नगरीय चुनाव में योगी की अग्नि परीक्षा, घबड़ाये भाजपा नेतृत्व ने विधायकों को जिम्मेदारी सौपी
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विजय शंकर पंकज, लखनऊ। कार्यकर्ताओं के असंतोष और पार्टी में चल रही खींचतान के बीच होने वाले नगरीय निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को हार का डर सताने लगा है। भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने नगरीय निकाय चुनाव में पार्टी का परचम लहराने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जिम्मेदारी सौंपी है। योगी पर यह जिम्मेदारी सौंपकर भाजपा नेतृत्व उनकी लोकप्रियता की परख करना चाहता है। वैसे इस रणनीति को भाजपा के अन्दर चल रही खींचतान बताया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि योगी पर निकाय चुनाव की जिम्मेदारी डालकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अपने चहेते यूपी मे महामंत्री संगठन सुनील बंसल को बचाना चाहते है।
भाजपा अध्यक्ष का निर्देश मिलने के बाद गुजरात के दौरे से लौटते ही योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री आवास पर 15 अक्टूबर को बुलायी बैठक में विधायकों को नगरीय निकायों में जीत की जिम्मेदारी सौंपी। वैसे बैठक से निकलते ही विधायकों ने इस नयी जिम्मेदारी से अपना पीछा छुड़ाने की बहानेबाजी शुरू कर दी। असल में संगठन की अप्रत्यक्ष कमान संभाल रहे महामंत्री संगठन सुनील बंसल पहले ही निकाय चुनावों के प्रभारियों की नियुक्तियां कर चुके है। यह चुनाव प्रभारी अपनी मनमानी के प्रत्याशी बनाने और चहेतों को लाभ पहुंचाने में जुट गये है। इससे सभी निकायों में कई गुट बन गये है। यह बढ़ती गुटबाजी भाजपा की लुटिया डुबोने में लगी है। अब चुनाव से पूर्व मुख्यमंत्री पर यह ठिकरा फोड़ सुनील बंसल अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास कर रहे है।
सूत्रों का कहना है कि भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद भी महेन्द्र नाथ पाण्डेय अभी संगठन के कार्यो में कोई दिलचस्पी नही ले रहे है। पाण्डेय को अभी नयी टीम बनाने की भी मंजूरी नही मिल पायी है। अप्रत्यक्ष रूप से सुनील बंसल ही पिछले डेढ़ वर्ष से संगठन पर हावी है। विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी चयन से लेकर, योगी सरकार में मंत्रियों के चयन और उनके विभाग बंटवारे में बंसल की महति भूमिका रही है। यूपी भाजपा में बंसल को अमित शाह का आंख-कान-नाक माना जाता है। मुख्यमंत्री बनने के बाद भ्रष्टाचार के मुद्दों पर योगी की कई बार सुनील बंसल से तीखी झड़प हुई। इस तकरार में अमित शाह ने हमेशा ही सुनील बंसल का साथ दिया जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सार्वजनिक तौर पर कई बार योगी के कार्यो की प्रशंसा की। योगी की प्रशंसा से अमित शाह चिढ़े हुए है।
बंसल लावी का कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव का खर्चा योगी नही उठा पाएंगे और ऐसे में संगठन के खर्चे से लेकर चुनाव तक के खर्चे के प्रबन्धन की जिम्मेदारी सुनील बंसल की ही है। यही कारण है कि सुनील बंसल ने अपने साथ ऐसी तिगड़ी बना रखी है जो पहले से ही धन उगाही के लिए बहुचर्चित चेहरे रहे है।
बंसल लावी का कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव का खर्चा योगी नही उठा पाएंगे और ऐसे में संगठन के खर्चे से लेकर चुनाव तक के खर्चे के प्रबन्धन की जिम्मेदारी सुनील बंसल की ही है। यही कारण है कि सुनील बंसल ने अपने साथ ऐसी तिगड़ी बना रखी है जो पहले से ही धन उगाही के लिए बहुचर्चित चेहरे रहे है।
योगी के लिए परेशानी यह है कि नगरीय निकाय के चुनावी रणनीति को अभी तक समझ नही पाये है। यही नही नगरीय निकाय के पिछले चुनाव में भी भाजपा को कोई बड़ी सफलता नही मिली थी। प्रदेश में फिलहाल 16 नगर निगम है जबकि पिछले चुनाव के समय 13 नगर निगम थे। इसमें से एक सहारनपुर नगर निगम में चुनाव नही हुआ था। इस प्रकार 12 नगर निगमों के चुनाव में बरेली और इलाहाबाद को छोड़कर भाजपा को 10 पर विजय मिली थी। इस बार इलाहाबाद नगर निगम से चुनाव जीती अभिलाषा गुप्ता भाजपा में शामिल हो गयी है और उनके पति नन्द गोपाल नन्दी योगी सरकार में मंत्री है। इस प्रकार नगर निगमों में भाजपा का ही वर्चस्व है। इस बार नये बने नगर निगमों में फिरोजाबाद, फैजाबाद-अयोध्या तथा मथुरा है। इसमें फैजाबाद-अयोध्या तथा मथुरा नगर निगम का चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। यह दोनों ही धार्मिक नगरी है। यही कारण है कि छोटी दीपावली पर अयोध्या में रामबारात के नाम से भव्य आयोजन किया जा रहा है जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शामिल होगे।
भाजपा ने पहले ही अयोध्या की सरयू नदी में 100 फीट उंची प्रतिमा लगाने की घोषणा कर हिन्दू जनमानस को अपने पक्ष में करने की रणनीति बना ली है। नगर निगमों में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती सहारनपुर, मेरठ, आगरा, बरेली, फिरोजाबाद तथा इलाहाबाद होंगे। वैसे नगर पंचायतों तथा नगर पालिका परिषदों में भी भाजपा की स्थिति बहुत बेहतर रहने के आसार नही है। ऐसे में भाजपा की हार का ठिकरा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर फूटना तय है। वैसे भी प्रत्याशियों के चयन से लेकर चुनावी रणनीति का सारा दारोमदार सुनील बंसल पर है तो मुख्यमंत्री तथा उनके विधायक चुनावी जीत के लिए कितनी प्रभावी भूमिका निभा पाएंगे, यह कहना मुश्किल है। मुख्यमंत्री के कहने के बाद भी ज्यादातर विधायक निकाय चुनाव से अपने को अलग ही रखने की रणनीति बनाये हुए है।
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