विजय शंकर पंकज ( यूरिड मीडिया)
लखनऊ।
समाजवादी परिवार में सब कुछ ठीक है, विवाद सत्ता संघर्ष है। ऐसा समाजवादी कह रहे है। इसमें एक तुर्रा आज जोड़ा समाजवादी प्रोफेसर राम गोपाल ने। राम गोपाल ने कहा कि नेता जी मुलायम सिंह यादव सरल है जिसका कुछ लोग लाभ उठा रहे है। सवाल उठता है कि देश की राजनीति में फर्श से अर्श तक पहुंचने वाले, तमाम उठापटक के माहिर आैर चर्चित चरखा दांव से विरोधियों को धूल चटाने वाले मुलायम यदि इतने ही सरल है तो समाजवादियों में वह चालबाज कौन है जो इस पूरे घटनाक्रम को अपने पक्ष में करने की चाल चल रहा है। गुरूवार को संवाददाताओं से बात करते हुए राम गोपाल के चेहरे की मुस्कान आैर इशारों- इशारों में कहे गये बयान बहुत कुछ कह रहे थे।
विवादोें के निपटारे के लिए सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव गुरूवार दोपहर लखनऊ आ गये। उसके पहले राम गोपाल ने लखनऊ में अखिलेश से बंद कमरे मे बात की। इसके बाद राम गोपाल ने मीडिया से बात अवश्य की परन्तु उनके तेवर से लग रहा था कि बात कुछ बनी नही। राम गोपाल ने केवल इतना भरोसा दिया कि नेता जी से बात के बाद सारी बात तय हो जाएगी। सितम्बर 13 को देर रात शिवपाल का विभाग बदलकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने कड़े तेवर आैर सत्ता की ताकत का एहसास करा दिया। इस घटना के बाद समाजवादी परिवार के सदस्यों के तमाम बयान आने के बाद भी अखिलेश ने सपा मुखिया आैर अपने पिता मुलायाम सिंह यादव तथा चाचा अखिलेश यादव से 50 घंटे के बाद भी बात तक नही की। विभाग बदलने से आहत शिवपाल मंत्रिमंडल से इस्तीफे की पेशकश कर चुके है परन्तु मुलायम ने उन्हें समझाकर रोक रखा है। मुलायम सिंह यादव ने 14 सितम्बर को ही शिवपाल आैर अखिलेश को दिल्ली बुलाया था परन्तु अखिलेश नही गये आैर नही किसी से बात की। अखिलेश के गुस्से को शान्त करने के लिए पहले राम गोपाल को लखनऊ भेजा गया परन्तु बात कुछ बनी नही।
सपा में चार दिनों से चल रहा सत्ता संघर्ष गुरूवार को भी अपने पूरे फार्म में था। परिवार के दो वरिष्ठों के बयान एक दूसरे के विपरीत रहे। राम गोपाल ने नाम लिए बगैर आजम पर हमला बोला आैर कहा कि एक आदमी ने यह सारा विवाद खड़ा किया है। नेता जी इस आदमी के बहकावे में आ गये। राम गोपाल ने कहा कि सपा के संविधान में प्रभारी का कोइ पद नही है परन्तु इसी आदमी ने पहले शिवपाल को प्रभारी बनवाया आैर अब प्रदेश अध्यक्ष बनवा दिया। उन्होंने अखिलेश का पक्ष लेते हुए कहा कि यदि प्रदेश अध्यक्ष पद से उनसे इस्तीफा मांगा जाता तो वह दे देते परन्तु बिना बात किये यह निर्णय करना उचित नही था। इसके जवाब में शिवपाल ने कहा कि पार्टी में कोई भी बाहरी नही है। सब निर्णय नेता जी की ही मर्जी से होते है। ऐसा नही होता तो मेरे प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने के पत्र पर राम गोपाल के ही हस्ताक्षर