विजय शंकर पंकज, लखनऊ। केन्द्र में सत्तासीन होने के लगभग साढ़े तीन वर्ष बाद पहली बार भारतीय जनता पार्टी में नरेन्द्र मोदी एवं अमित शाह की जोड़ी के खिलाफ विरोध के स्वर उभरने लगे है। सरकार से लेकर संगठन तक एकाधिकार जमाने के बाद इस जोड़ी के खिलाफ अभी तक एक भी आवाज नही निकल रही थी लेकिन अमित शाह के बेटे जय शाह की संपत्ति को लेकर उठे विवाद ने मोदी के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को कड़ा झटका दिया है।
ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जय शाह प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच कराकर जनता के समक्ष सफाई नही देते है तो अब तक भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाये गये उनके अभियान की हवा-हवाई कलाई खुल जाएगी। यह प्रकरण मोदी की नैतिकता पर भी सवाल पैदा करेंगे। राजनैतिक रूप से अमित शाह पिछले दो दशक से मोदी के सबसे विश्वसनीय बने हुए है और ऐसे में जय शाह प्रकरण में इस जोड़ी पर पारिवारिक भ्रष्टाचार का आरोप नये विवाद को खड़ा कर देगा।
गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर देश के प्रधानमंत्री बनने तक नरेन्द्र मोदी पर भ्रष्टाचार के किसी प्रकार के आरोप नही लगे। हालांकि लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान रैलियों और चुनावी खर्चे को लेकर विपक्षी दलों से लेकर पार्टी के भीतर भी तमाम तरह की चर्चाएं होती रही। केन्द्र में सरकार बनते ही मोदी ने अपने सबसे विश्वसनीय अमित शाह को संगठन की बागडोर सौप कर सरकार एवं संगठन पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया।
अमित शाह के भाजपा अध्यक्ष बनते ही पार्टी का कलेवर बदल गया। कार्यकर्ताओं के चन्दे पर चलने वाली भाजपा अब कारपोरेट स्टाइल में काम करने लगी। भाजपा के कार्यालय पार्टी फंड से माडर्न रूप लेने लगे और पूरा तंत्र कार्यकर्ताओं के हाथों से छिनकर आधुनिक संचार तंत्र के जरिये कुछ कम्प्यूटराइज्ड कार्यकर्ताओं के हाथ में सिमट कर रह गया। कार्यकर्ताओं को पार्टी कार्यालयों से अलग कर दिया गया और आये दिन भीड़ लगाने वालों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। संगठन में पूंजीपतियों, ठेकेदारों, धनकुबेरों एवं बाहुबलियों की कवायद बढ़ गयी। भाजपा पदाधिकारियों की बैठक ऐसे लोगों से गुप्त कमरों में होने लगी और कार्यकर्ता बाहर इन्तजार करने को बाध्य हो गया। इसका असर यह रहा कि प्रधानमंत्री की कई बैठकों में सांसदो और विधायकों ने इस मुद्दे को उठाने का प्रयास किया परन्तु बाद में उन्हे भी दबा दिया गया। मंत्रियों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का ऐसा चाबुक चला कि वे अपने पीए से भी बातचीत करने में कतराने लगे। तमाम मंत्री तो फोन से बात भी नही करते। कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय तथा कुछ जनाधार वाले नेताओं को उनके कक्ष तक सीमित करने की चाल चली गयी।
मोदी के एक सर्वप्रिय मंत्री ने अपने ही एक वरिष्ठ सहयोगी के बेटे पर अधिकारी के तबादले कराने के लिए पैसे लेने के आरोप संबंधी समाचार प्रकाशित करा दिया। इस प्रकरण पर प्रधानमंत्री कार्यालय को सफाई देनी पड़ी। बाद में ऐसा समाचार प्रकाशित कराने वाले मंत्री आर्थिक तंत्र की गड़बड़ी को लेकर पार्टी के वरिष्ठों से लेकर जनता में भी विवादास्पद बन बैठे।
