राजेन्द्र द्विवेदी, यूरीड मीडिया- केजरीवाल आज़ाद भारत के इतिहास में सबसे कुशाग्र नौकरशाह और चालाक राजनेता हैं। इनकी महत्वाकांक्षा अचानक नहीं पनपी है बल्कि यह उनके दिल में काफी दिनों से है। इसका उदाहरण यह है कि आईआरएस के पद से इस्तीफ़ा देकर एनजीओ चला रहे थे, तभी इनकी निगाह दिल्ली की कुर्सी पर थी। इसलिए सत्ता का संचालन कैसे होता है जन समस्याओं को कैसे सुना और हल किया जाता है इसे जानने के लिए शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री रहते हुए उनके जन-सुनवाई के समय अक्सर चक्कर लगाया करते थे। इसकी पुष्टि शीला दीक्षित के बेटे और तत्कालीन सांसद एवं वर्तमान में केजरीवाल को हराने में भूमिका निभाने संदीप दीक्षित ने की है। उन्होंने बताया कि अन्ना आंदोलन के काफी पहले केजरीवाल मेरे पास आये और उन्होंने जनता से कैसे मिला जाता है, उनकी समस्या क्या होती है और कैसे हल किया जाता है। इनके बारे में जानकारी चाहता हूँ और ऑफिस में बैठने की अनुमति मांगी। केजरीवाल के इस अनुरोध को स्वीकार किया और उन्हें ऑफिस में बैठने की अनुमति मिली। केजरीवाल संदीप दीक्षित के स्टाफ के पास बैठकर एक हफ्ते से अधिक समय तक जनता की फ़रियाद, उनकी समस्याओं का निराकरण इसका अध्ययन किया। यह उनके दूर दृष्टि और सियासी महत्वाकांक्षा का पहला उदाहरण है।
2011 में स्थितियां बदली, अवसर मिला, अन्ना आंदोलन का फ़ायदा अपने सियासत के लिए हाईजैक कर लिया। दिमाग के तेज थे। भ्रष्ट व्यवस्था में कैसे मीडिया का उपयोग किया जाता है। भावनात्मक रूप से जनता को किस तरह से जोड़ा जा सकता है। इसमें माहिर केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया और 2013 में विधानसभा चुनाव लड़े। पार्टी गठन और उसके नाम से ही केजरीवाल के कुशाग्र बुद्धि का अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो उन्होंने पार्टी का नाम आम आदमी पार्टी रखा। आंदोलन के समय राजनीतिक पार्टी का गठन और 2013 के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल के साथ बड़े-बड़े विभिन्न क्षेत्रों के अनुभवी लोग जिसमें शांति भूषण, योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास, आशुतोष, किरण बेदी जैसे चेहरे जुड़े थे। चुनाव में अप्रत्याशित सफलता मिली। 28 सीटें जीती। भाजपा 32 और कांग्रेस 8 तथा 2 अन्य चुनाव जीते। भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस ने सबसे बड़ी गलती शीला दीक्षित को चुनाव हराने वाले केजरीवाल को ही समर्थन देकर मुख्यमंत्री बनवा दिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद इनकी महत्वाकांक्षा जल्दी ही राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा में जाने की हो गयी। केजरीवाल जानते थे कि मनमोहन सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार, जन लोकपाल विधेयक को लेकर जबरदस्त जनाक्रोश है।
इसको देखते हुए बड़े चालाकी के साथ जन लोकपाल विधेयक को विधानसभा में पेश किया जो पास नहीं हुआ उसी का बहाना लेकर मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। इस इस्तीफे के पीछे भी राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा में पहुंचने में इसकी महत्वाकांक्षा थी। इसलिए मात्र 49 दिनों की सरकार चलाने के बाद 14 फरवरी, 2014 को इस्तीफ़ा दे दिया। राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। केजरीवाल जानते थे कि भ्रष्टाचार और लोकपाल विधेयक को लेकर कांग्रेस के खिलाफ जबरदस्त जनाक्रोश है। इसका लाभ उठाया जाय इसी रणनीति के तहत उन्होंने इस्तीफ़ा दिया और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी में लोकसभा का चुनाव लड़ गए। पूरे देश में 434 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किये। उन्हें यह गलतफ़हमी थी कि दिल्ली में चंद दिन पहले गठित पार्टी को सरकार बनाने का अवसर मिल गया। उनकी लोकप्रियता पूरे देश में है। इसका तत्काल लाभ उठाया जा सकता है इसीलिए चुनाव में भ्रष्टाचार और जन लोकपाल विधेयक को ही प्रमुखता से उठाया