
राजेन्द्र द्विवेदी, यूरीड मीडिया- कांशीराम के चेतना के माध्यम से दलितों को सत्ता तक पहुंचाने का मिशन उत्तर प्रदेश में पूरा हुआ, मायावती 4 बार मुख्यमंत्री बनीं—3 बार भाजपा के समर्थन से और 2007-12 तक पूर्ण बहुमत सरकार की मुख्यमंत्री रहीं।
पूर्ण बहुमत की सरकार अचानक नहीं बनी, बल्कि कांशीराम के तीन दशक से अधिक किए गए संघर्ष, अपनाई गई रणनीति एवं उनके त्याग के कारण बनी थी। बसपा की स्थापना से लेकर 2007 तक बसपा का कैडर बहुत मजबूत रहा। कांशीराम ने दलित एवं अतिपिछड़ों को सत्ता में भागीदारी दिलाने के लिए ज़मीनी संघर्ष किया, काफी ताकतवर और विभिन्न जातियों के जुझारू नेताओं को बसपा से जोड़ा। इसी का परिणाम रहा कि मायावती कांशीराम की उत्तराधिकारी के रूप में पूर्ण बहुमत की मुख्यमंत्री बनीं। कांशीराम की मेहनत से मिली सफलता को मायावती संभाल नहीं पाईं और उन्हें यह अहंकार हो गया कि वे जैसा चाहेंगी, वैसा करेंगी। इस तानाशाही सियासत के चलते बड़े से बड़े नेता को बसपा से निकाल दिया। यह सिलसिला चलता रहा। कांशीराम के साथ संघर्ष करने वाले जितने भी बड़े नेता थे, मायावती ने एक-एक करके सबको बाहर कर दिया। इसी के साथ पार्टी भी कमजोर होती गई।
चुनाव में मिली असफलताओं, जांच एजेंसियों के भय और अधिक उम्र को देखते हुए उन्होंने राजनीतिक उत्तराधिकारी अपने भतीजे आकाश आनंद को बनाया। ये विदेश में पढ़े हैं और उनकी शादी भी एक सियासी नेता अशोक सिद्धार्थ की बेटी से हुई है। उत्तराधिकारी बनने के बाद आनंद ने अपनी बुआ मायावती के तमाम निर्णयों को बिना घोषित किए प्रभावित किया। 2019 लोकसभा चुनाव में आक्रामक प्रचार एवं विवादित बयान के कारण मायावती ने उत्तराधिकारी के पद से हटाने की घोषणा की। इसके हटाने के पीछे केंद्र सरकार रही, भाजपा का दबाव भी माना जाता है। चुनाव के बाद आकाश आनंद को फिर राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर के साथ उत्तराधिकारी बना दिया। आकाश को देश में हो रहे राज्यों के चुनाव की ज़िम्मेदारी भी सौंपी गई। दक्षिण भारत के राज्यों के प्रभारी आकाश के ससुर सिद्धार्थ को बनाया गया। चूंकि सिद्धार्थ मायावती के रिश्तेदार थे, उन्होंने उसका लाभ उठाया। शिकायत हुई, तो मायावती ने उन्हें हटा दिया।
ससुर के हटाए जाने के बाद आकाश की भी राजनीतिक गतिविधियां संदिग्ध हुईं और मायावती ने दूसरी बार आकाश को उत्तराधिकारी, नेशनल कोऑर्डिनेटर पद के साथ-साथ पार्टी से भी निष्कासित कर दिया। अपने भाई एवं आकाश के पिता आनंद कुमार और रामजी गौतम को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाया और साथ में यह घोषणा भी कर दी कि वह अपने रहते हुए किसी को अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं करेंगी। लेकिन आकाश की सियासी महत्वाकांक्षाएं उनके ससुर सिद्धार्थ बढ़ा रहे हैं और यही आरोप मायावती ने लगाया है कि आकाश अपने ससुर सिद्धार्थ के प्रभाव में कार्य कर रहे हैं। हालांकि, आकाश ने अपने एक्स (Twitter) पर मायावती के निर्देशों का अनुपालन करने और दलितों के हित में कार्य करने की बात लिखी है, लेकिन यह मामला अभी शांत नहीं हुआ है।
मायावती के तानाशाही रवैये के कारण पार्टी में विरोध तो है, लेकिन डर के कारण कोई बोल नहीं रहा है। लेकिन आकाश के तेवर से लग रहा है कि स्थिति बहुत सामान्य नहीं है। मायावती जिस तरह से दो बार अपमानित करके उत्तराधिकारी पद से हटाया और पार्टी से निष्कासित कर दिया, आकाश मायावती के भतीजे हैं, इसलिए ताकतवर हैं और मायावती की मजबूरी भी।
पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद मायावती ने काफी मनमानी की। इन 5 वर्षों में पूर्ण बहुमत की सरकार में लखनऊ से लेकर नोएडा तक दलित महापुरुषों के स्मारक करोड़ों खर्च करके बनवाए। जो स्मारक लखनऊ या दिल्ली में बनाए गए, वे निश्चित रूप से वर्षों तक यादगार के रूप में रहेंगे। इन 5 वर्षों के बीच सत्ता में रहते हुए मायावती ने निर्माण कार्यों में ऐसी अनियमितताएं कीं, जो उनकी सियासत के लिए जांच एजेंसियों का हथियार बन गईं।
केंद्र एवं उत्तर प्रदेश की जांच एजेंसियों के पास निर्माण कार्यों में करोड़ों रुपये के दस्तावेजी सबूत एकत्र किए गए, जिसके आधार पर मायावती एवं उनके आसपास रहने वाले प्रभावशाली अफसरों के आवास एवं ठिकानों पर छापे भी मारे गए। इन छापों में भी कई दस्तावेज मिले हैं, ऐसा दावा जांच एजेंसियों के अधिकारियों का है।
2007-12 तक मायावती उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री थीं। उस समय केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी। 2012 चुनाव में बसपा को पराजय मिली और सपा सरकार बनी। 2014 लोकसभा चुनाव में केंद्र में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने।
केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद मायावती के ऊपर जांच एजेंसियों का दबाव बना, उसी आधार पर उनकी सियासत भी शुरू हुई। जिसका प्रभाव यह रहा कि जिस आक्रामकता के साथ चुनाव लड़ती थीं, वह ढीली पड़ी और यह आरोप परिस्थितियों के अनुसार चुनाव में दिखाई भी दिए।
2014 में 19% मत मिले और खाता नहीं खुला।
2019 चुनाव में सपा से समझौता था, 10 सीटें मिली थीं।
2024 में मत प्रतिशत घटकर 9.5% और सीट शून्य हो गई।
विधानसभा चुनाव में 2017 में 22% वोट और 19 सीटें मिलीं, जबकि 2022 में 12.88% वोट और 1 सीट मिली, जो अब तक की सबसे खराब स्थिति कही जा सकती है।
जिस तरह से मायावती सियासत कर रही हैं और जो परसेप्शन बन गया कि वह केंद्र सरकार के दबाव में आकर आक्रामक राजनीति नहीं कर पा रही हैं, इससे उनकी स्थिति कमजोर होती गई। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी यही आरोप लगाया है कि अगर मायावती साथ होतीं, तो मोदी की सरकार तीसरी बार नहीं बनती
पूर्ण बहुमत की सरकार अचानक नहीं बनी, बल्कि कांशीराम के तीन दशक से अधिक किए गए संघर्ष, अपनाई गई रणनीति एवं उनके त्याग के कारण बनी थी। बसपा की स्थापना से लेकर 2007 तक बसपा का कैडर बहुत मजबूत रहा। कांशीराम ने दलित एवं अतिपिछड़ों को सत्ता में भागीदारी दिलाने के लिए ज़मीनी संघर्ष किया, काफी ताकतवर और विभिन्न जातियों के जुझारू नेताओं को बसपा से जोड़ा। इसी का परिणाम रहा कि मायावती कांशीराम की उत्तराधिकारी के रूप में पूर्ण बहुमत की मुख्यमंत्री बनीं। कांशीराम की मेहनत से मिली सफलता को मायावती संभाल नहीं पाईं और उन्हें यह अहंकार हो गया कि वे जैसा चाहेंगी, वैसा करेंगी। इस तानाशाही सियासत के चलते बड़े से बड़े नेता को बसपा से निकाल दिया। यह सिलसिला चलता रहा। कांशीराम के साथ संघर्ष करने वाले जितने भी बड़े नेता थे, मायावती ने एक-एक करके सबको बाहर कर दिया। इसी के साथ पार्टी भी कमजोर होती गई।
चुनाव में मिली असफलताओं, जांच एजेंसियों के भय और अधिक उम्र को देखते हुए उन्होंने राजनीतिक उत्तराधिकारी अपने भतीजे आकाश आनंद को बनाया। ये विदेश में पढ़े हैं और उनकी शादी भी एक सियासी नेता अशोक सिद्धार्थ की बेटी से हुई है। उत्तराधिकारी बनने के बाद आनंद ने अपनी बुआ मायावती के तमाम निर्णयों को बिना घोषित किए प्रभावित किया। 2019 लोकसभा चुनाव में आक्रामक प्रचार एवं विवादित बयान के कारण मायावती ने उत्तराधिकारी के पद से हटाने की घोषणा की। इसके हटाने के पीछे केंद्र सरकार रही, भाजपा का दबाव भी माना जाता है। चुनाव के बाद आकाश आनंद को फिर राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर के साथ उत्तराधिकारी बना दिया। आकाश को देश में हो रहे राज्यों के चुनाव की ज़िम्मेदारी भी सौंपी गई। दक्षिण भारत के राज्यों के प्रभारी आकाश के ससुर सिद्धार्थ को बनाया गया। चूंकि सिद्धार्थ मायावती के रिश्तेदार थे, उन्होंने उसका लाभ उठाया। शिकायत हुई, तो मायावती ने उन्हें हटा दिया।
