बिना चुनाव लड़े मुख्यमंत्री
हारने का डर सता रहा है घोषित मुख्यमंत्रियों को, भाजपा का चेहरा नही
विजय शंकर पंकज ( यूरिड मीडिया)
लखनऊ
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अजीब संयोग है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी "" गुड़ा - गुड़िया "" का खेल हो गयी है। अभी तक प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के घोषित तीन प्रत्याशियों में कोई भी विधानसभा का चुनाव लड़ने को तैयार नही है आैर इस पर ठसक ऐसी कि इनके नाम का जाप करके प्रदेश से 202 से 250 विधायक चुनाव जीतकर आ जाएगे आैर ये मुख्यमंत्री बनकर राज्य की जनता को सबसे बेहतर शासन देगे। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव विधान परिषद के सदस्य है आैर विधानसभा का चुनाव न लड़कर पार्टी प्रत्याशियोें का प्रचार करेंगे। बसपा मुखिया राज्यसभा की सदस्य है आैर वह जनता के सीधे चुनाव में जाना ही अपनी तौहिन समझती है। कांग्रेस की शीला दीक्षित बुजुर्ग होने के नाते चुनावी धूल को जब्त नही कर पाती आैर उनका स्वास्थ्य खराब होने का खतरा है। लगता है कि यही वजह है कि भाजपा ने अभी तक मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी की घोषणा नही कि वह भी कही किसी लटके-झटके में न पड़ जाय। अब ऐसे में यूपी के चुनावी महासमर का कोई सेनापति ही मैदान में नही है जो सेना की कमान संभाल सके।
चुनाव की बयार जैसे-जैसे तेज होती जा रही है, उत्तर प्रदेश में नये-नये शिगुफे आये दिन आ रहे है। प्रदेश में चार जिन दलों में संघर्ष चल रहा है उसमें भाजपा को छोड़ तीन ने मुख्यमंत्री के दावेदारों की घोषणा कर दी है। समाजवादी पार्टी एवं बहुजन समाज पार्टी के बिना कुछ कहे ही मुख्यमंत्री पद के चेहरे तय है आैर उसमें फिलहाल किसी तरह के बदलाव की गुंजाइश नही है। इसके विपरीत कांग्रेस ने भी इन्ही के बीच अपनी लगंडी लगाते हुए दिल्ली से लाकर शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री के लिए प्रोजेक्ट कर दिया। इन तीनों के चेहरों में भाजपा नेतृत्व अभी तक पशोपेश में है कि मुख्यमंत्री घोषित करे या नही। फिलहाल भाजपा प्रदेश के जातीय समीकरण सभी वर्गो को साथ लेने की रणनीति पर काम कर रही है। ऐसे में अगड़े एवं पिछड़े में से कोई चेहरा मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित होने पर दूसरे वर्ग की नाराजगी के आसार है।
भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री घोषित न किये जाने पर सपा, बसपा एवं कांग्रेस नेता लगातार तंज कस रहे है कि पार्टी बगावत से बचने के लिए जुगत भीड़ा रही है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तथा बसपा प्रमुख मायावती कई बार कह चुके है कि भाजपा एक मुख्यमंत्री का चेहरा नही घोषित कर रही है जबकि सपा-बसपा के पास पहले से ही साफ चेहरे है। अब मुख्यमंत्री पद के इन दावेदारों का हश्र देखिये। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को बहुमत मिलने पर अखिलेश लोकसभा में सांसद थे परन्तु मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद उन्होंने किसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की हिम्मत नही जुटायी आैर विधानसभा क्षेत्र से विधान परिषद के लिए चुने गये। विधान परिषद के सदस्य के रूप में अखिलेश यादव का कार्यकाल 5 मई 2018 तक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तर्ज पर अखिलेश यादव भी राज्य की सपा सरकार के विकास के नाम पर दोबारा सरकार बनाने की घोषणा कर रहे है परन्तु वह अब भी विधानसभा से चुनाव लड़ने की हिम्मत नही जुटा पा रहे है।
बसपा प्रमुख मायावती तो अब वर्षो से चुनावी मैदान में जाने की हिम्मत ही नही जुटा पा रही है। उनका तर्क है कि उन्हें अकेले दम पर देश एवं राज्यों में दौरा करना पड़ता है, इसलिए एक लोकसभा एवं विधानसभा से चुनाव लड़ना उनकी पोजीशन के खिलाफ है। मायावती जब प्रदेश में सरकार बनानी होती है तो विधान परिषद में नामित हो जाती है आैर जब बसपा चुनाव हार जाती है तो लखनऊ छोड़कर दिल्ली चली जाती है आैर राज्यसभा का सदस्य बन जाती है। अब इस कड़ी में कांग्रेस का हाल देखिये। कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद की दावेदार शीला दीक्षित आैर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजबब्बर दोनों ही उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव नही लड़ेगे। ऐसे में चुनाव के महासमर के दोनों कांग्रेसी नायक सारथी आैर सवार युद्ध के मैदान में जाने की ही हिम्मत नही जुटा पा रहे है आैर विजय हासिल कर सरकार बनाने के दावे कर रहे है। फिलहाल राजबब्बर उत्तराखंड से राज्यसभा के सांसद है तो शीला दीक्षित का परिवार दशकों से उत्तर प्रदेश की राजनीति से ही दूर है। दिल्ली के विकासशील महिला के रूप में प्रदर्शित कर कांग्रेस जिन शीला दीक्षित को यूपी लायी है, वह खुद ही आप के केजरीवाल से चुनाव हार गयी। इस मामले में केजरीवाल की हिम्मत की दाद ही देनी होगी कि दिल्ली में सरकार बनाने का दावा करने के बाद उन्होंने अपने लिए कोई कम्फर्ट जोन ढूढने की कोशिश नही की आैर साफ कर दिया कि दिल्ली की मुख्यमंत्री जहां से चुनाव लड़ेगी, वह वही से चुनाव लड़ेगे। यही नही लोकसभा के 2014 के भी चुनाव में केजरीवाल ने भाजपा के प्रधानमंत्री के घोषित प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ने की हिम्मत दिखायी आैर प्रदेश की प्रमुख पार्टियों के दिग्गजों से ज्यादा मत पाकर दूसरे नंबर पर रहे। होना तो यह चाहिए कि मुख्यमंत्री पद के दावेदारों को चुनाव मैदान मे जाकर जनता को अपनी बात समझानी चाहिए। जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार एक विधानसभा का चुनाव जीतने की हिम्मत नही जुटाते वे बहुमत की सरकार बनाने के लिए 202 विधायक कहां से जिताएगे।
10th September, 2016