यूरिड मीडिया डेस्क: डा. अखिलेश दास गुप्ता नहीं रहे ? यह बात अभी भी दिल मानने को तैयार नही है। लेकिन सत्य-सत्य होता है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। दिल माने या न माने सत्य तो यही है कि नहीं रहा यारों का यार।
टप्पू से डा. अखिलेश दास गुप्ता के रूप में शोहरत शामिल करने वाले डा. दास के बारे में विरोधी भी कहते थे कि यारों का यार है। समय का चक्र है या फिर संयोग। छात्र जीवन के मित्र अनिल चतुर्वेदी जिन्होने 1987 में टप्पू के रूप में डा. दास से मुझे मिलवाया था। तीन दशक बाद 12 अप्रैल 2017 को डा. अखिलेश दास गुप्त के निधन की सूचना भी उन्होंने दी।
डा.दास से 1987 में मेरी मुलाकात लीला टाकीज के कार्नर की एक दुकान के पास अनिल चतुर्वेदी एवं शैलेन्द्र मल्ल ने करायी थी। विश्व विद्यालय में चुनाव चल रहा था रमेश श्रीवास्तव छात्र संघ के चुनाव लड़ रहे थे। अनिल चतुर्वेदी एवं शैलेन्द्र मल्ल और हम तीनो लाल बहादुर शास्त्री छात्रावास मे रहते थे और तत्कालीन लखनऊ के आर.टी.ओ. लल्लन सिह के पुत्र संजय सिंह सहित पूर्वांचल से जुड़ छात्रो की टीम रमेश श्रीवास्तव को चुनाव लड़ा रही थी। पैसे का अभाव था पांच सौ लेकर हजार रूपये भी चुनाव खर्च के लिए जुटाये जाते थे। इसी चुनावी चंदे के सिल-सिले में टप्पू से मुलाकात हुई थी। मुझे आज भी याद है कि चन्दे की पहली मद्द के लिए लीला टाकीज के पास टप्पू को ढूढंने के लिए कई चक्कर लगाने पड़े। यही पहली मुलाकात थी। तिथि तो याद नहीं लेकिन महीना शायद सितम्बर 1987 का रहा। अनिल चतुर्वेदी, शैलेन्द्र मल्ल एवं संजय सिंह और मै चारों खड़े थे तभी टप्पू बाबू आये और चुनाव में आर्थिक मदद किया। तीन दशक वर्ष पूर्व मदद के लिए उसे यह हाथ यारों एवं गरीबों व जरूरत मन्दो के लिए अंतिम समय तक उठे ही रहे। यह माना जाता था कि मद्द के लिए जो भी आया डा. दास ने उसे निराश नहीं किया।
आज डा.दास हमारे बीच नही है लेकिन उनकी यादे आज भी ताजा है। रात में 12 बजे के बाद बजने वाली मोबाइल घंटी सिर्फ एवं सिर्फ यारो के यार डा. दास की ही होती थी। जब भी 12 बजे के बाद मोबाइल बजता तो फोन उठाते ही डा. साहब से मेरा सम्बोधन शु डिग्री होता। उधर से आवाज होती राजेन्दर भाई या पंडित जी! इसके बाद बातों का सिल-सिला शुरू डिग्री होता और अपने-अपने तर्काे के साथ समाप्त हो जाता। डाक्टर साहब को पता था मेरा चुनाव एवं चुनावी आंकड़ों में बहुत रूचि है। इसलिए विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा अथवा स्थानीय निकाय/ इन सभी चुनावों में वोट के आंकड़ों को लेकर डा. दास के अपने-तर्क होते थे। पूरे प्रदेश की जानकारी रखते थे और बड़े-बड़े नेताओं से लेकर छोटे-छोटे प्रत्याशियों के चुनाव क्षेत्रों के बारे पूरी सुचनाए होती और उनकी स्पष्ट राय भी होती थी। हांलाकि हम डा. साहब के तमाम आंकड़ों एवं चुनावी समीकरण के तर्काे से सहमत नही होते थे और अपने तर्क रखने के साथ अन्त में मै यही कहकर फोन काटता कि ष्डा. साहब आपका नेटवर्क बहुत बड़ा है आपके तर्क सही हो सकते है लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर मैं सहमत नही हंु।
