विजय शंकर पंकज ( यूरिड मीडिया)
लखनऊ
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वैसे तो कहावत ही है कि दो समाजवादी शान्त नही रह सकते आैर चार समाजवादी एक साथ रहने पर मारपीट से नही बच सकते। लेकिन उत्तर प्रदेश के समाजवाद की तो बात ही कुछ आैर है। एक समाजवादी, दूसरा एक परिवार आैर तीसरा यदुबंश। साफ है करैला, नीम चढ़ा आैर उसमें असमिया मिर्च का झौंका। अब इस तिताई को आसानी से पचाया नही जा सकता है। यह बात अब केवल मुलायम परिवार के कलह की नही रही परन्तु यह घटनाक्रम प्रदेश की राजनीति को नया मोड़ ही नही देगा, विधान सभा के चुनावी बिसात पर नया समीकरण पैदा होगा। एक परिवार की कलह आैर उसके कुछ सदस्यों की वजह से प्रदेश की जनता को बड़ा भुगतान करना पड़ सकता है।
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह के इस निर्णय को सामयिक रूप से उचित नही कहा जा सकता है। उस पर जिस प्रकार चुपचाप आैर बिना बताये इस निर्णय की घोषणा की गयी, उसने स्थिति को आैर ही बदतर कर दिया। मुलायम सिंह देश के परिपक्व ही नही अनुभवी आैर मेहनती नेताओं में माने जाते है। परिवार के मुखिया के रूप में भी वह प्रत्येक सदस्य की कार्यविधि एवं विचारों से परिचित है परन्तु उनके इन निर्णयों में परिपक्वता आैर अनुभव की झलक नही मिलती है बल्कि किसी के दबाव या क्षणिक आवेश का निर्णय प्रतीत होता है। मुलायम सिंह ने जब अखिलेश को मुख्यमंत्री घोषित किया था, तो उसे बड़ा त्याग आैर मुलायम की दूरदर्शिता के रूप में देखा गया था। यह भी बात हुई थी कि एक कठिन निर्णय कर मुलायम ने पारिवारिक एवं राजनीतिक विरासत का समय रहते साफ निर्णय कर दिया ताकि बाद में विवाद न हो। उस समय भी शिवपाल की योग्यता एवं परिवार में उनके स्टेट्स में कोई कमी नही की गयी थी। लेकिन अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही दिनों बाद मुलायम सिंह यादव जिस प्रकार सार्वजनिक मंचों से जिस प्रकार व्यक्तिगत एवं सरकार की खुलेआम आलोचना करने लगे, उसे कई बार प्रतिकूल परिस्थितियां पैदा हुई। अखिलेश का यह सब्र ही था कि उसने पिता की सलाह आैर डांट कहकर मामले को टालता रहा। मुलायम का यहां पर यह भी समझना चाहिए कि अखिलेश उनका पुत्र होने के साथ ही उत्तर प्रदेश जैसे राज्य का मुखिया आैर मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद का ओहदेदार है।
अखिलेश को मार्च 2012 में मुख्यमंत्री बनाने के बाद भी मुलायम सिंह ने उन्हें प्रदेश सपा का अध्यक्ष बनाये रखा। उसी समय होना चाहिए था कि सरकार की बागडोर अखिलेश को देने के साथ ही संगठन की जिम्मेदारी शिवपाल को दे दी जाती तो इस प्रकार का विवाद नही होता। अब जबकि साढ़े चार वर्ष के बाद जब विधानसभा का चुनाव सामने है, अचानक अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाना वाजिब नही कहा जा सकता। कारण साफ है कि मुख्यमंत्री पद का चेहरा यदि अखिलेश रहते है तो प्रत्याशी चयन का भी उन्हे अधिकार रहना चाहिए। परन्तु ऐसा नही है, अब शिवपाल के प्रदेश सपा का अध्यक्ष बनने पर अखिलेश के पर कतरने की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है। शिवपाल आैर अखिलेश के बीच यह खाई पिछले दिनों कौमी एकता के विलय से शुरु डिग्री हुई। पिछले चुनाव से पहले से ही अखिलेश का तेवर अपराधियों के खिलाफ रहा। अखिलेश ने डी पी यादव से लेकर अतीक या मुख्तार को कभी भी सरकार के पास फटकने नही दिया। अखिलेश की इस युवा आैर स्वच्छ छवि का सपा को पिछले चुनाव में लाभ भी मिला। समाजवादी कुनबे को समझना चाहिए कि प्रदेश के यादव आैर मुसलमान सपा के साथ है तो डी पी यादव, मुख्तार या अतीक जैसे बाहुबली अपराधियों के बुते नही। मुलायम मुस्लिम विरादरी के मसीहा आैर यादवों के मुखिया कहे जाते है तो पुत्र के रूप में अखिलेश ने भी इस विरादरी पर अपनी छवि आैर बढ़ायी है। शिवपाल की छवि हमेशा ही परिवार आैर पार्टी में एक समन्वयक आैर सभी को मिला-जुला कर चलने की रही है परन्तु अचानक सत्ता को लेकर शिवपाल की बढ़ी दिलचस्पी ने पूरे राजनीतिक घटनाक्रम को बदल कर रख दिया है। साफ है कि मुलायम परिवार की तीसरी पीढ़ी अब राजनीति में प्रवेश करने को है, ऐसे मेेें सत्ता की हिस्सेदारी को लेकर तनाव बढ़ रहा है।
पिछले कुछ दिनों से यह देखा जा रहा था कि अधिकारियो की तैनाती से लेकर सांगठनिक कार्यक्रमों में अखिलेश के उपर दबाव बढ़ता जा रहा था। अखिलेश अपनी पुरानी स्वच्छा एवं अपराध विरोधी छवि को लेकर विधानसभा चुनाव में जाने की तैयारी कर रहे थे तो कुछ लोग जातीय एवं धार्मिक गठजोड़ के चक्कर में अराजक तत्वों को भी शह देने को आतुर थे। विरोध का यह पहला कारण माना जा रहा है। मुख्यसचिव के पद पर दीपक सिंघल की नियुक्ति से लेकर कुछ मंत्रियों की बरखास्तगी ने राजनीतिक सरगरमी बढ़ायी तो अखिलेश का प्रदेश सपा अध्यक्ष पद से हटाकर शिवपाल को बनाया जाना आैर कुछ ही घंटों में मुख्यमंत्री द्वारा उनके विभाग हटाये जाने को लेकर बड़ा घटनाक्रम माना जा रहा है। साफ है कि परिवार का यह विवाद अब सरकार में हिस्सेदारी तक बढ़ गया है। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल एवं अखिलेश को दिल्ली तलब किया परन्तु अखिलेश नही गया। अखिलेश ने माना कि सभी नेता जी की बात मानते है परन्तु मुख्यमंत्री के रूप मेें मैने कुछ निर्णय लिया है।
14th September, 2016