे जिससे हजारों करोड़ो की कमाई की चर्चा रही है। राजनीतिक हलके में यह काफी दिनों से चर्चा रही कि गायत्री इस काली कमाई को सीधे तौर पर मुलायम सिंह की पत्नी साधना को पहुंचाते थे। इसी दबाव के कारण मुख्यमंत्री चाहते हुए भी कभी गायत्री के खिलाफ कार्रवाई नही कर पाये। अब परिवार तथा सरकार में चल रही उठापटक के बीच मुख्यमंत्री आैर गायत्री के बीच मुलाकात में खनन के अवैध धन के लेन-देन पर ही विस्तृत चर्चा हुई। मुख्यमंत्री को अन्देशा है कि परिवार में उनके विरोधी खनन की अवैध कमाई का उनके विरोध राजनीतिक इस्तेमाल कर सकते है।