है। शिवपाल ने यह भी संकेत दिया कि सरकार में वह बहुत कुछ कर चुके है आैर बहुत विभागों के मंत्री रहे परन्तु अब उन्हें संगठन को मजबूर कर पार्टी को विधान सभा का चुनाव जीताना है। साफ है कि विभाग छीने जाने से शिवपाल आहत है आैर अब वह सरकार का हिस्सा न बने रहने को संगठन की बागडोर संभालना चाहता है ताकि विधान सभा चुनाव में प्रत्याशी चयन में उनकी भूमिका बढ़ जाय। शिवपाल के बयान आैर उनके घर के बाहर समर्थकों की नारेबाजी से उनके तीखे तेवर का एहसास हो जाता है। इसके पूर्व भी कौमी एकता दल के विलय पर शिवपाल मात खा चुके है। अखिलेश ने अपराधी छवि वालों को पार्टी में लेने से साफ मना कर दिया था। अब इसके बाद शिवपाल मंत्री मंडल में अधिकार कम किये जाने अथवा प्रदेश अध्यक्ष के पद से पीछे हटने को तैयार नही है।
असल में शिवपाल आैर अखिलेश में झगड़े की जड़ भी यही है। सपा की चुनावी रणनीति में अभी तक अखिलेश के चेहरे को ही आगे कर विधानसभा का चुनाव लड़ा जाना है। तमाम चुनावी सर्वेक्षणों में भी अखिलेश की लोकप्रियता सबसे आगे है। ऐसे में यदि प्रत्याशियों के चयन में अखिलेश की नही चली तो सपा में ही तमाम विरोधी खड़े हो जाएगे। समाजवादी परिवार में अखिलेश की चिन्ता का यही सबब है। पहले पिता मुलायम का भरोसा था परन्तु अब उन्हें महसूस होने लगा है कि चाचा शिवपाल तो मोहरे है, उनकी आड़ में कोई अन्य पिता को पुत्र के खिलाफ भड़का रहा है। मुलायम को भड़काने वाला यह कोई बाहरी व्यक्ति अमर सिंह नही हो सकता। मुलायम इतने सरल भी नही है कि अमर सिंह की दलाली राजनीति से वाकिफ नही है बल्कि उसके भुगतभोगी भी रह चुके है। राम गोपाल कुछ भी कहे। अमर से राम गोपाल का छत्तीस का आकड़ा भी मुलायम की पिछड़ी सरकार से ही है। यह मामला तमाम बड़े ठेकों एवं जमीनों को लेकर है।
अखिलेश की चिन्ता भी यही है। अखिलेश को लग रहा है कि परिवार में वह अलग-थलग पड़ते जा रहे है आैर अन्य परिवारी जन उनके विरोधी होकर सत्ता से बेदखल करना चाहते है। पहले पिता का समर्थन आैर भरोसा होने से सभी चुप रहते थे परन्तु अब पिता का भरोसा भी कम होता जा रहा है। मुलायम का आये दिन मंचों से अखिलेश के खिलाफ बयान देना आैर बिना बात किये ही जिस प्रकार प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया, उसे सामान्य घटना नही कहा जा सकता है। मुलायम जैसे अनुभवी नेता इस प्रकार के निर्णय अचानक कैसे ले सकते है। साफ है कि अखिलेश के पर कतरने के लिए मुलायम को इतना कठोर कदम क्यों उठाना पड़ा आैर किसके इशारे पर। चर्चा में आये अमर सिंह कुछ अधिकारियों की तैनाती आैर पूंजीपतियों को काम दिलाने के अलावा इतना बड़ा राजनैतिक फैसला कराने की हैसियत में नही है आैर नही मुलायम इतने सरल है कि उनके कहने पर अचानक यह सब कुछ कर देगे। तीन दिनों से पिता-पुत्र में संवाद न होना भी पूरे घटनाक्रम की गंभीरता का एहसास कराता है।
15th September, 2016