भाजपा को कारपोरेट पार्टी बनाने वाले अमित शाह अब अपने बेटे के कारपोरेट कारोबार को लेकर विवादो में आ फंसे है। इस संदर्भ में अमित शाह को स्पष्टीकरण देना चाहिए था परन्तु सफाई देने आये मंत्री पियुष गोयल। गोयल की जय शाह प्रकरण की सफाई जनता के गले नही उतरी। गोयल ने माना कि जयशाह की कंपनी जो कारोबार करती है, उसमें काफी लाभ होता है परन्तु वह यह नही बता पाये कि 2013 में गठित कंपनी 2014-2015 में अचानक करोडों के वारे-न्यारे कैसे करने लगी। उक्त कंपनी को असुरक्षित कर्ज कैसे दिये गये।
गोयल ने यह नही बता पाये कि जय शाह की कंपनी जो काम करती है, वह काम कुछ और कंपनिया करती है कि नही और उनकी बढ़ोतरी किस स्तर की थी। साफ है कि नोटबंदी और जीएसटी को लेकर आर्थिक भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ने वाली सरकार शाह प्रकरण पर मौन क्यों है। यदि जयशाह की कंपनी इतना लाभ कमा रही थी तो तीन वर्ष बाद अचानक बंद क्यो कर दी गयी।
प्रधानमंत्री ने नोटबंदी के कारण दो लाख फर्जी कंपनियों के बंद होने की बात कही, क्या जयशाह की कंपनी भी उसी में से है तो उसकी जांच कौन करायेंगे। इस प्रकरण पर ऐसे सवाल अब तैरने लगे है कि जयशाह के कारोबार को सरकार का अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग मिल रहा था। इसके साथ ही कुछ कारोबारियों के भी सांठ-गांठ की गंध आती है। यह प्रकरण सरकार और संगठन दोनों को ही विवाद में खींच रहा है। भाजपा की पुरानी कवायद की तरह से इस प्रकरण पर अध्यक्ष अमित शाह को इस्तीफा देकर पूरे प्रकरण की जांच कराने के लिए आगे आना चाहिए ताकि कार्यकर्ताओं और जनता का विश्वास पार्टी पर कायम रख सके। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी अपनी अन्तरात्मा की आवाज पर इस प्रकरण में दोस्ती को दूर रखते हुए सरकार की छवि के लिए पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच का आदेश देना चाहिए। ऐसा न होने पर मोदी भी काली कोठरी में जाने के अभिशाप से बच नही पायेगे।
जय शाह प्रकरण अब अमित शाह से ज्यादा नरेन्द्र मोदी के भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम और उनके ईमानदार छवि के लिए सवाल बनकर खड़ा हुआ है। जैन डायरी में नाम आने के बाद लालकृष्ण आडवाणी ने सांसद पद से इस्तीफा दे दिया था। भाजपा के वरिष्ठों ने ईमानदारी की एक लंबी लाइन खींची है और उन्ही की दुहाई देकर नरेन्द्र मोदी इस मुकाम पर पहुंचे है। ऐसे में दोस्ती के फर्ज से उपर उठकर मोदी को इस पूरे प्रकरण की जांच के लिए आगे आना होगा। इससे सरकार एवं संगठन की छवि और उभर कर निखरेगी और जनता में मोदी के नाम का प्रभाव बढ़ेगा।
भाजपा का मुखिया बनने के बाद अब पहली बार अमित शाह के लिए कार्यकर्ताओं के समक्ष सफाई देने को विवश होना पड़ रहा है। अभी तक पार्टी में मौन साधे असंतुष्ट गुट को एक मुददा मिला है। ऐसे में अपनी छवि बनाने के लिए अमित शाह को बेटे के कारोबार पर सफाई देनी होगी। ऐसा न होने पर पार्टी के अनुशासन को गहरी ठेस पहुंचेगी। जय शाह प्रकरण के आने के बाद विपक्ष से ज्यादा अब भाजपा में ही अमित शाह के खिलाफ आवाज उठने लगी है। अब विभिन्न चुनावों में टिकट न पाने वाले कार्यकर्ता ऐसे मुद्दों को बिना वजह तूल देगे जिससे पार्टी में बिखराव पैदा होगा। कार्यकर्ताओं का विरोध पार्टी के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में भारी पड़ सकती है।
9th October, 2017