बेटी- बेटी होती है। बेटी को जाति-धर्म में नही बांटा जा सकता है आैर नही उसे अमीर-गरीब की खाई में बांटा जा सकता है। किसी जाति-धर्म में किसी बेटी को न तो ज्यादा प्यार किया जाता है आैर न ही दुत्कारा जाता है। यह भी नही कि अमीर की बेटियों को मां-बाप का ज्यादा प्यार मिलता है आैर गरीब की बेटी प्यार से बंचित होती है। संतान का प्यार तो जैविक होता है। जानवर भी अपने बच्चे के प्रति ज्यादा संवेदनशील होता है।
अब उत्तर प्रदेश की राजनीति में बेटी की अस्मिता का विवाद चल रहा है। मायावती दलित की बेटी है तो वोट प्रतिशत से उनका अपमान ठाकुर की बेटी के अपमान से ज्यादा गहरा है क्योंकि ठाकुर जाति का वोट प्रतिशत ज्यादा है। मायावती का तर्क है कि दलित वर्ग के लोग उनको देवी मानते है, इसलिए उनके आक्रोश पर ज्यादा भड़के। भारतीय समाज में तो आदिकाल से बेटियों को देवी रूप में पूजा जाता आ रहा है। यहां पर बेटियों को जातियों में बांटा ही नही गया। भारत में काली आैर दुर्गा की समान पूजा होती आ रही है। नौ देवियों में कौन -किस जाति की है आज तक कोई बता नही सकता आैर सनातन धर्मी विद्वानों ने इस पर कोई चर्चा ही की। बौद्ध धर्म के उपासकों में भी चीन में बौद्ध का एक स्वरूप नारी (देवी) के ही रूप में है।
दलित की बेटी के अपमान को लेकर बसपा कार्यकर्ताओं ने राजधानी लखनऊ में जंगल राज की याद दिला दी। साफ है कि सपा सरकार एक बार फिर से कानून का राज कायम करने में विफल रही। बसपाइयों ने अपनी बेटी के अपमान के बदले मां, पत्नी आैर बेटी को जिन शब्दों से नवाजा, उसे सभ्य आैर सुसंस्कृत समाज के लिए घिनौना ही कहा जा सकता है। मायावती को अपने समर्थकों के शब्दों पर कोई एतराज नही है आैर उनका कहना है कि वह इसलिए कहा गया कि दूसरों को भी पता लगे कि किसी की बहन-बेटी के अपमान करने का मतलब क्या होता है। इससे जाहिर होता है कि बसपाइयों को गाली देने का उपर से ही फरमान था। जवाब नसीमुद्दीन का तर्क सुनिये- वो कहते है कि उन्हें नही पता था कि दयाशंकर की बेटी नाबालिग है। ऐसे में मां की उम्र भी पूछ लेते। बसपाई मायावती की देवी के रूप में पूजा तो कर सकते है परन्तु अपनी मां-बेटी आैर पत्नी के सम्मान के लिए कोई भाव नही रखते। सम्मान पाने के लिए दूसरों का भी सम्मान करना पड़ता है। जो अपनी मां-बेटी आैर पत्नी के सम्मान के लिए सजग होता है, वह दूसरों की मां -बेटी आैर पत्नी का भी सम्मान करता है। यदि ऐसा नही होता तो बसपाई सड़क की भीड़ आैर मायावती -नसीमुद्दीन के बोल कुछ आैर होते।
अब बेटी पर राजनीति करने वालों का हाल देखिये। मुख्यमंत्री अखिलेश अपनी बुआ ( मायावती) के अपमान से इतना आहत हुए कि पुलिस को अपने स्तर से मुकदमा दर्ज कर सख्त कार्रवाई का आदेश दिया परन्तु इससे भी खतरनाक मामले 2 जून 1995 के घटनाक्रम पर आज तक समाजवादी चुप रहते है। यह केवल सपा का ही मामला नही था बल्कि दलित समाज आैर स्वयं अपने अपमान की दोहाई देने वाली मायावती चार बार मुख्यमंत्री होने के बाद भी इस मसले पर कोई ठोस कार्रवाई नही कर सकी। कांग्रेसियों को भी बसपा-भाजपा के इस झगड़े में हाथ सेंकने का मौका मिल गया परन्तु वे अपनी पूर्व अध्यक्ष रीता बहुगुणा के मायावती के बारे में बोले गये बोल के बारे में भूल गये। सोशल मीडिया ने नेताओं के इस दोहरे बोल पर खुब चुटकिया ली है। साफ है-सभी भारतीय संस्कृति के अनुरूप नारी का सम्मान करो, उसे जाति-धर्म में मत बांटो। नारी बेटी से मां होती है आैर सृष्टि मेंं उसका स्थान आैर कोई नही ले सकता है।
24th July, 2016