हाल ही मै सम्पन्न हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में डा. साहब से अनगिनत वार्ता हुई । डा. साहब के अपने तर्क थे कि कांग्रेस एवं सपा गठबन्धन 250 से अधिक सीटे जीतेगी। जबकि मै उनके तक से सहमत नही होता। लेकिन डा. साहब कभी भी 250 से कम सीट मानने को तैयार नही थे। चुनाव के दौरान डा.साहब ने इलाहाबाद, गोरखपुर, कानपुर, एवं आगरा और अन्य जनपदों में दौरा किया। दौरा करके एवं मीटिंग करने के बाद रात में डाक्टर साहब के चुनावी तर्क शु डिग्री हो जाते। एक-एक सीट एवं गठबन्धन के प्रत्यशाी का नाम लेकर जीत-हार की संख्या बताते और यह संख्या 250 से अधिक ही होती। लखनऊ शहर की सीटो पर गठबन्धन के पक्ष में तमाम तर्क थे। चुनाव में मै भी निरन्तर जनपदों का दौरा कर रहा था। बिजनौर से लेकर देवारिया एवं बुन्देलखण्ड तक चुनावी माहौल का नजदीकी से अध्य्यन करता रहा। चार चरणें में 262 सीटों का चुुनाव पूरा होने के बाद 24 फरवरी 2017 को हमने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजबब्बर जी और डा. दास एवं सुशील दूबे को एक एस.एम.एस. किया। एस.एम.एस. में मैने चुनावी माहौल और मतदान के ट्रेन्ड को देखते हुए लिखा था कि बसपा एवं सपा कांग्रेस गठबन्धन के मुस्लिम वोट की मुहिम से हिन्दू वोटर पोलराइज हो गया। बसपा एवं सपा कांग्रेस गंठबन्धन को नुकसान।
भाजपा की मेजोरिटी। पांचवे एवं छठे व सांतवे चरण चुनाव की 141 सीटों पर भाजपा का अप्रत्याशित लाभ होने जा रहा है। मेरा एस.एम.एस. मिलने के बाद डा. साहब ने मुझे वाट्सअप भेजा कि सपा-कांग्रेस गठबन्धन 250 से अधिक सीटे जीतेगी।
एस.एम.एस. एवं वाट्सअप के बाद डाक्टर साहब लगातार मुझे यह बताने का प्रयास किया कि हमारे तर्क गलत है। लेकिन 11 मार्च 2017 को परिणाम आने के बाद डा.दास ने फोन करके मेरे तर्क को स्वीकार किया और कहा कि पंडित जी आपके साथ बैठेगे? लेकिन शायद नियत को यह मंजूर नही था। चुनाव परिणाम आने के बाद फोन पर वार्ता हुई लेकिन पंडित जी को तीन दशक वर्ष पुराने मित्र डाक्टर दास के साथ बैठने का अवसर नही मिला।
