विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया) लखनऊ।भाई और बेटे में खून तो एक ही बंश का होता है परन्तु विरासत की जंग में भाई हमेशा ही अकेला हो जाता है और बेटा बाजी मार जाता है। त्रेता युग के दशरथ नन्दनों (राम, भरत, लक्ष्मण एवं शत्रुध्न) के भ्रात प्रेम को छोड़ दिया जाय तो भाई से रिश्ता तभी तक निभता है जब तक दूसरी पीढ़ी बराबर खड़ी नही होती। भाई-भाई का प्रेम हमेशा से ही विरासत की जंग मे मात खाती है और पुत्र प्रेम हावी हो जाता है। त्रेता युग मे ही भाई के रूप मे विभिषण के दगाबाजी का भी वृतान्त है जबकि उसी स्थिति में दूसरा भाई कुम्भकरण तथा बेटा मेघनाद अपने अग्रज भाई तथा पिता का साथ नही छोड़ते और मृत्यु का वरण करते है। यही वजह है कि भारतीय जन मानस में अभी तक भाई पूर्ण विश्वास के पात्र नही हो पाते। विभिषण को मर्यादा पुरूषोत्तम राम का संरक्षण एवं अभयदान मिलने के बाद भी वह हजारों वर्ष बाद भी सम्मान का पात्र नही हो पाया। भारतीय जन मानस में कोई भी हिन्दू परिवार आज तक अपने बेटे का नाम विभिषण नही रखता जबकि दगाबाजी करने वाले राजाओं में जयचन्द एवं मान सिंह की भी मिसाले दी जाती है परन्तु कुछ नाम इस रूप में अब भी दिखायी देते है। इनकी दगाबाजी अपने समाज और राज्य की जनता से थी।
बलि-बलि जाऊ मोरे बचवा अखिलेश--
बड़े पुत्र के प्रति पिता का मोह कुछ ज्यादा ही होता है। यह दृष्टान्त गुरूवार को मुख्यमंत्री अखिलेश के समाजवादी शाही रथ के रवाना करते समय पिता मुलायम सिंह यादव के चेहरे पर साफ झलक रही थी। पिछले दिनों अखिलेश को लेकर मुलायम ने जो कुछ भी तंज कसा या कश मरोरे परन्तु ऐन मौके पर मुलायम का पितृत्व उमड़ पड़ा और उन्होंने अपनी विरासत के राजकुमार को शुभ तिलक लगाकर चुनावी जंग में फतह हासिल करने के लिए रवाना ही नही किया बल्कि शुभ कामनाओं के साथ ही अपने अनुभवों का पिटारा भी खोल दिया। मुलायम ने यह कहकर कि समाजवादी सही बात कहने से नही हिचकते,अखिलेश के पिछले दिनों अमर सिंह एवं चचा शिवपाल के साजिश की शिकायतों पर अप्रत्यक्ष रूप से सहमति जता दी। मुलायम ने यह कहकर कि समाजवादी संघर्ष की जमीन से पैदा होते है, अखिलेश के विकास रथ को नयी ताकत दी।
शिवपाल के चेहरे से नही छिप सका दिल का दर्द--
सामान्य तौर पर बिना बात के भी मुस्कराने वाला शिवपाल सिंह यादव का चेहरा आज मंच पर मौजूद होते हुए भी पूरे समय हताश एवं मायूस रहा। अखिलेश की रथयात्रा में उमड़ा जन सैलाब के साथ ही पूरे प्रचार तंत्र में शिवपाल की अनदेखी का अपमान उनके चेहरे से साफ झलक रहा था। जो थोड़ी कसर थी, वह अखिलेश ने नाम भी न लेकर पूरी कर दी। हालात कुछ ऐसे बने कि अखिलेश की रथयात्रा की बधाई देने के बोल भी शिवपाल के मुख से नही निकल रहे थे। सफलता का आर्शिवाद देते हुए शिवपाल की आत्मा जैसे अन्दर से एक अनजाने भय से कांप रही थी। इसके विपरीत अखिलेश पर सत्ता का राजमद और सबकों किनारे कर अकेला चलने का गुमान साफ झलक रहा था।
अखिलेश ने दिखायी राजनीतिक ताकत--
