विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया)
लखनऊ:-
विधानसभा चुनाव से कुछ माह पूर्व भारतीय जनता पार्टी को साम्प्रदायिक आैर दंगाई पार्टी कहने वाले कई विधायकों को अब देश आैर जनता का कल्याण करने वाली सबसे अच्छी पार्टी लगने लगी है। भाजपा नेतृत्व से मंत्रमुग्ध यह नेता अब भौंरे की तरह कमल के फूल पर मड़राने को आतूर है। गुजरात के दंगाई आैर हत्यारे नरेन्द्र मोदी आैर अमित शाह में इन नेताओं को राम-लक्ष्मण की जोड़ी नजर आने लगी है तो राजनीति में बौने कद के नौसिखिये केशव प्रसाद मौर्या में युवा-कर्मठ नेतृत्व दिखायी दे रहा है।
राजनीति की बानगी देखिये-- कैसे बदलते आैर कौन-कौन से चोले पहनते है लोग। इसे कहते है राजनीति, कुछ लोग अवसरवादी भी कहते है परन्तु ऐसा करने वालों की सोच कुछ आैर है। ये कहते हैं कि वह तो अपने क्षेत्र की जनता की मांग पर उसी के कल्याण के लिए यह सब कुछ करने को बाध्य होते हैं। अब यह चोला बदलते हैं तो इनको अपनाने वाले भी कम घाघ नही है। यदि ऐसा नही होता तो वे कैसे उनको बिना किसी कारण गले लगाने को तैयार हो जाते जो अभी कुछ दिन पहले ही तलवार लिए गर्दन काटने को तैयार थे। इनकी भी कम दरियादिली नही जो दुश्मन को भी एक झटके में दोस्त बना लेते है।
विरोधियों के साथ आने पर भाजपा नेतृत्व इतराया सा हुआ है। उसका कुनबा बढ़ रहा है। कुनबे को साथ रखने के लिए संसाधन है या नही, भाजपा नेतृत्व को इसकी चिन्ता नही है। यह तो पार्टी ही भगवान भरोसे है। सबका पेट भगवान भरेगा। चाहे चमचमाती डाइनिंग टेबल पर डिनर करे या मंदिर के सामने मांग कर प्रसाद से अपनी क्षुधा मिटाये। भगवान आैर भाजपा तो हर तरह से खुश है। उसके पास तरह-तरह के पकवान से लेकर किस्म-किस्म के खाने वाले है। कोई चीज बेकार नही जाती है।
अब जिन नेताओं को पार्टी में शामिल कराकर भाजपा नेतृत्व इतरा रहा है, उनका राजनीतिक इतिहास भी देखिए। जलालपुर के सपा विधायक शेर बहादूर सिंह कांग्रेस, भाजपा, बसपा एवं सपा से लगातार दलबदल करने के माहिर है। अब श्री सिंह का स्वास्थ्य भी साथ नही दे रहा है। पांच साल तक क्षेत्र के भाजपा कार्यकर्ताओं को फर्जी मुकदमों में फंसाने वाले शेर बहादूर सिंह अब उन्ही के सहारे फिर से विधानसभा जाने का सपना संजोये है। पांच साल तक विधायक का अत्याचार सहने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं को उनका समर्थन करने के लिए कौन नेता समझायेगा। रूधौली के कांग्रेस विधायक संजय जायसवाल पर रेप का केस है आैर वह उस दिन भाजपा में शामिल हुए जब पार्टी महिलाओं के सम्मान का अभियान चला रही थी। इस विधायक से भाजपा के सांसद हरीश द्विवेदी सहित पूरी जिला इकाई से विरोध है। खड्डा (कुशीनगर) के विधायक विजय दुबे पहले भाजपा में थे परन्तु उन्हें गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ ने भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ अपनी अलग पार्टी हिन्दू महासभा से चुनाव लड़ा दिया। चुनाव हारने के बाद विजय दुबे पार्टी छोड़कर कांग्रेस में चले गये। कांग्रेस की ही नानपारा (बहराइच) की माधुरी वर्मा का भाजपा से कुछ लेना-देना नही है इन दोनों का भी क्षेत्र के भाजपा कार्यकर्ताओं से छत्तीस का आकड़ा है। मोहम्मदी खीरी के बाला प्रसाद अवस्थी पुराने भाजपाई है परन्तु टिकट न मिलने के बाद उन्होने पार्टी छोड़ दी थी। चिल्लूपार के राजेश त्रिपाठी सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में राजनीति में आये। इनके अलावा अभी पश्चिम के गुड्डू पंडित तथा मुकेश शर्मा सहित कई नेताओं के भाजपा का दामन थामने की चर्चा है। इनका राजनीतिक चरित्र ही दागदार है। भाजपा ने जातीय समीकरण को साधने तलाश में बसपा छोडने वाले नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या को भी शामिल कराया जो पांच वर्षो से भाजपा को पानी पी-पी कर गरियाते रहे आैर साम्प्रदायिक एवं दंगाई कहने से कभी चुके नही। विधान सभा का रिकार्ड इसका गवाह है। अब स्वामी प्रसाद अपनी सोच की गरीबों का कल्याण करने वाली धर्मनिरपेक्ष पार्टी में आ गये। बताया जाता है कि स्वामी को पार्टी में शामिल करने को लेकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या तैयार नही थे परन्तु उपर से फरमान आने के बाद उनकी एक न चली।
भाजपा को अपना कुनबा बढ़ाने की जिस प्रकार की जल्दबाजी है, उससे लगता है कि विधानसभा की 100 से ज्यादा सीटों पर दूसरे दलों से आये लोगों को ही टिकट दिया जाएगा। भाजपा ने अपना दल, ओम प्रकाश राजभर तथा संजय चौहान से पहले ही टिकट देने की हामी भर ली है। बसपा के बागी बाबू सिंह कुशवाहा को भी कुछ सीटे दिये जाने की चर्चाएँ हैं। अभी दो दर्जन से अधिक विधायक भाजपा में आने की टकटकी लगाए हुए है। ऐसे हालात में भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं का क्या होगा। मजबूत संगठन आैर कार्यकर्ताओं को सम्मान देने की बात कहने वाली पार्टी यदि बाहरियों के सहारे ही सरकार बनाने का मंसूबा पाल रही है तो उनके कार्यकर्ता चुनाव के समय मन मार कर बैठ जाय तो पार्टी का हश्र क्या होगा, यह नेतृत्व के लिए सोचने का विषय है। भाजपा नेतृत्व को सोचना चाहिए कि दूसरे के हरे बाग देख कर इतराने से बेहतर है कि अपने बाग को हरा-भरा किया जाय। बाहरी नेताओं को पार्टी में शामिल करने से पहले नेतृत्व ने जिला इकाइयों की भी सहमति नही ली जिससे स्थानीय स्तर पर आक्रोश बढ़ रहा है। विधानसभा चुनाव से पहले यह भाजपा नेतृत्व के लिए चेतावनी होगी। इनमें से किसी भी नेता का यह कद नही है कि वह भाजपा का भला कर सके। यह सभी बदलती परिस्थितियों को देखते हुए अपना राजनीतिक हिस साधना चाहते है।
16th August, 2016