विजय शंकर पंकज, लखनऊ। गुजरात में छठी बार जीत दर्ज कर बाहरी तौर पर भाजपा नेता भले ही इतराये लेकिन पश्चिमी समुन्द्र से निकली लहरों ने भयंकर तूफान की भी चेतावनी दे दी है। जिस गुजरात के विकास माडल की दोहाई देकर भाजपा पहली बार केन्द्र में बहुमत की सरकार बनाने में सफल हुई, उसी गुजरात ने निनानबे (99) के चक्कर में फंसा दिया है। गुजरात चुनाव में क्षेत्रवाद तथा गुजराती अस्मिता का भावनात्मक नारा देने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अब फिर नये सिरे से 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए विकास का नारा देना शुरू कर दिया है। यह विकास गुजरात में कही खो गया था। भाजपा को सत्ता के मुगालते से बाहर निकल कर अपनी जमीनी हकीकत पर नये सिरे से विचार करना होगा। कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और मध्यम वर्ग की भावनाओं से खिलवाड़ की राजनीति भाजपा के लिए महंगी साबित हो सकती है।
भाजपा मुख्यालय में दो राज्यों में विजय के बाद कार्यकर्ताओं के संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वीकार किया कि गुजरात में भाजपा को हराने के लिए कई तरह की चाले चली गयी। मोदी को यह भी कहना चाहिए था कि विपक्ष की इन चालों पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की चाले भारी पड़ी। इसीलिए तो अमित शाह को भाजपा के चाणक्य की संज्ञा दी गयी है। मोदी ने गुजरात चुनाव में विपक्ष द्वारा जातीय जहर पैदा करने की बात कही गयी। भाजपा को इस बात पर नये सिरे से गौर करना होगा कि लोकसभा चुनाव से पहले से ही अमित शाह हर राज्य में पार्टी के जातीय समीकरण को ही ठीक करने में जुटे हुए है। स्वयं मोदी ने अपने को पिछड़े वर्ग का बताकर देश भर में अपने को पिछडों को भावनात्मक तौर पर एकजुट करने का प्रयास किया। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने खुलकर अति पिछड़ा तथा अति दलित का कार्ड खेला। इसके लिए पिछड़े एवं दलित वर्ग के दूसरे दलों के उपेक्षित नेताओं को भाजपा में शामिल कर विभिन्न जातियों के नये मुखौटे तैयार किये गये। गुजरात में भाजपा के ही जातीय समीकरण को कांग्रेस ने भी अपने पाले में बांधने की कोशिश की। यह तो गुंजाइश थी कि कांग्रेस ने पुराने जातीय नेताओं को आजमाने से ज्यादा बेहतर आन्दोलन से निकले युवा नेताओं को एकजुट किया। कांग्रेस को यह गठबंधन रास भी आया परन्तु मोदी की गुजराती अस्मिता के कारण किनारे जाकर सिमट गयी। कांग्रेस ने भाजपा के गढ़ गुजरात में वही चाल चली जो मोदी-शाह की जोड़ी पिछले चार वर्षो से देशभर में करती आ रही है। जातीय गठबंधन के साथ ही कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टिकरण की राह से अलग होते हुए हिन्दूत्व का साफ्ट कार्ड खेला। देश की राजनीति में भाजपा की बढ़त का एक प्रमुख कारण गैर दलों को अतिरेक मुस्लिम तुष्टिकरण। इसकी प्रतिक्रिया हिन्दू समाज में हुई और जातीय समीकरणों ने उन्हें एकजुट कर दिया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जब हिन्दूत्व की धार को तीखा किया तो भाजपाई तिलमिला उठे। हालांकि राहुल के इस हिन्दुत्व को आम हिन्दू समाज पचा नही पाया और इसे नाटक ही करार दिया। इसके बाद भी राहुल का मंदिर प्रवेश भाजपा को अपने घर में घुसने जैसा लगा और यही कारण रहा कि तमाम भाजपा नेता राहुल की बंशावली गाने लगे।