पिता मुलायम सिंह यादव के पद चिन्हों पर चलते हुए अखिलेश ने भी राजधानी लखनऊ में पहली बार अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास कराया। इस एक कार्यक्रम से अखिलेश ने जहां प्रतिद्वन्दी राजनीतिक दलों को अपनी लोक प्रियता तथा संगठन की कार्यक्षमता का एहसास कराया, वही घर के अन्दर हमेशा नाराजगी जाहिर करने वाले पिता मुलायम सिंह यादव तथा चुनाव के समय परिवार में विभिषण की भूमिका में आये चचा शिवपाल यादव तथा शकुनि अंकल अमर सिंह को भी यह बता दिया कि अब बच्चा बड़ी ही नही हो गया है बल्कि बहुत आगे निकल गया है। प्रतिद्वन्दी यह कहकर आलोचना कर सकते है कि यह सब कुछ सत्ता और पैसे की भीड़ थी परन्तु वर्तमान राजनीति में यह संसाधन सभी दलों के नेताओं के पास मौजूद है। जिसने इसका सही इस्तेमाल किया, वह जनता की नजर में चढ़ जाता है।
सपा की ताकत बने अखिलेश--
सपा की 25 वीं वर्षगांठ के जश्न से दो दिन पहले अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास कराकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने समाजवादियों को यह संदेश दे दिया है कि पिता मुलायम के बाद अब कमान उन्ही के हाथों में आने वाली है। सपा की कमान संभालने को लेकर पिछले तीन माह से यदुबंश में जो कलह मची थी, वह अखिलेश के आज के शक्ति प्रदर्शन के बाद अन्य सभी नेता शिवपाल एवं अमर सिंह आदि बौने साबित हो गये है। समाजवादी संस्थापकों में मुखिया मुलायम सिंह यादव के अलावा अन्य कोई भी व्यक्ति आज अखिलेश के मंच पर उपस्थित नही था। रामगोपाल यादव को कुछ दिन पहले ही वरखास्त किया जा चुका है तो आजम खां यदुबंशी परिवार की कलह में अपना ही राग अलापने में लगे हुए है। आजम का दर्द यह है कि उनकी अनदेखी कर अखिलेश स्वयं ही मुसलमानों के रहनुमा बनने में लगे है। जहां तक बात रही अंकल अमर की तो पार्टी में रहते हुए भी वह न तो घर के है और नही घाट के। यदुबंशी कलह में अमर सिंह की भूमिका जिस प्रकार खलनायक के रूप में उभर कर सामने आयी है, उससे साफ है कि अखिलेश के ताकतवर होते ही, वह दूध की मक्खी की तरह बाहर कर दिये जाएगे।
विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया) लखनऊ।भाई और बेटे में खून तो एक ही बंश का होता है परन्तु विरासत की जंग में भाई हमेशा ही अकेला हो जाता है और बेटा बाजी मार जाता है। त्रेता युग के दशरथ नन्दनों (राम, भरत, लक्ष्मण एवं शत्रुध्न) के भ्रात प्रेम को छोड़ दिया जाय तो भाई से रिश्ता तभी तक निभता है जब तक दूसरी पीढ़ी बराबर खड़ी नही होती। भाई-भाई का प्रेम हमेशा से ही विरासत की जंग मे मात खाती है और पुत्र प्रेम हावी हो जाता है। त्रेता युग मे ही भाई के रूप मे विभिषण के दगाबाजी का भी वृतान्त है जबकि उसी स्थिति में दूसरा भाई कुम्भकरण तथा बेटा मेघनाद अपने अग्रज भाई तथा पिता का साथ नही छोड़ते और मृत्यु का वरण करते है। यही वजह है कि भारतीय जन मानस में अभी तक भाई पूर्ण विश्वास के पात्र नही हो पाते। विभिषण को मर्यादा पुरूषोत्तम राम का संरक्षण एवं अभयदान मिलने के बाद भी वह हजारों वर्ष बाद भी सम्मान का पात्र नही हो पाया। भारतीय जन मानस में कोई भी हिन्दू परिवार आज तक अपने बेटे का नाम विभिषण नही रखता जबकि दगाबाजी करने वाले राजाओं में जयचन्द एवं मान सिंह की भी मिसाले दी जाती है परन्तु कुछ नाम इस रूप में अब भी दिखायी देते है। इनकी दगाबाजी अपने समाज और राज्य की जनता से थी।