लखनऊ, यूरिड मीडिया न्यूज़। आगामी 11 मार्च को होने जा रहे गोरखपुर एवं फूलपुर के लोकसभा उपचुनाव में विकास की बात नेताओ के भाषण तक ही सीमित होकर रह गए है। दोनों संसदीय क्षेत्र में चुनाव परिणाम क्या हो सकता है यह केवल जातीय समीकरण के जोड़गांठ पर ही चर्चा हो रही हैं। आजादी के 70 सालों बाद लोकतन्त्र के नाम पर किस तरह से राजनीतिक दलों ने पूरे समाज को जाति एवं धर्म के इतने खातों में विभाजित कर दिया है कि उपचुनाव में जनता के बीच धार्मिक एवं जातीय मतदाताओं की संख्या का ही जोड़ -घटाव हो रहा है। गोरखपुर एवं फूलपुर संसदीय क्षेत्र का दौरा करने के बाद जो स्थिति दिखाई दी वह लोकतन्त्र और सर्वांगीण विकास के लिए सकारात्मक नहीं कही जा सकती है। चुनाव में मतदाता अखिलेश यादव एवं मायावती के 10 वर्ष सत्ता के दौरान कराये गए विकास कार्य पर सवाल नहीं पूछ रहे है। वहीं विकास के एजेंडे पर बहुमत की सरकार बनाने वाली भाजपा से भी केंद्र के चार वर्ष और प्रदेश सरकार के 1 वर्ष के दौरान कराये गए विकास कार्यों का लेखाजोखा नहीं मांग रही है।
लंबे अरसे तक सत्ता में रही कांग्रेस से भी विकास पर जनता सवाल नहीं पूछ रही है। दोनों क्षेत्रों में केवल यही चर्चा हो रही है कि पिछड़े, अतिपिछड़े, दलित, मुस्लिम, सवर्ण, ब्राह्मण, ठाकुर, व्यापारी व अन्य जाति एवं धर्म से जुड़े कितनी-कितनी आबादी है। कौन-कौन जाति एवं धर्म से जुड़े मतदाता किस-किस प्रत्याशी के पक्ष में मतदान कर सकते है। मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ से यह सवाल नहीं पूछा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव के दौरान जो वादे किए थे उसका गोरखपुर की जनता को क्या लाभ मिला। 1 वर्ष पूरे होने जा रहे है मुख्यमंत्री ने गोरखपुर को क्या दिया, इसपर बहस नहीं हो रही है। बल्कि चर्चा इस बात पर हो रही है कि योगी के साथ किस-किस जाति के मतदाता जुड़े है या दूर हुए है उनकी संख्या कितनी-कितनी है। यहीं स्थिति समाजवादी पार्टी जिसे बसपा, रालोद, पीस पार्टी का भी समर्थन मिल गया हैं उसको लेकर भी जाति धर्म की संख्या पर ही चर्चा हो रही है। कांग्रेस प्रत्याशी अच्छा है मिलनसार है लेकिन जातीय व धार्मिक समीकरण पक्ष में नहीं है। इसकी चर्चा हो रही है।
यहीं स्थिति फूलपुर संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में है। वहाँ भी केवल मतदाताओं के जातीय एवं धार्मिक संख्या पर ही चर्चाए जारी है। पिछड़े एवं दलित कि रहनुमाई करने वाले 10 वर्षों तक सत्ता में रहे मायावती और अखिलेश से फूलपुर में कराये गए विकास कार्य पर सवाल नहीं किया जा रहा है। विधायक, सांसद, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और वर्तमान में उपमुख्यमंत्री केशव मौर्या से भी जनता विकास पर सवाल नहीं पूछ रही है। केशव मौर्या जो अति पिछड़ी जातियों के नेता के रूप में भाजपा में जाने जाते है। जिसके कारण कद एवं पद दोनों मिला है। उनसे भी पिछड़ी जातियां यह सवाल नहीं पूछ रही है कि चार वर्ष केंद्र सरकार एवं 1 वर्ष प्रदेश सरकार ने सत्ता में रहते हुए उन्होने अतिपिछड़ी जातियों के लिए क्या किया है। विकास की चर्चा अखिलेश यादव और केशव मौर्य, योगी आदित्यनाथ, राज बब्बर सभी केवल चुनावी सभाओं में ही कर रहे है लेकिन असली