और यह सच है कि मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर इतना ज्यादा नाराजगी देश में थी और केजरीवाल ईमानदार सियासत के रूप में लोकप्रिय भी हो गए थे। पुराने साथी योगेंद्र यादव कहते है कि केजरीवाल की ईमानदारी का जुनून पढ़े लिखे नौजवान सब में था जिसके कारण भारी संख्या में लोग आप पार्टी में आये इसका लाभ मिला लेकिन केजरीवाल को यह नहीं पता था कि गुजरात मॉडल के नाम पर नरेंद्र मोदी के चेहरे पर पूरे देश में एक आंधी चल रही है। इस आंधी के आगे उनकी महत्वाकांक्षा धाराशाही हो जाएगी लेकिन उन्होंने प्रयास किया और मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने के कारण चर्चा में भी रहे। 2 लाख 30 हजार वोट भी मिले जबकि मोदी को 5 लाख से अधिक मत मिले। मोदी के खिलाफ इतना अधिक मत पाना भी केजरीवाल के लोकप्रियता का आधार रहा है।
एक वर्ष तक दिल्ली राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा। इस दौरान केजरीवाल ने एक नई राजनीतिक विकल्प देने के वादे को जन-जन तक पहुंचाने में सफलता अर्जित की जिसका लाभ उन्हें मिला। 2014 में दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर जीतने वाली भाजपा 2015 में केजरीवाल से करारी शिकस्त मिली। कांग्रेस शून्य पर पहुंच गयी। आप पार्टी को 70 में 67 सीटें और भाजपा 3 सीट पर सिमट गयी। देश के किसी भी राज्य में विधानसभा में जीतने का स्ट्राइक रेट का रिकॉर्ड भी बनाया। यही नहीं जो साथी उनके साथ बड़े-बड़े नाम के जुड़े थे। ऐसी परिस्थिति पैदा कर दी कि वह सभी आप पार्टी से दूर हो गए। केजरीवाल ने अपना एक नया राजनीतिक समर्थक पैदा किया। उन्हें ही विधायक और मंत्री परिषद् में शामिल किया। बड़े-बड़े अनुभवी नाम जिनमें उच्चतम न्यायालय के प्रख्यात अधिवक्ता प्रशांत भूषण, सियासत की गहरी जानकारी रखने वाले योगेन्द्र यादव, मीडिया के स्तंभ माने जाने वाले आशुतोष, बहुमुखी प्रतिभा के धनी कुमार विश्वास, प्रशासनिक क्षमता के रूप में जाने वाली किरण बेदी सभी पर केजरीवाल का राजनीतिक कौशल भारी पड़ा। 70 में 67 सीट जीतने के बाद केजरीवाल ने दिल्ली में गरीबों, स्लम बस्ती, झुग्गी झोपड़ी, ऑटो चालाक एवं महिलाओं जिनकी अहम् भूमिका होती है उन्हें ही वोट बैंक के रूप में जोड़ लिया। उनको 200 यूनिट फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री बस सुविधा दिया और शिक्षा स्वास्थ्य को एक मॉडल के रूप में मोहल्ला क्लिनिक बनाने का अभियान शुरू किया। यह सही है कि 2015 से 2020 प्रथम 5 वर्ष के कार्यकाल में केजरीवाल ने शिक्षा और स्वास्थ्य पर अच्छा कार्य किया जो एक मॉडल भी बन गया। यही रणनीति दिल्ली में सफलता मिलने के बाद केजरीवाल की महत्वाकांक्षा मोदी का विकल्प बनने की शुरू हो गयी और उन्होंने इसके लिए देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को कमजोर करने का लक्ष्य बनाया। दिल्ली में मिली सफलता से उत्साहित होकर केजरीवाल ने दिल्ली मॉडल के नाम पर पंजाब में 117 विधानसभा सीटों में 92 सीटें जीती। भगवंत मान को मुख्यमंत्री बनाया। गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड जैसे कई राज्यों में कांग्रेस को कमजोर करने और हराने का कार्य किया। निरंतर मिली सफलता से उत्साहित केजरीवाल को 2020 में 70 में 62 सीटें मिली तो उनकी महत्वाकांक्षा परवान पर चढ़ गयी क्योकि कांग्रेस निरंतर कमजोर हुई और उसे नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए भी 2014 और 2019 में 54 सीटें नहीं मिली। इन्ही महत्वाकांक्षा को पाले केजरीवाल कांग्रेस के साथ-साथ 2024 में मोदी का विकल्प बनने की जल्दबाजी कर दी। उन्होंने राहुल से ज्यादा भाजपा सरकार और मोदी पर सीधे व्यक्तिगत हमले भी शुरू कर दिए। विधानसभा के बाहर जिन आरोपों को मोदी पर नहीं लगा सकते थे उसे विधानसभा के अंदर लगाना शुरू कर दिया। उन्होंने क्षेत्रीय दलों से संपर्क करके तीसरा मोर्चा भी बनाने की रणनीति बनाई। इसीलिए 2023 में जब इंडिया गठबंधन जोर-शोर से शुरू हुआ। केजरीवाल बेमन से रणनीति के तहत