
राजेन्द्र द्विवेदी, यूरीड मीडिया- देश में एक ही मतदाता सूची पर विधानसभा, लोकसभा एवं पंचायत और शहरी निकायों के चुनाव हों तो विवाद कम हो सकते हैं। अभी तक विधानसभा, लोकसभा, पंचायत एवं शहरी निकायों की मतदाता सूची अलग-अलग बनती है, जिसके कारण करोड़ों रुपए अधिक खर्च होते हैं और मतदाता सूचियों की विसंगतियाँ बढ़ती हैं, जिससे विवाद बढ़ता जा रहा है। यह देखा जा रहा है और वास्तविकता भी है कि चारों चुनावों में मतदान प्रतिशत और मतदाता सूची की संख्या में निरंतर बदलाव होते रहते हैं। अगर ग्राम पंचायत के चुनाव में मतदाता सूची में नाम है, तो विधानसभा में क्यों नहीं है? इसी तरह, विधानसभा में है तो लोकसभा में क्यों काटा गया?
इन तमाम सवालों का जवाब निर्वाचन आयोग के पास नहीं होता क्योंकि पंचायत एवं शहरी निकायों की मतदाता सूची एवं चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग करता है, जबकि विधानसभा और लोकसभा की निर्वाचन सूची और चुनाव भारत निर्वाचन आयोग द्वारा कराए जाते हैं। लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि चुनाव कराने और मतदाता सूची बनाने की ज़िम्मेदारी जनपद स्तर पर होती है, जिसका कार्य जिलाधिकारी देखता है। चारों चुनावों की मतदाता सूची एवं चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी डीएम की होती है। इसी तरह, अन्य अधिकारी बूथ स्तर से लेकर जिला स्तर तक समान होते हैं।
अगर एक मतदाता सूची, जो पंचायत एवं शहरी निकायों के लिए बनाई गई है, वह काफी हद तक सही होती है क्योंकि यह चुनाव व्यक्तिगत स्तर पर होता है, जिसमें प्रत्याशी एवं उसके समर्थक प्रत्येक मतदाता को जानते हैं। इसी कारण मतदान प्रतिशत भी अधिक होता है, जबकि विधानसभा एवं लोकसभा में मतदान कम होते हैं और चारों मतदाता सूचियों में अलग-अलग घट-बढ़ होते हैं, जिससे विवाद उत्पन्न होता है।
भारत निर्वाचन आयोग को "एक देश, एक चुनाव" कराना चाहिए, लेकिन उससे पहले एक मतदाता सूची पर चुनाव कराने का प्रयास होना चाहिए।
इन तमाम सवालों का जवाब निर्वाचन आयोग के पास नहीं होता क्योंकि पंचायत एवं शहरी निकायों की मतदाता सूची एवं चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग करता है, जबकि विधानसभा और लोकसभा की निर्वाचन सूची और चुनाव भारत निर्वाचन आयोग द्वारा कराए जाते हैं। लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि चुनाव कराने और मतदाता सूची बनाने की ज़िम्मेदारी जनपद स्तर पर होती है, जिसका कार्य जिलाधिकारी देखता है। चारों चुनावों की मतदाता सूची एवं चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी डीएम की होती है। इसी तरह, अन्य अधिकारी बूथ स्तर से लेकर जिला स्तर तक समान होते हैं।
अगर एक मतदाता सूची, जो पंचायत एवं शहरी निकायों के लिए बनाई गई है, वह काफी हद तक सही होती है क्योंकि यह चुनाव व्यक्तिगत स्तर पर होता है, जिसमें प्रत्याशी एवं उसके समर्थक प्रत्येक मतदाता को जानते हैं। इसी कारण मतदान प्रतिशत भी अधिक होता है, जबकि विधानसभा एवं लोकसभा में मतदान कम होते हैं और चारों मतदाता सूचियों में अलग-अलग घट-बढ़ होते हैं, जिससे विवाद उत्पन्न होता है।
भारत निर्वाचन आयोग को "एक देश, एक चुनाव" कराना चाहिए, लेकिन उससे पहले एक मतदाता सूची पर चुनाव कराने का प्रयास होना चाहिए।
6th March, 2025