लखनऊ -पुलिस के मुखिया लाख पुलिस की छवि सुधारने की कवायद करते रहें लेकिन उत्तर प्रदेश की पुलिस प्राइवेट लिमिटेड की तरह काम करती नजर आ रही है थानों में लोगों के साथ अच्छा बर्ताव करने की हिदायत दी जा रही हो पुलिस अपने ही ढर्रे पर चलती नजर आ रही है लखीमपुर में लड़कियों के अपहरण के बाद पुलिस पर फिरौती देने का दबाव देने का आरोप लगना कोई छोटी मोटी बात नहीं है यह साबित करता है कि पुलिस अपहरण को धंधे के रूप में अप्रत्यक्ष रूप से चला रही है इसकी जांच होनी चाहिए ।
एक प्रकरण जनपद गोंडा का है जहाँ शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रस्ट्राचार के खुलासे और अधिकारीयों द्वारा मनमानी करने पर जहाँ माननीय उच्च न्यायलय में इंटरवीन करने के बाद शिक्षा विभाग में संगठित गिरोह संचालित करने वाले ने तिलमिलाकर नगर कोतवाली गोंडा में पत्रकार राजीव के ऊपर तत्कालीन इन्स्पेक्टर सिटी शिवपति सिंह को 50,000 घूस देकर मुकदमा कायम कराया इस मुक़दमे को एक साल होने को है लेकिन विवेचना के नाम पर मामले को लटकाये रखा जा रहा है मजेदार बात यह है कि जिसने मुकदमा कायम कराया है उसने कहीं से भी खुद आहत होने का आरोप नहीं लगाया है और यही सब आरोप सी जे एम न्यायलय गोंडा में एक अन्य प्रार्थना पत्र में दूसरे व्यक्ति द्वारा लगाये गए थे जिसको उसके द्वारा साबित न कर पाने के कारण प्रार्थना पत्र को न्यायलय द्वारा निरस्त भी किया जा चूका है ।दरोगा को लगभग आधे दर्जन पत्र द्वारा जवाब दिया जा चुका है तत्कालीन एस पी आर पी एस यादव से दो बार मिलकर उनको सारे प्रकरण से जुड़े साक्ष्य और तथ्य उपलब्ध कराये गए जिसे उन्होंने विवेचक को दे दिए ए डी जी कानून व्यवस्था द्वारा इस मामले के निस्तारण के आदेश दिए गए लेकिन सिपाही से दरोगा बने रविन्द्र सिंह के लिए उच्चाधिकारी के आदेश और न ही कानून माने रखता है इनके लिए बड़े मुश्किल से मिली वर्दी का जितना भी नकारात्मक इस्तेमाल किया जा सकता है किया जा रहा है इसी कारण से इन्हें पुलिस चौकी से भी हटा दिया गया लेकिन आदत में सुधार नहीं आ रहा है ।रविन्द्र सिंह द्वारा बताया जाता है कि उनके ऊपर किसी अधिकारी का चार्जशीट लगाने का दबाव भी है अब ऐसे में निस्पक्ष विवेचना कैसे संभव है इसकी भी जांच होनी चाहिए ।
गोंडा मे पहले कोतवाली में मनमानी और फिर अब दरोगा रविन्द्र सिंह ने पुलिस की वर्दी को अपना हथियार बनाकर कानून को ताक पर रख दिया है इस दरोगा को साजिशन दर्ज किये गए मुकदमा अपराध संख्या 115 /15 नगर कोतवाली गोंडा में दर्ज मुक़दमे एवं शिकायतकर्ता द्वारा गलत पहचान बताकर लगाये गए झूठे आरोपों का जवाब और न्यायलय द्वारा आरोपों के निर्णीत होने के साक्ष्य दिये जाने के बाद भी जानबूझकर मामले को लटकाये रखा जा रहा है ।चूँकि मामला पत्रकार राजीव से जुड़ा है इस मामले में गोंडा का पत्रकार संगठन अध्यक्ष कैलाश वर्मा के नेतृत्व में भी वर्तमान पुलिस कप्तान प्रदीप कुमार यादव से मिल चुका है लेकिन दरोगा की कार्यशैली और अधिकारियों को गुमराह करने कि प्रवृत्ति पर रोक नहीं लग रही है ।
दरोगा रविन्द्र सिंह अपने को कानून से भी ऊपर समझता है कानून यह कहता है कि जो मामला एक बार कोर्ट से निस्तारित हो गया उस पर विवेचना दुबारा नहीं हो सकती लेकिन कानून की धज्जियाँ उड़ा कर विभाग और कानून से अपने आपको ऊपर समझ कर रविन्द्र सिंह द्वारा इस मामले को लटकाये रखा जा रहा है जबकि यह मामला उच्च न्यायलय के निर्देश पर सक्षम अधिकारी डिप्टी रजिस्ट्रार फर्म्स सोसायटीज एवं चिट्स फैज़ाबाद द्वारा भी 2010 में एवं पुनः 2015 में निस्तारित किया जा चुका है दरोगा रविन्द्र सिंह ने इस मामले में सक्षम अधिकारी से भी लिखित पुष्टि कर ली है जिसे भी लगभग 3 माह बीत चुके हैं उसके बावजूद भी इन महाशय को अभी तक विवेचना पूरी करने का समय नहीं मिला ।
यह तो एक बानगी मात्र है इसी तरह से न जाने कितने विवेचना को उलझा कर पुलिस लोगों का मानसिक शोषण कर रही है ।
पुलिस के मुखिया का विभाग को सुधारने का प्रयास सराहनीय है लेकिन सिपाही से दरोगा बने रविन्द्र सिंह जैसे दरोगा पूरे प्रदेश में न जाने कितने होंगे जब तक इन लोगों को कानून का पाठ नहीं पढ़ाया जायेगा और इनको यह नहीं समझाया जायेगा कि यह व्यापार न कर के पुलिस विभाग की सेवा कर रहे हैं इनके ऊपर भी कानून लागू होता है विभाग की गाइडलाइन रहती है वर्दी लोगों को सुरक्षा देने के लिए दी गयी है न की वर्दी की धौंस दिखाकर लोगों को असुरक्षित करने और किसी की गरिमा को ठेश पहुचाने के लिए तब तक पुलिस विभाग की छवि में सुधार आना संभव नहीं है बेहतर होगा की विवेचकों को विवेचना से सम्बंधित ट्रेनिंग दी जाये और उन्हें निष्पक्ष रह कर विवेचना करने और कानून के दायरे में रहकर काम करने का पाठ पढ़ाया जाये तभी सुधार संभव है।
20th January, 2016