विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया)
लखनऊ
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प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान में राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के बारे में राजनीतिक क्षेत्र में जो भी हलचलें हो परन्तु राजधानी लखनऊ में तीन दिन के प्रवास में उनकी सक्रियता ने भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व को उत्तर प्रदेश की राजनीति के संदर्भ में नये सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है। इस प्रवास में प्रदेश भाजपा सहित राजनीतिक क्षेत्र के कई सूरमाओं जिसमें विपक्षी दल के कई प्रमुख नेता थे, सभी ने हाजिरी लगाकर अपनी वफादारी तथा उनके सहयोग एवं समर्थन की मांग की। हिन्दू हृृदय सम्राट तथा पिछड़ों के महानायक कल्याण सिंह की राजनीतिक दृढ़ता, प्रबल कार्यक्षमता तथा ईमानदारी की उनके विरोधी भी कायल है। अपनी स्वाभिमानी कार्यशैली के कारण कल्याण सिंह कई बार राजनीतिक विवादों में भी रहे परन्तु कुछ पहलुओं को छोड़कर उनके राजनीतिक व्यक्तित्व पर दाग नही लगा।
कल्याण सिंह के लखनऊ प्रवास में भाजपा के प्रदेश भर से आये कार्यकर्ताओं ने सुबह से देर रात तक लगातार मुलाकात की। कल्याण भी सबकी सुनने आैर आवश्यकतानुसार मदद करने के आश्वासन से पीछे नही हटे परन्तु उन्होंने अति उत्साही कार्यकर्ताओं को जमीनी हकीकत से भी रूब डिग्री कराया। इस बार कल्याण सिंह से मेरी मुलाकात लंबे अन्तराल के बाद हुई परन्तु उनमें पहले जैसा अपनापन ही झलका। खबरोें को लेकर कभी तल्खी के लम्हों का जिक्र तक नही आया बल्कि कुछ अच्छा करने का भाव रहा। भाजपा की भावी रणनीति से लेकर सुधार की संभावना आैर रणनीति में कमियों पर भी लंबी चर्चा रही। बहुत दिनों बाद कल्याण सिंह जैसे राजनेता को स्वस्थ एवं सक्रिय देखकर प्रफुल्लता भी हुई। उम्र की इस दहलीज पर भी देर रात तक कल्याण की सक्रियता शुभचिन्तकों को अच्छी लगी।
कल्याण सिंह से मिलने वाले भाजपा नेताओँ में ज्यादातर लोग टिकट के दावेदार है। अब भी भाजपा के ज्यादातर लोगों को लगता है कि कल्याण के आर्शिवाद के बिना उन्हें टिकट नही मिलेगा। कल्याण की लखनऊ में उपस्थिति के दौरान कार्यकताओं की भीड़ प्रदेश भाजपा नेताओं की तरफ कम ही गयी। कार्यकर्ताओं के माध्यम से प्रदेश की एक-एक विधानसभा क्षेत्र का जायजा लिया आैर वहां से भाजपा के साथ ही अन्य दलों के संभावित प्रत्याशियों की भी जानकारी की। विधानसभा के एक-एक क्षेत्र का जितना ज्ञान अब भी कल्याण सिंह को है, उतनी उस क्षेत्र के रहने वाले नेताओ को भी नही थी। यहां तक कि पिछले चुनाव में कौन कितने मतों से जिता आैर भाजपा प्रत्याशी की स्थिति क्या थी, इस ब्योरा कल्याण की याद्दाश्त में कम्पूटर की तरह अंकित थी। कल्याण ने कार्यकर्ताओ से पिछले चुनाव के अन्तर को कम करने आैर जीत की रणनीति पर भी चर्चा की।
चुनावी दौर में कल्याण ने भाजपा संगठन की भी चर्चा की। उन्होंने कार्यकर्ताओं से पूछा- प्रदेश भाजपा के पदाधिकारियो में से ऐसे कितने लोग है, जो अपना चुनाव जीतने का मद्दा रखते हो आैर कौन है जो अपने प्रभाव से दो सीटे जीता सकता है। इस पर सभी भाजपा कार्यकर्ता मौन रहे आैर सभी ने कहा कि कोई भी एक सीट जीतने की स्थिति में नही है। जिन पर टिकट वितरण का दायित्व है, उन्हे पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं की ही जानकारी नही है। ज्यादातर पदाधिकारी ठेकेदार, पूंजीपतियों तथा गणेण परिक्रमा करने वालों को ही तरजीह देते है। चर्चा के दौरान कई कार्यकर्ताओँ ने कल्याण सिंह को प्रदेश का नेतृत्व संभालने की भी मांग की परन्तु उन्होने दो टूक कहा- भाजपा नेतृत्व उनके नाम पर सहमत नही होगा, ऐसे में ऐसी चर्चा का कोई आैचित्य नही है। कल्याण ने कहा- भाजपा नेतृत्व मेरा क्या उपयोग करना चाहता है या नही, यह उस पर निर्भर है। फिलहाल कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल पद से संतुष्ट दिखने की बात अवश्य कर रहे थे परन्तु उत्तर प्रदेश में कुछ कर गुजरने की उनकी हसरत अब भी कायम है। कल्याण ने दयाशंकर प्रकरण से भाजपा-बसपा विवाद से पड़ने वाले प्रभाव पर कार्यकर्ताओं की राय ली। कल्याण से कई अन्य दलों के वरिष्ठ नेताओंं ने भी मुलाकात की।
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27th July, 2016