गठबंधन का पार्ट बन गए। लेकिन उनकी महत्वाकांक्षाएं मोदी के विकल्प की थी। इसीलिए छोटे से राज्य के मुख्यमंत्री होने के बाद भी मोदी की तर्ज पर पूरे देश में मीडिया को हजारों करोड़ एक विज्ञापन दिया। और दिल्ली मॉडल को प्रचारित किया। इसी जल्दबाज़ी में 17 अप्रैल 2023 को विधानसभा के अंदर कक्षा चार पास राजा की कहानी सुना कर बिना नाम लिए मोदी पर व्यक्तिगत हमला किया उसी के साथ इनके बुरे दिन शुरू हो गए। मोदी के साथ कार्य करने वाले एक अधिकारी ने केजरीवाल के भाषण को सुनकर बताया था कि मोदी पर इस तरह से व्यक्तिगत हमला करके केजरीवाल ने बहुत भूल की है और निश्चित रूप से मोदी का जो रिकॉर्ड है व्यक्तिगत छवि को ख़राब करने वाले को कभी अवसर आने पर छोड़ते नहीं है। अधिकारी की बात सच निकली। विधानसभा में बयान के बाद केंद्र की एजेंसियां जो आप पार्टी के दूसरे नेताओं पर भ्रष्टाचार शराब घोटाले की जांच करके उन्हें जेल भेजती रही उनका फोकस केजरीवाल की तरफ भी बढ़ा और शराब घोटाले के चपेट में आ कर जेल जाना पड़ा। जेल जाने के बाद दवाब में आये केजरीवाल ने इंडिया गठबंधन में शामिल होने की सहमति दी और मज़बूरी में दिल्ली में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से समझौता किया। लेकिन लोकसभा में गठबंधन हार गया और भाजपा फिर सातों सीटों पर चुनाव जीत गयी। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस को 100 सीटें मिली। उसका मनोबल बढ़ा लेकिन महाराष्ट्र और हरियाणा में हार से केजरीवाल की महत्वाकांक्षाएं फिर जाएगी और उन्होंने कांग्रेस से समझौता न करने की घोषणा कर दी। उन्हें समाजवादी पार्टी, शिवसेना, तृणमूल कांग्रेस, सपा, एनसीपी सबका साथ मिला। शत्रुघ्न सिन्हा ने रैली की। अखिलेश यादव ने केजरीवाल के लिए वोट मांगे। यही नहीं केजरीवाल मोदी को यहाँ तक चुनौती देते रहे कि प्रधानमंत्री मोदी दूसरा जन्म भी लेले तो भी उन्हें दिल्ली में चुनाव नहीं हरा सकते। उनका आधार भी मजबूत था। उन्हें चुनाव हारने के बाद भी 43% और भाजपा को 45% मत मिले हैं। सीटों का अंतर काफी है। भाजपा को 48 और आपको 22 सीटें मिली और कांग्रेस का खाता नहीं खुला। आप के बड़े नेता अरविन्द केजरीवाल मनीष सिसोदिया सहित 14 सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों ने हराने का काम किया जैसा की चुनाव परिणाम के आकड़े बता रहे हैं। केजरीवाल और सिसोदिया जिसने मतों से हारे उससे अधिक मत कांग्रेस प्रत्याशी को मिला है। इस प्रकार केजरीवाल के हारने का पहला कारण महत्वाकांक्षा रही है।
झूठ
केजरीवाल के दिल्ली चुनाव हारने में झूठ भी एक बड़ा कारण रहा है। ईमानदारी की छवि और नई सियासत करने आये केजरीवाल पर गंभीर और तथ्यों के साथ उनके झूठ जनता के सामने खुल कर आ गए। उन्होंने कहा था कि सत्ता में आने के बाद सरकारी बंगला नहीं लेंगे। सुरक्षा नहीं लेंगे , बड़ी गाडी नहीं लेंगे और आम आदमी की तरह जनता से सीधे जुड़े रहेंगे। लेकिन यह झूठ साबित हुआ। सरकारी आवास न लेने वाले की बात करने वाले केजरीवाल शीश महल में चले गए जो 50 करोड़ से अधिक लागत से बना था। जिसको लेकर सीएजी की रिपोर्ट में स्पष्ट भ्रस्टचार का उल्लेख किया गया है। शीश महल चुनाव में एक चर्चा का विषय रहा। शीश महल एक बहुत बड़ा चुनावी मुद्दा बना जिसे राहुल गाँधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चुनाव में खूब प्रचारित किया। छोटी गाड़ी से चलने की बात करने वाले केजरीवाल महंगी गाड़ियों के काफिले में चलने लगे। लाल बत्ती संस्कृति ख़त्म करने की बात को भूल गए। एक राज्य ही नहीं दिल्ली और पंजाब दो-दो राज्यों की सुरक्षा के घेरे में रहने लगे। पंजाब चुनाव में महिलाओं को 1000 रुपया देने तथा अन्य कई कल्याणकारी सीधे लाभ देने वाली योजनाओं की घोषणा की थी उसे पूरा नहीं किया। उनके झूठ की ऐसी लम्बी फेहरिस्त हो गयी जिसका नुकसान दिल्ली चुनाव में उठाना पड़ा क्योंकि जनता ने केजरीवाल की गारंटी ज्यादा मोदी की गारंटी पर भरोसा किया। निरंतर झूठ बोलने के कारण जनता में एक परसेप्शन भी बन गया कि केजरीवाल दूसरे राजनीतिक दलों से ज्यादा झूठ बोलते हैं।
