मुलायम की राजनीतिक विरासत की जंग
अभी तो यह ट्रेलर है- फिल्म बाकी है
विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया)
लखनऊ।
प्रदेश के समाजवादी यादव परिवार की पिछले पांच दिनों से चल रही कुर्सी की जंग की पृष्ठिभूमि काफी पहले ही लिख दी गयी थी। तीन दिनों के घटनाक्रमों अौर समर्थकोें के प्रदर्शन की तैयारियों से साफ हो गया है कि यह सब कुछ अचानक नही हुआ। शिवपाल आैर अखिलेश ( चाचा- भतीजा) की यह जंग अब खुलकर परिवार के मुखिया मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत को अपने कब्जे में करने की है। शिवपाल को यह डर सता रहा है कि अखिलेश को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर मुलायम सिंह यादव ने सत्ता की चाभी तो अपने बेटे को सौप दी परन्तु संगठन की बागडोर उनके हाथ में रहे तो राजनीति की यादवी विरासत को वह अपने पाले में रख सकते है। शिवपाल को इस समर्थन के पीछे पर्दे से यादव परिवार के एक ऐसे सदस्य का भी हाथ है जो वृद्धावस्था में मुलायम की कमान अपने हाथ में दबाये हुए है।
यदुबंश की इस पारिवारिक लड़ाई में दिखावटी समाजवाद नंगा दिखने लगा है। भले ही दोनों पक्षों ने दो दिनों से किसी भी तरह के टकराव की बात से इनकार करते हुए नेता जी मुलायम सिंह यादव का आदेश मानने की बाते कही परन्तु सड़कों पर आयी लड़ाई ने यादव परिवार के बिखराव को साफ कर दिया है। इस झगड़े के पीछे पहले राम गोपल यादव आैर बाद में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बाहरी व्यक्ति कहकर अमर सिंह पर सीधा निशाना साधा परन्तु दूसरी तरफ शिवपाल ने अनुभव हीन बताते हुए उतनी ही मजबूती से अमर सिंह का समर्थन किया। इस सारे विरोध आैर समर्थन के बीच यह तो साफ हो गया है कि अमर सिंह को केवल बलि का बकरा बनाया जा रहा है आैर इसके पीछे यादव परिवार के किसी अन्य सशक्त व्यक्ति का हाथ है। अमर सिंह की स्थिति राजनीति में सत्ता के दलाल की ही है। अमर सिंह कुछ अधिकारियों के तबादले कराने आैर कुछ पूंजीपतियों का हित साधन के अलावा अन्य राजनीतिक बदलाव कराने की नही है। अमर सिंह राजनीति के चतुर कुटनीतिज्ञ होने के नाते यादव परिवार के कुछ पीड़ित आैर उपेक्षित लोगों की महत्वाकांछाओं को उभारने का ही काम कर सकते है आैर यह विवाद उसी की देन है।
शिवपाल यादव से महत्वपूर्ण विभाग छिने जाने के बाद उनके समर्थकों ने गुरूवार की रात एवं शुक्रवार की सुबह जिस प्रकार नारेबाजी एवं प्रदर्शन किया, उससे साफ हो गया कि यह बहुत पहले से तैयारी की गयी थी। शिवपाल के आवास के सामने उनके पक्ष में प्रदर्शन करने वाले उनके फोटों की शर्ट पहने हुए थे। साफ है कि इतने लोगों को अचानक शर्ट किसने पहुंचायी। साफ था कि शिवपाल को पहले से ही अंदेशा था कि उनके साथ कुछ विपरीत राजनीतिक निर्णय हो। शिवपाल ने पहले ही शक्ति प्रदर्शन करने का निर्णय ले लिया था। शिवपाल के शक्ति प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनसे ज्यादा ताकत दिखा दी। शनिवार की सुबह से ही जिस प्रकार प्रदेश भर से अखिलेश समर्थक कालिदास मार्ग आैर विक्रमादित्य मार्ग की सड़कों पर उमड़े उसने समाजवादी मुखिया मुलायम सिंह यादव के अनुशासन आैर उनके निर्णय की स्वीकार्यता की धज्जियां उड़ा दी। हालात यहां तक बन गये कि दोनों पक्ष के समर्थकों को नियन्त्रित करने के लिए पुलिस आैर पीएसी बुलानी पड़ी। इसके बाद भी मुलायम सिंह यादव को सपा कार्यालय से अपने आवास पहुंचने के लिए अखिलेश समर्थकों से बचकर पीछे के दरवाजे से निकलना पड़ा। मुलायम के आवास पर नारेबाजी करते अखिलेश समर्थकों को हटाने के लिए सपा मुखिया को अपने बेटे से अनुरोध करना पड़ा।
इस सारे नाटकबाजी के बाद अन्त में अखिलेश यादव ने सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद पर शिवपाल की तैनाती का समर्थन कर दिया। लेकिन यह साफ है कि अखिलेश समर्थकों ने जिस प्रकार आक्रामक शक्ति प्रदर्शन करने के बाद शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष स्वीकार किया, उससे मुलायम की राजनीतिक विरासत को काबिज करने का विराम ही कहा जा सकता है। इसके पूर्व भी पिता के कहने पर अखिलेश ने शिवपाल से छिने विभाग वापस करने आैर गायत्री प्रजापति को दोबारा मंत्री बनाने पर हामी भर दी थी। इतनी तनातनी से मुलायम परिवार की एकता छिन्न-भिन्न हो गयी है।
अखिलेश को खली मां की कमी-- जीवन के इस मोड़ पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपनी मां की कमी सर्वाधिक खल रही होगी। वैसे तो अखिलेश की मां ने अपने पति मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक जीवन में कभी भी किसी तरह की दखलन्दाजी नही की आैर स्वास्थ्य कारणों से उनका पूरा जीवन एकान्त में ही बिता। शुक्रवार को शिवपाल यादव ने यह कहकर की जब अखिलेश 4 वर्ष के थे तबसे मैने आैर मेरी पत्नी ने उनका पालन-पोषण किया है। ऐसा कहकर शिवपाल ने एक बार फिर से अखिलेश के बचपन से मां के प्यार के दुलार की दुखती रग दबा दी आैर एक तरह ने अनाथ होने का एहसास करा दिया। अखिलेश की मां यदि ऐसे समय स्वस्थ होती तो मुलायम सिंह यादव को अपने ज्येष्ठ पुत्र के खिलाफ ऐसा कदम उठाने की शायद हिम्मत नही होती। यह भी सही है कि जीवन की इस कठिनाई के समय में अखिलेश को पिता के विरोध के साथ ही विमाता का जो समर्थन मिलता चाहिए था, वह नही मिला। चाचा अपने भतीजे के पालन-पोषण का किराया वसूलने में लगे है। कुछ ऐसा ही समर्थन अमर सिंह ने भी कहा था। अमर ने कहा कि मैने अखिलेश को आस्ट्रेलिया पढ़ने भिजवाया आैर उनकी शादी करायी। अमर सिंह के इस कथन से दुखी अखिलेश ने कहा कि शायद अब मैं कभी उन्हें अंकल न कह सकू। ऐसे में अखिलेश का अब शिवपाल के साथ क्या व्यवहार होगा, यह समय बताएगा।
17th September, 2016