विजय शंकर पंकज, लखनऊ, (यूरिड मीडिया)। उत्तर प्रदेश में एक वर्ष के भीतर ही लोकसभा की एक तथा विधानसभा की एक सीट के लिए होने वाले उपचुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए कड़ी चुनौती बनकर उभरी है। यह दोनों ही सीटे भाजपा के ही सांसद हुकुम सिंह तथा विधायक लोकन्द्र सिंह के निधन से खाली हुई है। ऐसे में इन पर जीत का ज्यादा दबाव भाजपा पर ही है। दूसरी तरफ विपक्ष ने भाजपा के खिलाफ उपचुनावों में जिस प्रकार एकता दिखायी है, उसकी काट भाजपा नेतृत्व नही खोज पा रहा है। इस उपचुनाव से कुछ ही माह पहले हुए गोरखपुर एवं फूलपुर लोकसभा के उपचुनावों में भी भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा जबकि यह दोनों की सीटे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तथा उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफा देने से खाली हुई थी। गोरखपुर लोकसभा के उपचुनाव में भाजपा की हार ने पार्टी नेतृत्व को अन्दर से हिला दिया है और मुख्यमंत्री का अभेद्य गढ़ माने जाने वाले किले के विपक्ष ने एक छोटी तोप से ही तहस-नहस कर दिया। भाजपा की सारी किलेबंदी यहां पर धरी रह गयी।
हिन्दू परम्परा में अन्तिम संस्कार में कर्मनाशा नदी पार करने का वृतान्त आता है। इसके लिए मृत आत्मा को कर्मनाशा नदी पार करने के लिए गाय की पूंछ पकड़ कर ही नदी पार जाया जा सकता है। कर्मनाशा के बारे में तेज धार वाली गहरी नदी का जिक्र है। इस कर्मकांड में गौ दान किया जाता है। वैसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस हिन्दू परम्परा का पालन करने वाले नही है। योगी जिस नाथ सम्प्रदाय के प्रमुख है, वह सनातन धर्म की परम्पराओं का विरोध करते है। मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने पशुओं के अवैध कटान में रोक लगाने का प्रयास अवश्य किया परन्तु कुछ दिनों बाद ही अन्य सरकारी आदेशो की तरह सरकारी फाइलों में ही दबकर रह गया। अब भाजपा वाले ही कह रहे है कि मुख्यमंत्री के सनातन धर्म विरोधी रूख का दुष्परिणाम पार्टी को भुगतना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री के कई वरिष्ठ मंत्री भी गोरखपुर और फूलपुर की हार को भी इसी अपशकुन की नजर से देख रहे है। अब कहा जा रहा है कि भाजपा ने धार्मिक परम्पराओं का टोटका नही किया तो कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा में भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ेगा। योगी सरकार की कार्यकर्ताओं की उपेक्षा तथा मंत्रियों के अड़ियल रूख से पार्टी में राजनीतिक कार्यक्रमों में असहयोग का भाव चल रहा है। यह पहला मौका हुआ कि गोरखपुर एवं फूलपुर विधानसभा चुनाव हारने के बाद विपक्ष से ज्यादा भाजपा कार्यकर्ता खुश होता दिखायी दिया था।
कैराना लोकसभा से 2014 के चुनाव में पहली बार हुकुम सिंह भाजपा के टिकट पर सांसद चुने गये थे। लोकसभा चुनाव से पूर्व पश्चिमी यूपी का यह इलाका साम्प्रदायिक तनाव की जद में रहा और कई जिलों में दंगों हुए। भाजपा विधायक के रूप में हुकुम सिंह ने कैराना तथा आसपास के गांवो में हिन्दुओं के पलायन का मुद्दा उठाया था। हुकुम सिंह अपने क्षेत्र के प्रभावी पिछड़े नेताओं में रहे। वह कांग्रेस से भाजपा की कई सरकारों में मंत्री रहे। विधायक रहते हुए हुकुम सिंह लोकसभा का चुनाव लड़े और विजयी हुए । हुकुम सिंह के इस्तीफे से खाली विधानसभा सीट से उनकी बेटी मृगांका चुनाव लड़ी परन्तु उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उस समय हुकुम सिंह के भतीजे ने ही अपनी बहन की दावेदारी का कड़ा विरोध किया था। अब वही स्थिति एक फिर से लोकसभा के उपचुनाव में दोहरायी जा रही है। भाजपा ने मृगांका को सहानुभूति वोट हासिल करने के लिए चुनाव लड़ाया है परन्तु विपक्षी एकता ने भाजपा के पूरे खेल को बिगाड़ दिया है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में हुकुम सिंह 2.36 लाख से ज्यादा अन्तर से चुनाव जीते थे। हुकुम सिंह को 5.66 लाख वोट मिले थे। सपा आैर बसपा प्रत्याशियों को मिलाकर भी इतना वोट नही मिला था। इस बार विपक्षी एकता दिखाते हुए सपा ने अपने प्रत्याशी को रालोद में शामिल कराकर समर्थन दिया है। बसपा और कांग्रेस ने प्रत्याशी न उतारकर रालोद को ही समर्थन देने की घोषणा की है। कैराना लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम, दलित तथा जाट वोटांे का समीकरण लगभग 60 प्रतिशत बताया जाता है। विपक्षी एकता के नाम पर एकजुट इस जातीय समीकरण में भाजपा को सेंध लगाना आसान नही होगा। भाजपा प्रत्याशी मृगांका अपने पिता की तरह मिलनसार तथा प्रभावी राजनीतिज्ञ भी नही है।
इसी प्रकार नूरपुर विधानसभा का चुनावी समीकरण भी इसी प्रकार का है। भाजपा के लोकेन्द्र सिंह पहली बार यहां से लगभग 12736 मतों के अन्तर से सपा प्रत्याशी नईमुल हसन को हराया था। लोकेन्द्र सिंह की सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी। उपचुनाव में भाजपा ने लोकेन्द्र की पत्नी को प्रत्याशी बनाया है। वैसे भी भाजपा प्रत्याशी राजनीतिज्ञ न होकर घरेलू महिला है। यहां पर विपक्षी एकता के कारण भाजपा की राह काफी कठिन लग रही है।
17th May, 2018