अहंकार
केजरीवाल में तीसरा कारण उनका अहंकार रहा है। 2015 और 2017 में दिल्ली में जिन वोट बैंक ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था उस उन्होंने अपना बंधुआ मतदाता मान लिया इसलिए कांग्रेस से समझौता नहीं किया। इंडिया गठबंधन से जुड़े क्षेत्रीय दलों को समर्थन लेकर चुनाव जीतने की गारंटी मान ली। मोदी को चुनौती दे दी कि दूसरा जन्म भी लेले तब भी मोदी उन्हें चुनाव नहीं हरा सकते। राहुल गाँधी को भ्रष्टाचार के पोस्टर में दूसरा स्थान पर चिपकवा दिया। अखिलेश यादव ममता बनर्जी शरद पवार उद्धव ठाकरे जैसे क्षेत्रीय दलों के समर्थन मिलने के बाद कांग्रेस को नकार दिया और उन्हें पूरा भरोसा था कि 2015 और 2020 जैसे ही चुनाव परिणाम आएंगे। इतना अधिक अहंकार नहीं होता और कांग्रेस से समझौता रहता तो शायद केजरीवाल खुद भी चुनाव जीत जाते।
उनकी यह भी रणनीति थी कि मुस्लिम मतदाता मज़बूरी में भाजपा को हराने के लिए आप पार्टी को वोट देंगे इसीलिए अल्पसंख्यकों से जुड़े हुए सभी मुद्दों पर शांत रहे। दिल्ली में CAA NRC और अल्पसख्यकों के आवास तोड़ने और कई घटनायें जिस पर केजरीवाल चुप रहे और उनकी पार्टी के मुस्लिम विधायक भी मुखर नहीं हुए। इसका लाभ ओवैसी और कांग्रेस को मिला। उनका अहंकार इस तरीके से हावी था कि पंजाब में भगवंत मान मुख्यमंत्री कम केजरीवाल के दरवारदारी ज्यादा बन गए हैं जिससे लोगों में नाराजगी भी है। केजरीवाल यह कहते थे कि हाई कमान नहीं होगा। लेकिन दिल्ली और पंजाब की सफलता से उनका अहंकार इतना अधिक बढ़ गया कि आप दूसरे दलों से अधिक व्यक्ति आधारित पार्टी बन गयी। यही नहीं जो कार्यकर्ताओं ने तन मन धन से आप को समर्पित रहे जब भी अवसर आया किसी को भी राज्य सभा नहीं भेजा बल्कि पैसे वालों को राज्य सभा भेजा यह भी उनका अहंकार ही है।
भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार के खिलाफ गठित आम आदमी पार्टी धीरे-धीरे भ्रष्टाचार में ही डूब गयी। जिन बातों पर लेकर केजरीवाल भ्रष्टाचार की संज्ञा देते थे वह खुद ही करने लगे। सीएजी रिपोर्ट में कोल घोटाला, टू जी स्पेक्ट्रम और वित्तीय अनियमितता की बात उभर के सामने आयी थी उसे बड़ा घोटाला माना गया था लेकिन जब केजरीवाल की सरकार में सीएजी ने ऑडिट में मुख्यमंत्री आवास पर 30 करोड़ से अधिक वित्तीय अनियमितता पायी तो डर के कारण विधानसभा के पटल पर नहीं लाये और घोटाला मानने से भी इंकार करते रहे। मनमोहन सरकार में भी सीएजी रिपोर्ट लोकसभा के पटल पर आने से पहले ही लीक हो गयी थी जिसे केजरीवाल फोटोकापी लेकर घोटाला घोटाला चिल्लाते रहे। वही सीएजी रिपोर्ट की फोटो कॉपी लेकर भाजपा कांग्रेस ने उठाया तो उसे घोटाला मानने से इंकार करते रहे। शराब घोटाला, शिक्षा घोटाला ,परिवहन घोटाला स्वास्थ्य घोटाला एमसीडी घोटाला जैसे तमाम आरोपों के बीच केजरीवाल पारदर्शी तरीके से इन घोटालों के आरोपों को जबाव नहीं दे पाए। 100 करोड़ से अधिक शराब घोटाले का आरोप ऐसा आप पार्टी पर लगा जिसके कारण केजरीवाल सिसोदिया संजय सिंह सहित कई बड़े नेता जेल गए। हालांकि अभी घोटाले प्रूफ नहीं हुए है लेकिन ऐसा ही घोटालों का आरोप मनमोहन सरकार के खिलाफ था जो बाद में न्यायालय में प्रूफ नहीं हो पाया। दूसरा अहम् सवाल यह रहा है कि मीडिया में जिस तरह से करोडो के विज्ञापन दिया उससे भी जनता में एक परसेप्शन बन गया कि केजरीवाल सरकार अपनी कमियों को छुपाने के लिए मीडिया को विज्ञापन देकर मुँह बंद कर दिया है। इसका भी नुकसान केजरीवाल को उठाना पड़ा क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ गठित पार्टी को जिन मतदाताओं ने भरोसा करके वोट किया था कि भ्रष्टाचार रुकेगा। वह नहीं हुआ। अपने तमाम नाकामियों और भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए सत्ता में रहते हुए हर दिन कुछ न कुछ बयान बाजी और सड़क पर धरना प्रदर्शन भी करते रहे। लगातार यह आरोप लगाते रहे कि भाजपा उन्हें कार्य नहीं करने देती उनके अधिकारों को चीन लिया है। एजेंसियों आप पार्टी नेताओं को परेशान कर रही है। भ्रष्टाचार को लेकर नए-नए शगूफे भी छोड़ते रहे है कि उनकी पार्टी थोड़ी जा रही है। विधायक खरीदे जा रहे है।