चुनाव पर्दे के पीछे जाति एवं धर्म के आकड़ों पर ही चुनावी समीकरण की रूपरेखा बन रही है। सभी दलों के नेता एवं प्रत्याशी केवल और केवल जातीय एवं धार्मिक एजेंडे पर ही बूथ स्तर तक जोड़तोड़ में जूटे है और जनता भी नेताओं के इसी समीकरण में उलझी हुई चर्चा दर चर्चा करने में व्यस्त है। ऐसे में हार-जीत किसी की भी हो विकास हारेगा। जातीय और धार्मिक भावनाएं भड़का कर लुभावने नारे देकर राजनीतिक दल एक बार फिर अपने मंसूबे में विभाजित करके सफलता होंगे दिखाई दे रहे है।
लंबे अरसे तक सत्ता में रही कांग्रेस से भी विकास पर जनता सवाल नहीं पूछ रही है। दोनों क्षेत्रों में केवल यही चर्चा हो रही है कि पिछड़े, अतिपिछड़े, दलित, मुस्लिम, सवर्ण, ब्राह्मण, ठाकुर, व्यापारी व अन्य जाति एवं धर्म से जुड़े कितनी-कितनी आबादी है। कौन-कौन जाति एवं धर्म से जुड़े मतदाता किस-किस प्रत्याशी के पक्ष में मतदान कर सकते है। मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ से यह सवाल नहीं पूछा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव के दौरान जो वादे किए थे उसका गोरखपुर की जनता को क्या लाभ मिला। 1 वर्ष पूरे होने जा रहे है मुख्यमंत्री ने गोरखपुर को क्या दिया, इसपर बहस नहीं हो रही है। बल्कि चर्चा इस बात पर हो रही है कि योगी के साथ किस-किस जाति के मतदाता जुड़े है या दूर हुए है उनकी संख्या कितनी-कितनी है। यहीं स्थिति समाजवादी पार्टी जिसे बसपा, रालोद, पीस पार्टी का भी समर्थन मिल गया हैं उसको लेकर भी जाति धर्म की संख्या पर ही चर्चा हो रही है। कांग्रेस प्रत्याशी अच्छा है मिलनसार है लेकिन जातीय व धार्मिक समीकरण पक्ष में नहीं है। इसकी चर्चा हो रही है।
यहीं स्थिति फूलपुर संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में है। वहाँ भी केवल मतदाताओं के जातीय एवं धार्मिक संख्या पर ही चर्चाए जारी है। पिछड़े एवं दलित कि रहनुमाई करने वाले 10 वर्षों तक सत्ता में रहे मायावती और अखिलेश से फूलपुर में कराये गए विकास कार्य पर सवाल नहीं किया जा रहा है। विधायक, सांसद, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और वर्तमान में उपमुख्यमंत्री केशव मौर्या से भी जनता विकास पर सवाल नहीं पूछ रही है। केशव मौर्या जो अति पिछड़ी जातियों के नेता के रूप में भाजपा में जाने जाते है। जिसके कारण कद एवं पद दोनों मिला है। उनसे भी पिछड़ी जातियां यह सवाल नहीं पूछ रही है कि चार वर्ष केंद्र सरकार एवं 1 वर्ष प्रदेश सरकार ने सत्ता में रहते हुए उन्होने अतिपिछड़ी जातियों के लिए क्या किया है। विकास की चर्चा अखिलेश यादव और केशव मौर्य, योगी आदित्यनाथ, राज बब्बर सभी केवल चुनावी सभाओं में ही कर रहे है लेकिन असली चुनाव पर्दे के पीछे जाति एवं धर्म के आकड़ों पर ही चुनावी समीकरण की रूपरेखा बन रही है। सभी दलों के नेता एवं प्रत्याशी केवल और केवल जातीय एवं धार्मिक एजेंडे पर ही बूथ स्तर तक जोड़तोड़ में जूटे है और जनता भी नेताओं के इसी समीकरण में उलझी हुई चर्चा दर चर्चा करने में व्यस्त है। ऐसे में हार-जीत किसी की भी हो विकास हारेगा। जातीय और धार्मिक भावनाएं भड़का कर लुभावने नारे देकर राजनीतिक दल एक बार फिर अपने मंसूबे में विभाजित करके सफलता होंगे दिखाई दे रहे है।
8th March, 2018