ससुर के हटाए जाने के बाद आकाश की भी राजनीतिक गतिविधियां संदिग्ध हुईं और मायावती ने दूसरी बार आकाश को उत्तराधिकारी, नेशनल कोऑर्डिनेटर पद के साथ-साथ पार्टी से भी निष्कासित कर दिया। अपने भाई एवं आकाश के पिता आनंद कुमार और रामजी गौतम को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाया और साथ में यह घोषणा भी कर दी कि वह अपने रहते हुए किसी को अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं करेंगी। लेकिन आकाश की सियासी महत्वाकांक्षाएं उनके ससुर सिद्धार्थ बढ़ा रहे हैं और यही आरोप मायावती ने लगाया है कि आकाश अपने ससुर सिद्धार्थ के प्रभाव में कार्य कर रहे हैं। हालांकि, आकाश ने अपने एक्स (Twitter) पर मायावती के निर्देशों का अनुपालन करने और दलितों के हित में कार्य करने की बात लिखी है, लेकिन यह मामला अभी शांत नहीं हुआ है।
मायावती के तानाशाही रवैये के कारण पार्टी में विरोध तो है, लेकिन डर के कारण कोई बोल नहीं रहा है। लेकिन आकाश के तेवर से लग रहा है कि स्थिति बहुत सामान्य नहीं है। मायावती जिस तरह से दो बार अपमानित करके उत्तराधिकारी पद से हटाया और पार्टी से निष्कासित कर दिया, आकाश मायावती के भतीजे हैं, इसलिए ताकतवर हैं और मायावती की मजबूरी भी।
पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद मायावती ने काफी मनमानी की। इन 5 वर्षों में पूर्ण बहुमत की सरकार में लखनऊ से लेकर नोएडा तक दलित महापुरुषों के स्मारक करोड़ों खर्च करके बनवाए। जो स्मारक लखनऊ या दिल्ली में बनाए गए, वे निश्चित रूप से वर्षों तक यादगार के रूप में रहेंगे। इन 5 वर्षों के बीच सत्ता में रहते हुए मायावती ने निर्माण कार्यों में ऐसी अनियमितताएं कीं, जो उनकी सियासत के लिए जांच एजेंसियों का हथियार बन गईं।
केंद्र एवं उत्तर प्रदेश की जांच एजेंसियों के पास निर्माण कार्यों में करोड़ों रुपये के दस्तावेजी सबूत एकत्र किए गए, जिसके आधार पर मायावती एवं उनके आसपास रहने वाले प्रभावशाली अफसरों के आवास एवं ठिकानों पर छापे भी मारे गए। इन छापों में भी कई दस्तावेज मिले हैं, ऐसा दावा जांच एजेंसियों के अधिकारियों का है।
2007-12 तक मायावती उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री थीं। उस समय केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी। 2012 चुनाव में बसपा को पराजय मिली और सपा सरकार बनी। 2014 लोकसभा चुनाव में केंद्र में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने।
केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद मायावती के ऊपर जांच एजेंसियों का दबाव बना, उसी आधार पर उनकी सियासत भी शुरू हुई। जिसका प्रभाव यह रहा कि जिस आक्रामकता के साथ चुनाव लड़ती थीं, वह ढीली पड़ी और यह आरोप परिस्थितियों के अनुसार चुनाव में दिखाई भी दिए।
2014 में 19% मत मिले और खाता नहीं खुला।
2019 चुनाव में सपा से समझौता था, 10 सीटें मिली थीं।
2024 में मत प्रतिशत घटकर 9.5% और सीट शून्य हो गई।
विधानसभा चुनाव में 2017 में 22% वोट और 19 सीटें मिलीं, जबकि 2022 में 12.88% वोट और 1 सीट मिली, जो अब तक की सबसे खराब स्थिति कही जा सकती है।
जिस तरह से मायावती सियासत कर रही हैं और जो परसेप्शन बन गया कि वह केंद्र सरकार के दबाव में आकर आक्रामक राजनीति नहीं कर पा रही हैं, इससे उनकी स्थिति कमजोर होती गई। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी यही आरोप लगाया है कि अगर मायावती साथ होतीं, तो मोदी की सरकार तीसरी बार नहीं बनती
6th March, 2025