उपरोक्त चारों बिन्दुओं के अलावा अहम् बिंदु यह है कि केजरीवाल बहुसंख्यको की सियासत को भाजपा के आंगन के परिधि में खेलते रहे। उन्होंने कभी भी विचारधारा की लड़ाई नहीं लड़ी बल्कि भाजपा का विकल्प बनने के लिए भाजपा के हिंदुत्व रास्ते पर बढ़ने का प्रयास किया। फ्री बांट कर जो वोट बैंक बनाने की रणनीति अपनाई थी वह भी आर्थिक कारणों से सफल नहीं हुई। इससे भी जनता का भरोसा टूटा और मोदी की गारंटी सफल रही।
2011 में स्थितियां बदली, अवसर मिला, अन्ना आंदोलन का फ़ायदा अपने सियासत के लिए हाईजैक कर लिया। दिमाग के तेज थे। भ्रष्ट व्यवस्था में कैसे मीडिया का उपयोग किया जाता है। भावनात्मक रूप से जनता को किस तरह से जोड़ा जा सकता है। इसमें माहिर केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया और 2013 में विधानसभा चुनाव लड़े। पार्टी गठन और उसके नाम से ही केजरीवाल के कुशाग्र बुद्धि का अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो उन्होंने पार्टी का नाम आम आदमी पार्टी रखा। आंदोलन के समय राजनीतिक पार्टी का गठन और 2013 के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल के साथ बड़े-बड़े विभिन्न क्षेत्रों के अनुभवी लोग जिसमें शांति भूषण, योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास, आशुतोष, किरण बेदी जैसे चेहरे जुड़े थे। चुनाव में अप्रत्याशित सफलता मिली। 28 सीटें जीती। भाजपा 32 और कांग्रेस 8 तथा 2 अन्य चुनाव जीते। भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस ने सबसे बड़ी गलती शीला दीक्षित को चुनाव हराने वाले केजरीवाल को ही समर्थन देकर मुख्यमंत्री बनवा दिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद इनकी महत्वाकांक्षा जल्दी ही राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा में जाने की हो गयी। केजरीवाल जानते थे कि मनमोहन सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार, जन लोकपाल विधेयक को लेकर जबरदस्त जनाक्रोश है।
इसको देखते हुए बड़े चालाकी के साथ जन लोकपाल विधेयक को विधानसभा में पेश किया जो पास नहीं हुआ उसी का बहाना लेकर मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। इस इस्तीफे के पीछे भी राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा में पहुंचने में इसकी महत्वाकांक्षा थी। इसलिए मात्र 49 दिनों की सरकार चलाने के बाद 14 फरवरी, 2014 को इस्तीफ़ा दे दिया। राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। केजरीवाल जानते थे कि भ्रष्टाचार और लोकपाल विधेयक को लेकर कांग्रेस के खिलाफ जबरदस्त जनाक्रोश है। इसका लाभ उठाया जाय इसी रणनीति के तहत उन्होंने इस्तीफ़ा दिया और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी में लोकसभा का चुनाव लड़ गए। पूरे देश में 434 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किये। उन्हें यह गलतफ़हमी थी कि दिल्ली में चंद दिन पहले गठित पार्टी को सरकार बनाने का अवसर मिल गया। उनकी लोकप्रियता पूरे देश में है। इसका तत्काल लाभ उठाया जा सकता है इसीलिए चुनाव में भ्रष्टाचार और जन लोकपाल विधेयक को ही प्रमुखता से उठाया और यह सच है कि मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर इतना ज्यादा नाराजगी देश में थी और केजरीवाल ईमानदार सियासत के रूप में लोकप्रिय भी हो गए थे। पुराने साथी योगेंद्र यादव कहते है कि केजरीवाल की ईमानदारी का जुनून पढ़े लिखे नौजवान सब में था जिसके कारण भारी संख्या में लोग आप पार्टी में आये इसका लाभ मिला लेकिन केजरीवाल को यह नहीं पता था कि गुजरात मॉडल के नाम पर नरेंद्र मोदी के चेहरे पर पूरे देश में एक आंधी चल रही है। इस आंधी के आगे उनकी महत्वाकांक्षा धाराशाही हो जाएगी लेकिन उन्होंने प्रयास किया और मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने के कारण चर्चा में भी रहे। 2 लाख 30 हजार वोट भी मिले जबकि मोदी को 5 लाख से अधिक मत मिले। मोदी के खिलाफ इतना अधिक मत पाना भी केजरीवाल के लोकप्रियता का आधार रहा है।