मैने पहले ही लिख दिया कि डाक्टर साहब के साथ बीते लमहों को लिखने में एक पुस्तक तैयार हो जाएगी। लेकिन कुछ यादगार लमहे जरूर मै उल्लेख करूंगा कि डाक्टर साहब े यारों के यार थे। रिश्ते निभाते थे। उनका यही प्रयास होता कि दरवाजे पर आया मद्द मांगने वाला खाली हाथ न लौटे। 22 वर्षाे की लम्बी सेवा के बाद मैने सहारा इण्डिया ग्रुप से अलग हुआ। एक दिन सुशील दूबे का फोन आया कि राजेन्द्र भाई क्या कर रहे हो। पता चला सहारा छोड़ दिया। हमने कहा हां। श्री दुबे ने कहा आइए साथ में वॉयस ऑफ लखनऊ में बैठिये। इस वार्ता के बाद डा. दास से मिला और एक वर्ष तक भाई सुशील दूबे और कलाम खांन , सुधाकर तिवारी ,देवेन्द्र सिंह, रतलानी एवं वॉयस ऑफ लखनऊ एवं ष्कौमी खबरोंष् की टीम के साथ समूह सम्पादक के रूप में कार्य किया। संस्थान से जुड़ने के बाद डा.साहब से रात्रि में प्रतिदिन वार्ता जारी रही। 31 मार्च को डाक्टर साहब का जन्म दिन था,बधाई दिया। डा.साहब फिर बोले पंडित जी चुनाव में हार के कारण क्या-क्या थे? आप अपनी रिपोर्ट बना दे। कांग्रेस में हार के कारणों की समीक्षा बैठक 15-16 अप्रैल को होगी। मैने रिपोर्ट बना दिया वार्ता हुई , और 14 अप्रैल 2017 को मिलने का समय तय हुआ।
मेरे मित्र अनिल चतुर्वेदी जिन्होने तीन दशक पूर्व 1987 में डा. दास से मिलवाया था। समय का चक्र देखिये। अनिल चतुर्वेदी जो अब वसुन्धरा गाजियाबाद में रहते है। एक कार्यक्रम में शामिल होने लखनऊ आये थे। सुबह नौ बज रहे थे मेरे आवास अलींगज में बैठे थे। उनकी निगाह विधानसभा चुनाव 2017 की समीक्षा रिर्पाेट के लिफाफे पर गयी। लिफाफा के ऊपर लिखा था ष्ष् विधानसभा चुनाव 2017 के चुनाव परिणाम विश्लेषणष्ष् । पता लिखा था सेवा में डा. अखिलेश दास गुप्ता पूर्व केन्द्रीय मंत्री भारत सरकार। लिफाफा देख करके फिर क्या था। अनिल ने डा. दास गुप्ता के बारे में चर्चा शु डिग्री किया । चर्चा के केन्द्र में केवल-केवल डा. दास के कार्याे एव उपलब्धियों तथा उनकी भावी राजनीतिक चुनौतियों क्या-क्या होगी? अनिल ने कहा कि अगर आप आज डा. साहब को रिर्पाेट देने जा रहे हो तो समय ले लो हम भी साथ में चलेगें। हमने अनिल से कहा डाक्टर साहब देर से सोकर उठते है। 12 बजे के बाद फोन करूंगा। हम लोग तैयार होकर नाश्ता कर ले। फिर डा. साहब को फोन करते है। यह बात हो ही रही थी कि अनिल चतुर्वेदी की निगाह टी.वी. स्क्रीन पर पड़ी। अचम्भित होकर जोर से आवाज दिया, राजेन्दर देखो यह क्या हो गया? पता करों सही या गलत? मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि तस्दीक किससे करूंू ? मै सोच ही रहा था कि फोन पर फोन आने लगे। सबके मुख से यही बाणी निकल रही थी गजब हो गया। मुझे भरोसा नहीं हो रहा था कि क्या ऐसा हो गया? मैं ततकाल अनिल चतुर्वेदी को साथ लेकर डा. दास के आवास पर पहंुचा। जहां सामने फर्शपर चिर निद्रा में सोये थे डा. दास जिनके वाणी से अब कभी पंडित जी एंव राजेन्दर भाई शब्द नहीं निकलेगे। मेरे दिमाग में डाक्टर साहब के पंडित जी एंव राजेन्दर भाई के शब्द बार-बार गूंज रहे थे।
अनिल और हम मूकभाषा में एक दूसरे से यही कह रहे थे कि डा. अखिलेश दास गुप्ता यारो के यार नही रहा। नियति यही है सत्य को स्वीकार करें।
20th April, 2017