लखनऊ। उत्तर प्रदेश में लोकसभा की दो सीटो के लिए होने वाले उपचुनाव की विसात बिछने लगी है। प्रत्याशी चयन को लेकर सर्वाधिक मारामारी भारतीय जनता पार्टी तथा समाजवादी पार्टी में है। वैसे बहुजन समाज पार्टी ने भी अपनी पकड़ साबित करने के लिए मजबूत प्रत्याशी की तलाश में है। कांग्रेस की स्थिति अभी भी खानापूर्ति तक ही सीमित है।
उपचुनाव वाली लोकसभा की इन दोनों सीटों को लेकर भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। वैसे गोरखपुर की सीट को भाजपा अब भी सुरक्षित मानकर चल रही है परन्तु फूलपुर की सीट को लेकर पार्टी में संशय बरकरार है। गोरखपुर की सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तथा फूलपुर की सीट उपमुख्यमंत्री केशव मौर्या के इस्तीफे से खाली हुई है। इन दोनों सीटों पर मार्च में उपचुनाव होना है। भाजपा में यह चर्चा जोर पर है कि फूलपुर सीट से उपमुख्यमंत्री केशव मौर्या अपनी पत्नी के लिए टिकट मांग रहे है जबकि पार्टी का एक बड़ा खेमा परिवारवाद से अलग हटकर नया प्रत्याशी मैदान में उतारना चाहता है। वैसे फूलपुर से भाजपा पिछड़ा वर्ग का ही प्रत्याशी मैदान में उतारने के पक्ष में है। यहां पर पिछड़े वर्ग के कुर्मी एवं कुशवाहा मतों का प्रभाव है। यही वजह है कि भाजपा की तरफ से कुर्मी मतों पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। वैसे पार्टी में यह भी चर्चा है कि पत्नी को टिकट न मिलने पर केशव मौर्या दूसरे प्रत्याशी का कड़ा विरोध कर सकते है और हार होने पर इसका ठिकरा पार्टी पर फोड़ेगे। वैसे मौर्या के वर्तमान स्थिति में ऐसे किसी बगावत को लेकर पार्टी में कई राय है। उपमुख्मयंत्री रहते केशव मौर्या द्वारा ऐसा कदम उठाया जाना संभव नही होगा। वैसे पिछले पांच वर्ष में भाजपा ने केशव मौर्या को राजनीति के शिखर पर ला दिया। पहले 2012 में केशव मौर्या विधायक चुने गये आैर फिर 2014 में फूलपुर से सांसद बने। इसके कुछ ही दिनों बाद वह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हुआ और 2017 में उत्तर प्रदेश में सरकार बनते ही उपमुख्यमंत्री बने। राजनीति में विकास की जितनी तेजी केशव मौर्या को मिली, उतनी ही तेजी से उनका अपने विधानसभा एवं लोकसभा क्षेत्र में लोकप्रियता का हृास हुआ। फूलपुर से सांसद बनने के बाद विधानसभा के उपचुनाव में केशव मौर्या भाजपा प्रत्याशी को जिता नही पाये थे। अब यही हाल लोकसभा के उपचुनाव में है। वैसे भी फूलपुर से भाजपा को संसद में पहली बार विजय मिली है। फूलपुर से सपा कुर्मी एवं बसपा मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारने की तैयारी है।
दूसरी तरफ गोरखपुर की सीट का चुनावी गणित अलग है। यहां पर भाजपा और गोरक्षपीठ का भारी प्रभाव रहा है। सांसद से मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक कद काफी बढ़ा है। ऐसे में गोरखपुर से भाजपा और योगी जिसे भी प्रत्याशी बनाएगे, उसकी जीत सुनिश्चित मानी जा रही है। वैसे गोरखपुर का इतिहास काफी क्रान्तिकारी रहा है। गोरखपुर के मानीराम से मुख्यमंत्री रहते त्रिभुवन सिंह चुनाव हार गये थे। गोरखपुर लोकसभा सीट के लिए मुख्यमंत्री की पसन्द को भाजपा में वरीयता दिये जाने की संभावना है। वैसे नगर निगम चुनाव में योगी की पसन्द धर्मेन्द्र सिंह को टिकट नही मिला। फूलपुर से पिछड़ा वर्ग का प्रत्याशी उतारे जाने पर गोरखपुर से सवर्ण प्रत्याशी ही उतारे जाने की चर्चा है। ऐसे में धर्मेन्द्र सिंह को टिकट मिलना कठिन होगा। धर्मेन्द्र सिंह पिछड़े वर्ग का है। योगी की पसन्द में दूसरी नंबर पर गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता समीर सिंह का नाम है। यह ठाकुर एवं युवा नेता है। योगी के यह प्रिय एवं आर्शिवाद प्राप्त है। गोरखपुर से सपा ने निषाद प्रत्याशी उतारने का मन बनाया है तो बसपा की तरफ से अभी कई नामों पर चर्चा चल रही है जिसमें सवर्ण तथा पिछड़ा वर्ग के है।
दूसरी तरफ गोरखपुर की सीट का चुनावी गणित अलग है। यहां पर भाजपा और गोरक्षपीठ का भारी प्रभाव रहा है। सांसद से मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक कद काफी बढ़ा है। ऐसे में गोरखपुर से भाजपा और योगी जिसे भी प्रत्याशी बनाएगे, उसकी जीत सुनिश्चित मानी जा रही है। वैसे गोरखपुर का इतिहास काफी क्रान्तिकारी रहा है। गोरखपुर के मानीराम से मुख्यमंत्री रहते त्रिभुवन सिंह चुनाव हार गये थे। गोरखपुर लोकसभा सीट के लिए मुख्यमंत्री की पसन्द को भाजपा में वरीयता दिये जाने की संभावना है। वैसे नगर निगम चुनाव में योगी की पसन्द धर्मेन्द्र सिंह को टिकट नही मिला। फूलपुर से पिछड़ा वर्ग का प्रत्याशी उतारे जाने पर गोरखपुर से सवर्ण प्रत्याशी ही उतारे जाने की चर्चा है। ऐसे में धर्मेन्द्र सिंह को टिकट मिलना कठिन होगा। धर्मेन्द्र सिंह पिछड़े वर्ग का है। योगी की पसन्द में दूसरी नंबर पर गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता समीर सिंह का नाम है। यह ठाकुर एवं युवा नेता है। योगी के यह प्रिय एवं आर्शिवाद प्राप्त है। गोरखपुर से सपा ने निषाद प्रत्याशी उतारने का मन बनाया है तो बसपा की तरफ से अभी कई नामों पर चर्चा चल रही है जिसमें सवर्ण तथा पिछड़ा वर्ग के है।
18th January, 2018