एक वर्ष तक दिल्ली राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा। इस दौरान केजरीवाल ने एक नई राजनीतिक विकल्प देने के वादे को जन-जन तक पहुंचाने में सफलता अर्जित की जिसका लाभ उन्हें मिला। 2014 में दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर जीतने वाली भाजपा 2015 में केजरीवाल से करारी शिकस्त मिली। कांग्रेस शून्य पर पहुंच गयी। आप पार्टी को 70 में 67 सीटें और भाजपा 3 सीट पर सिमट गयी। देश के किसी भी राज्य में विधानसभा में जीतने का स्ट्राइक रेट का रिकॉर्ड भी बनाया। यही नहीं जो साथी उनके साथ बड़े-बड़े नाम के जुड़े थे। ऐसी परिस्थिति पैदा कर दी कि वह सभी आप पार्टी से दूर हो गए। केजरीवाल ने अपना एक नया राजनीतिक समर्थक पैदा किया। उन्हें ही विधायक और मंत्री परिषद् में शामिल किया। बड़े-बड़े अनुभवी नाम जिनमें उच्चतम न्यायालय के प्रख्यात अधिवक्ता प्रशांत भूषण, सियासत की गहरी जानकारी रखने वाले योगेन्द्र यादव, मीडिया के स्तंभ माने जाने वाले आशुतोष, बहुमुखी प्रतिभा के धनी कुमार विश्वास, प्रशासनिक क्षमता के रूप में जाने वाली किरण बेदी सभी पर केजरीवाल का राजनीतिक कौशल भारी पड़ा। 70 में 67 सीट जीतने के बाद केजरीवाल ने दिल्ली में गरीबों, स्लम बस्ती, झुग्गी झोपड़ी, ऑटो चालाक एवं महिलाओं जिनकी अहम् भूमिका होती है उन्हें ही वोट बैंक के रूप में जोड़ लिया। उनको 200 यूनिट फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री बस सुविधा दिया और शिक्षा स्वास्थ्य को एक मॉडल के रूप में मोहल्ला क्लिनिक बनाने का अभियान शुरू किया। यह सही है कि 2015 से 2020 प्रथम 5 वर्ष के कार्यकाल में केजरीवाल ने शिक्षा और स्वास्थ्य पर अच्छा कार्य किया जो एक मॉडल भी बन गया। यही रणनीति दिल्ली में सफलता मिलने के बाद केजरीवाल की महत्वाकांक्षा मोदी का विकल्प बनने की शुरू हो गयी और उन्होंने इसके लिए देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को कमजोर करने का लक्ष्य बनाया। दिल्ली में मिली सफलता से उत्साहित होकर केजरीवाल ने दिल्ली मॉडल के नाम पर पंजाब में 117 विधानसभा सीटों में 92 सीटें जीती। भगवंत मान को मुख्यमंत्री बनाया। गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड जैसे कई राज्यों में कांग्रेस को कमजोर करने और हराने का कार्य किया। निरंतर मिली सफलता से उत्साहित केजरीवाल को 2020 में 70 में 62 सीटें मिली तो उनकी महत्वाकांक्षा परवान पर चढ़ गयी क्योकि कांग्रेस निरंतर कमजोर हुई और उसे नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए भी 2014 और 2019 में 54 सीटें नहीं मिली। इन्ही महत्वाकांक्षा को पाले केजरीवाल कांग्रेस के साथ-साथ 2024 में मोदी का विकल्प बनने की जल्दबाजी कर दी। उन्होंने राहुल से ज्यादा भाजपा सरकार और मोदी पर सीधे व्यक्तिगत हमले भी शुरू कर दिए। विधानसभा के बाहर जिन आरोपों को मोदी पर नहीं लगा सकते थे उसे विधानसभा के अंदर लगाना शुरू कर दिया। उन्होंने क्षेत्रीय दलों से संपर्क करके तीसरा मोर्चा भी बनाने की रणनीति बनाई। इसीलिए 2023 में जब इंडिया गठबंधन जोर-शोर से शुरू हुआ। केजरीवाल बेमन से रणनीति के तहत गठबंधन का पार्ट बन गए। लेकिन उनकी महत्वाकांक्षाएं मोदी के विकल्प की थी। इसीलिए छोटे से राज्य के मुख्यमंत्री होने के बाद भी मोदी की तर्ज पर पूरे देश में मीडिया को हजारों करोड़ एक विज्ञापन दिया। और दिल्ली मॉडल को प्रचारित किया। इसी जल्दबाज़ी में 17 अप्रैल 2023 को विधानसभा के अंदर कक्षा चार पास राजा की कहानी सुना कर बिना नाम लिए मोदी पर व्यक्तिगत हमला किया उसी के साथ इनके बुरे दिन शुरू हो गए। मोदी के साथ कार्य करने वाले एक अधिकारी ने केजरीवाल के भाषण को सुनकर बताया था कि मोदी पर इस तरह से व्यक्तिगत हमला करके केजरीवाल ने बहुत भूल की है और निश्चित रूप से मोदी का जो रिकॉर्ड