भाजपा को अपने जातीय समीकरण के ध्रुवीकरण में एक बात और भी गौर करना होगा कि कही वह कुछ अपने परम्परागत वोट बैंक को नाराज तो नही कर रहा है। कांग्रेस से अलग होने के बाद ब्राह्मण वर्ग भाजपा से जुटा था। इसमें बहुत बड़ी भूमिका अटल बिहारी वाजपेयी के नाम की भी रही। हालांकि वाजपेयी के ही कार्यकाल में ब्राह्मण और सवर्णो के खिलाफ कई निर्णय हुए जिसका परिणाम रहा कि भाजपा को दशको तक सत्ता से दूर रहना पड़ा। भाजपा से नाराज ब्राह्मण वर्ग ने बसपा नेता मायावती को समर्थन देकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनवा दी। मोदी-शाह की जातीय रणनीति में ब्राह्मण एक बार फिर से अपने को उपेक्षित महसूस कर रहा है। भाजपा शासित 14 राज्यों में से केवल एक महाराष्ट्र में ही ब्राह्मण मुख्यमंत्री है। उत्तर प्रदेश में भारी बहुमत की सरकार बनने के बाद मोदी-शाह की जोड़ी ने जिस योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कमान दी, वह पार्टी में और विशेष कर पूर्वी यूपी में ब्राह्मण वर्ग के विरोधी माने जाते रहे है। यह वही योगी है जिन्होने नाराज होकर विधानसभा के चुनाव में भाजपा के खिलाफ दर्जनों प्रत्याशी अपने संगठन हिन्दू युवा वाहिनी के नाम से उतार दिया था। यह तो बेहतर हुआ कि योगी का कोई विधायक नही जीत पाया। यही नही गोरखपुर से भाजपा विधायक शिवप्रताप शुक्ल को हराने के लिए योगी ने डा. राधामोहन दास अग्रवाल को खड़ा किया और आज वही डाक्टर के सबसे बड़े विरोधी है। योगी के भगवा रंग को लेकर मोदी-शाह की जोड़ी जो राजनीतिक रणनीति बना रही है, वह यूपी में उनके गले की गांठ बन जाएगा। हालांकि यूपी में ब्राह्मणों की नाराजगी को भांपते हुए भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में महेन्द्र पाण्डेय तथा केन्द्र में शिवप्रताप शुक्ल को मंत्री बनाया। इस बदलाव के बाद भी यूपी का ब्राह्मण वर्ग भाजपा सरकार के कामकाज से खुश नजर नही आ रहा है। यही कुछ हालात उत्तराखंड में भी है। यूपी में ब्राह्मण ही नही पिछड़े वर्ग का कुर्मी भी भाजपा से खासा नाराज है और अपने को उपेक्षित महसूस कर रहा है। पिछड़ों में यादव के बाद कुर्मी ही सबसे सशक्त है। यूपी के सभी प्रमुख कुर्मी नेताओं को भाजपा ने अलग-थलग कर रखा है। मोदी सरकार और भाजपा जिस विकास की बाते कर रहे है, वह यूपी में आठ माह से ठप पड़ी है। योगी सरकार कुछ अधिकारियों के सहारे चल रही है। योगी के मंत्री ही अपने को अलग-थलग मान रहे है। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री में तनातनी चल रही है तो सरकार और संगठन में तालमेल नही है।
सरकार बनने के बाद केन्द्र से लेकर राज्यों तक भाजपा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की जा रही है। विभिन्न सरकारी संस्थाओं में हजारों पद खाली पड़े हुए है परन्तु वहां पर कार्यकर्ताओं की नियुक्ति नही की जा रही है। सरकार से संगठन तक कार्यकर्ताओं को तरजीह न देकर पैसे वालों का ही बोलबाला है। नाराज कार्यकर्ता अब भाजपा संगठन के कार्यो में रूचि नही ले रहा है। यूपी में भाजपा के बनाये गये सभी कार्यक्रम कार्यकर्ताओं की अनुपस्थिति से विफल होते जा रहे है। ऐसे में भाजपा को अपने जातीय समीकरणों से लेकर कार्यकर्ताओं की अपेक्षाओं पर खरा उतरना होगा। भाजपा कार्यकर्ता आधारित पार्टी मानी जाती है। मोदी भाजपा कार्यकर्ता से ही प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे है परन्तु उन्ही की राजनीतिक थ्योरी में कार्यकर्ता सबसे ज्यादा उपेक्षित हो रहा है। अब तो भाजपा कार्यकर्ताओं में थैलीशाहों का ही बोलबाला माना जा रहा है।
19th December, 2017