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पराजय की हताशा, भाजपा के कारपोरेट स्वरूप में सांगठनिक लोकतंत्र लुप्त

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पराजय की हताशा, भाजपा के कारपोरेट स्वरूप में सांगठनिक लोकतंत्र लुप्त

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चुनावी हार से डरे योगी
योगी आदित्यनाथ के विधान परिषद का सदस्य बनने के बाद से प्रदेश के राजनीतिक गलियारो में यह चर्चा शून्य डिग्री हो गयी है कि क्या आदित्यनाथ विधानसभा चुनाव के हार के भय से चुनाव में जाने से कतरा गये। प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते त्रिभुवन नारायण सिंह (टी.एन.सिंह) गोरखपुर से ही विधानसभा का चुनाव हार गये थे। शायद गोरखपुर की क्रान्तिकारी माटी योगी आदित्यनाथ को भी वैसा ही सबक देने वाली थी, जिसका योगी को पहले ही भान हो गया। यदि ऐसा है तो भाजपा के बढ़ते जनाधार के दावों के लिए यह अपशकुन की घड़ी है।
प्रदेश का मुख्यमंत्री विधानसभा चुनाव का सामना नही कर सकता है, तो उसे नैतिक रूप से ऐसे पद पर बैठे रहने का अधिकार नही होना चाहिए। वैसे भाजपाई यह तर्क अवश्य देगे कि सपा और बसपा के मुख्यमंत्रियों ने भी विधान सभा का चुनाव न लड़कर विधान परिषद के माध्यम से ही राज्य की सत्ता चलायी। ऐसे में भाजपाइयों को लोकतांत्रिक मूल्यों और पार्टी के बढ़ते जनाधार का दावा नही करना चाहिए।