है व्यक्तिगत छवि को ख़राब करने वाले को कभी अवसर आने पर छोड़ते नहीं है। अधिकारी की बात सच निकली। विधानसभा में बयान के बाद केंद्र की एजेंसियां जो आप पार्टी के दूसरे नेताओं पर भ्रष्टाचार शराब घोटाले की जांच करके उन्हें जेल भेजती रही उनका फोकस केजरीवाल की तरफ भी बढ़ा और शराब घोटाले के चपेट में आ कर जेल जाना पड़ा। जेल जाने के बाद दवाब में आये केजरीवाल ने इंडिया गठबंधन में शामिल होने की सहमति दी और मज़बूरी में दिल्ली में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से समझौता किया। लेकिन लोकसभा में गठबंधन हार गया और भाजपा फिर सातों सीटों पर चुनाव जीत गयी। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस को 100 सीटें मिली। उसका मनोबल बढ़ा लेकिन महाराष्ट्र और हरियाणा में हार से केजरीवाल की महत्वाकांक्षाएं फिर जाएगी और उन्होंने कांग्रेस से समझौता न करने की घोषणा कर दी। उन्हें समाजवादी पार्टी, शिवसेना, तृणमूल कांग्रेस, सपा, एनसीपी सबका साथ मिला। शत्रुघ्न सिन्हा ने रैली की। अखिलेश यादव ने केजरीवाल के लिए वोट मांगे। यही नहीं केजरीवाल मोदी को यहाँ तक चुनौती देते रहे कि प्रधानमंत्री मोदी दूसरा जन्म भी लेले तो भी उन्हें दिल्ली में चुनाव नहीं हरा सकते। उनका आधार भी मजबूत था। उन्हें चुनाव हारने के बाद भी 43% और भाजपा को 45% मत मिले हैं। सीटों का अंतर काफी है। भाजपा को 48 और आपको 22 सीटें मिली और कांग्रेस का खाता नहीं खुला। आप के बड़े नेता अरविन्द केजरीवाल मनीष सिसोदिया सहित 14 सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों ने हराने का काम किया जैसा की चुनाव परिणाम के आकड़े बता रहे हैं। केजरीवाल और सिसोदिया जिसने मतों से हारे उससे अधिक मत कांग्रेस प्रत्याशी को मिला है। इस प्रकार केजरीवाल के हारने का पहला कारण महत्वाकांक्षा रही है।
झूठ
केजरीवाल के दिल्ली चुनाव हारने में झूठ भी एक बड़ा कारण रहा है। ईमानदारी की छवि और नई सियासत करने आये केजरीवाल पर गंभीर और तथ्यों के साथ उनके झूठ जनता के सामने खुल कर आ गए। उन्होंने कहा था कि सत्ता में आने के बाद सरकारी बंगला नहीं लेंगे। सुरक्षा नहीं लेंगे , बड़ी गाडी नहीं लेंगे और आम आदमी की तरह जनता से सीधे जुड़े रहेंगे। लेकिन यह झूठ साबित हुआ। सरकारी आवास न लेने वाले की बात करने वाले केजरीवाल शीश महल में चले गए जो 50 करोड़ से अधिक लागत से बना था। जिसको लेकर सीएजी की रिपोर्ट में स्पष्ट भ्रस्टचार का उल्लेख किया गया है। शीश महल चुनाव में एक चर्चा का विषय रहा। शीश महल एक बहुत बड़ा चुनावी मुद्दा बना जिसे राहुल गाँधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चुनाव में खूब प्रचारित किया। छोटी गाड़ी से चलने की बात करने वाले केजरीवाल महंगी गाड़ियों के काफिले में चलने लगे। लाल बत्ती संस्कृति ख़त्म करने की बात को भूल गए। एक राज्य ही नहीं दिल्ली और पंजाब दो-दो राज्यों की सुरक्षा के घेरे में रहने लगे। पंजाब चुनाव में महिलाओं को 1000 रुपया देने तथा अन्य कई कल्याणकारी सीधे लाभ देने वाली योजनाओं की घोषणा की थी उसे पूरा नहीं किया। उनके झूठ की ऐसी लम्बी फेहरिस्त हो गयी जिसका नुकसान दिल्ली चुनाव में उठाना पड़ा क्योंकि जनता ने केजरीवाल की गारंटी ज्यादा मोदी की गारंटी पर भरोसा किया। निरंतर झूठ बोलने के कारण जनता में एक परसेप्शन भी बन गया कि केजरीवाल दूसरे राजनीतिक दलों से ज्यादा झूठ बोलते हैं।
अहंकार
केजरीवाल में तीसरा कारण उनका अहंकार रहा है। 2015 और 2017 में दिल्ली में जिन वोट बैंक ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था उस उन्होंने अपना बंधुआ मतदाता मान लिया इसलिए कांग्रेस से समझौता नहीं किया। इंडिया गठबंधन से जुड़े क्षेत्रीय दलों को समर्थन लेकर चुनाव जीतने की गारंटी मान ली। मोदी को चुनौती दे दी कि दूसरा जन्म भी लेले तब भी मोदी उन्हें चुनाव नहीं हरा सकते। राहुल गाँधी को भ्रष्टाचार के पोस्टर में दूसरा स्थान पर चिपकवा दिया। अखिलेश यादव ममता बनर्जी शरद पवार उद्धव ठाकरे जैसे क्षेत्रीय दलों के समर्थन मिलने के बाद कांग्रेस को नकार दिया और उन्हें पूरा भरोसा था कि 2015 और 2020 जैसे ही चुनाव परिणाम आएंगे। इतना अधिक अहंकार नहीं होता और कांग्रेस से समझौता रहता तो शायद केजरीवाल खुद भी चुनाव जीत जाते।
उनकी यह भी रणनीति थी कि मुस्लिम मतदाता मज़बूरी में भाजपा को हराने के लिए आप पार्टी को वोट देंगे इसीलिए अल्पसंख्यकों से जुड़े हुए सभी मुद्दों पर शांत रहे। दिल्ली में CAA NRC और अल्पसख्यकों के आवास तोड़ने और कई घटनायें जिस पर केजरीवाल चुप रहे और उनकी पार्टी के मुस्लिम विधायक भी मुखर नहीं हुए। इसका लाभ ओवैसी और कांग्रेस को मिला। उनका अहंकार इस तरीके से हावी था कि पंजाब में भगवंत मान मुख्यमंत्री कम केजरीवाल के दरवारदारी ज्यादा बन गए हैं जिससे लोगों में नाराजगी भी है। केजरीवाल यह कहते थे कि हाई कमान नहीं होगा। लेकिन दिल्ली और पंजाब की सफलता से उनका अहंकार इतना अधिक बढ़ गया कि आप दूसरे दलों से अधिक व्यक्ति आधारित पार्टी बन गयी। यही नहीं जो कार्यकर्ताओं ने तन मन धन से आप को समर्पित रहे जब भी अवसर आया किसी को भी राज्य सभा नहीं भेजा बल्कि पैसे वालों को राज्य सभा भेजा यह भी उनका अहंकार ही है।
भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार के खिलाफ गठित आम आदमी पार्टी धीरे-धीरे भ्रष्टाचार में ही डूब गयी। जिन बातों पर लेकर केजरीवाल भ्रष्टाचार की संज्ञा देते थे वह खुद ही करने लगे। सीएजी रिपोर्ट में कोल घोटाला, टू जी स्पेक्ट्रम और वित्तीय अनियमितता की बात उभर के सामने आयी थी उसे बड़ा घोटाला माना गया था लेकिन जब केजरीवाल की सरकार में सीएजी ने ऑडिट में मुख्यमंत्री आवास पर 30 करोड़ से अधिक वित्तीय अनियमितता पायी तो डर के कारण विधानसभा के पटल पर नहीं लाये और घोटाला मानने से भी इंकार करते रहे। मनमोहन सरकार में भी सीएजी रिपोर्ट लोकसभा के पटल पर आने से पहले ही लीक हो गयी थी जिसे केजरीवाल फोटोकापी लेकर घोटाला घोटाला चिल्लाते रहे। वही सीएजी रिपोर्ट की फोटो कॉपी लेकर भाजपा कांग्रेस ने उठाया तो उसे घोटाला मानने से इंकार करते रहे। शराब घोटाला, शिक्षा घोटाला ,परिवहन घोटाला स्वास्थ्य घोटाला एमसीडी घोटाला जैसे तमाम आरोपों के बीच केजरीवाल पारदर्शी तरीके से इन घोटालों के आरोपों को जबाव नहीं दे पाए। 100 करोड़ से अधिक शराब घोटाले का आरोप ऐसा आप पार्टी पर लगा जिसके कारण केजरीवाल सिसोदिया संजय सिंह सहित कई बड़े नेता जेल गए। हालांकि अभी घोटाले प्रूफ नहीं हुए है लेकिन ऐसा ही घोटालों का आरोप मनमोहन सरकार के खिलाफ था जो बाद में न्यायालय में प्रूफ नहीं हो पाया। दूसरा अहम् सवाल यह रहा है कि मीडिया में जिस तरह से करोडो के विज्ञापन दिया उससे भी जनता में एक परसेप्शन बन गया कि केजरीवाल सरकार अपनी कमियों को छुपाने के लिए मीडिया को विज्ञापन देकर मुँह बंद कर दिया है। इसका भी नुकसान केजरीवाल को उठाना पड़ा क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ गठित पार्टी को जिन मतदाताओं ने भरोसा करके वोट किया था कि भ्रष्टाचार रुकेगा। वह नहीं हुआ। अपने तमाम नाकामियों और भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए सत्ता में रहते हुए हर दिन कुछ न कुछ बयान बाजी और सड़क पर धरना प्रदर्शन भी करते रहे। लगातार यह आरोप लगाते रहे कि भाजपा उन्हें कार्य नहीं करने देती उनके अधिकारों को चीन लिया है। एजेंसियों आप पार्टी नेताओं को परेशान कर रही है। भ्रष्टाचार को लेकर नए-नए शगूफे भी छोड़ते रहे है कि उनकी पार्टी थोड़ी जा रही है। विधायक खरीदे जा रहे है।
उपरोक्त चारों बिन्दुओं के अलावा अहम् बिंदु यह है कि केजरीवाल बहुसंख्यको की सियासत को भाजपा के आंगन के परिधि में खेलते रहे। उन्होंने कभी भी विचारधारा की लड़ाई नहीं लड़ी बल्कि भाजपा का विकल्प बनने के लिए भाजपा के हिंदुत्व रास्ते पर बढ़ने का प्रयास किया। फ्री बांट कर जो वोट बैंक बनाने की रणनीति अपनाई थी वह भी आर्थिक कारणों से सफल नहीं हुई। इससे भी जनता का भरोसा टूटा और मोदी की गारंटी सफल रही।
13th February, 2025