विजय शंकर पंकज ( यूरिड मीडिया)
लखनऊ।
कभी कछुआ ने खरगोश से दौड़ जीत ली थी। कहावत मनुष्य के जीवन का एक बड़ा सबक है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की आहट आने के बाद जब कि अपने को शक्तिशाली मानने वाले दल विवादों आैर उलझनों में फंसे है, उस समय कांग्रेस के युवराज का उड़नखटोला गांवांे के बच्चों से लेकर बुढ़ों तक को अपनी तरफ खींचने लगा है। गुटों में बंटे आैर आपस में ही टांग खिंचाई करने वाले कांग्रेसी अब राहुल की छतरी के नीचे अनुशासित आैर सभ्य नजर आने लगे है। कांग्रेसी खाट लूटने के मुहावरे बोलकर विपक्षी जो भी खीस निपोरी करे परन्तु दशकों से प्रदेश की राजनीति में निष्प्राण हुई कांग्रेस में राहुल की खाट पंचायत ने नयी जिवन्तता पैदा कर दी है।
प्रदेश में सत्तारूढ़ दल समाजवादी पार्टी की परिवारवादी नीति पिछले कुछ दिनों से तार-तार हुई जा रही है। इस यदुबंशी महाभारत में मामा शकुनि के साथ ही द्रौपदी के खुले केश भी संग्राम से दूर होकर भी निर्णायक भूमिका निभा रहे है। धृतराष्ट्र मोह की कहावत ऐसे ही भारतीय जनमानस पर सदियों से नही छायी हुई है। यह जीवन्त गाथा आये दिन भारतीय समाज में दोहरायी जा रही है। वैसे सपा के यदुबंश का युद्ध विराम की बाते भी अब जन मानस के गले नही उतर रही है। भीष्म पितामह के शर-शैय्या पर जाने आैर गु डिग्री द्रोणाचार्य के मारे जाने पर दुर्योधन को यह एहसास हो गया था कि वह युद्ध हार गया है परन्तु मामा शकुनि की कुटिल चाल आैर मित्र कर्ण के रण कौशल की आस पर वह अन्त तक भिड़ा रहा आैर इसमें सहायक हुआ उसका अहम। कुछ ऐसा ही सपा के गृह युद्ध में चल रहा है। यदुबंश का हर सदस्य समझ चुका है कि अब प्रदेश की सत्ता उसके हाथ से जा रही है परन्तु अन्तिम दांव में भी वह दूसरे से छिनने की बजाय आपसी बंटवारे में ही हाय-तौबा मचाये हुए है। समाजवादी यदुबंश का मित्र तो मुस्लिम समाज है परन्तु सरकार जाते देख वह भी नया पैतरा बदलने को लेकर असमंजस में है। ऐसे में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सबको साथ लेकर चलने की यात्रा मुस्लिमों को अपनी तरफ खींच सकती है।
सपा के खिलाफ कानून-व्यवस्था खराब होने का मामला उठाकर बहुजन समाज पार्टी 2007 में बहुमत की सरकार बना चुकी है। सवर्जन हिताय-सर्वजन सुखाय का नारा देने के बाद भी बसपा सरकार का दलित वर्ग को छोड़कर अन्य वर्गो सवर्ण तथा पिछड़ों में विश्वास कायम न रखना, राजनीतिक रूप से घातक साबित हो रहा है। इसके अलावा पैसे की उगाही का आरोप लगाकर जिस तेजी से बसपा विधायकों एवं पार्टी नेताओँ में दल छोड़ने की होड़ लगी है, उससे भी पार्टी का जनविश्वास कम हुआ है। इस उठा पटक के बाद भी दलित विरादरी बसपा के साथ अब भी पूरी तन्मयता से जुड़ी है। बसपा प्रमुख मायावती को इस बात का एहसास है परन्तु उन्हें यह भी पता है कि केवल दलित वोट के भरोसे चुनाव जीता नही जा सकता है। यही वजह है कि बसपा ने सर्वाधिक मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतार कर सपा से रूठने वालों को अपने पाले में लाने का प्रयास किया है।
प्रदेश में सरकार बनाने का सबसे बड़ा दावा करने वाले दल भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व को अपने पुराने एवं निष्ठावान कार्यकर्ताओं के चुनाव जीतने पर ही विश्वास नही रह गया है। भाजपा में बहुत पहले से यह परिपार्टी चली आ रही है कि जैसे ही कुछ माहौल पार्टी के पक्ष में बनता है संगठन में बैठे नेता कार्यकर्ताओं को उपेक्षित करने लगते है आैर टिकट पाने में चरण चापन करने वाले धनपशुओं की बाढ़ सी आ जाती है। भाजपा नेताओं को यह गुमान होता है कि वह जिसे टिकट देगे, वही विधायक आैर सांसद बनेगा। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश भाजपा में भी बाहरी तत्वों को शामिल करने की होड़ सी मची हुई है। पिछले कुछ महिनों से ऐसी भीड़ भाजपा में इक्कठा होने लगी है जिसकी अपनी पार्टी से लेकर क्षेत्र तक में विरोध शु डिग्री हो गया है। यही नही कुछ दिनों पहले तक भाजपा को विभिन्न संबोधनों से गरियाने वाले लोग आजकल पार्टी नेताओं के चहेते हो गये है आैर उनका विरोध करने वाले भाजपा कार्यकर्ता बाहर खदेड़ दिये जा रहे है। जोड़-तोड़ कर कुनबा बढ़ाने की फिक्र में जुटे भाजपा नेताओं को यह एहसास नही है कि परिवार बढ़ने पर रहने आैर खाने की समस्या होगी तो उसका निदान कैसे होगा। पिछले ढ़ाई वर्ष से ज्यादा केन्द्र सरकार के बनने के बाद भी भाजपा कार्यकर्ताओं को वह सम्मान नही दिया गया जिसका वह हकदार है। असलितय यह है कि अब भी कांग्रेसी तथा उसके सहयोगी दल सरकारी पदों का लाभ उठा रहे है। भाजपा नेतृत्व का यह फैसला प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव तक पार्टी के लिए सरदर्द बन सकता है। सारे गठजोड़ के बाद भी भाजपा के पक्ष में प्रदेश का मुसलमान, दलित तथा पिछड़े वर्ग का यादव साथ नही आने वाला है। ऐसे में इतने बड़े समुदाय से विलग होकर भाजपा का सरकार बनाने का मंसूबा पस्त हो सकता है। कांग्रेस पुरानी परिपाटी के आधार पर समाज के सभी वर्गो को आकर्षित करने के नये तरीके को अपना रही है। कांग्रेस के पालिटिक्ल मैनेजर प्रशान्त किशोर (पी.के.) की रणनीति काम आ रही है। पूरबी यूपी से राहुल गांधी की खाट पंचायत का पहले लोगों ने मजाक उड़ाया। खाटे लूटी भी गयी परन्तु यह सब राजनीतिक स्टन्ट का ही हिस्सा रहा। राजनीतिक प्रचार का अब यह नया तरीका है। निगेटिव पब्लिसिटी कभी-कभी ज्यादा कारगर होती है। पिछले 27 वर्षो से प्रदेश की राजनीति पर हाशिये पर चली गयी कांग्रेस अब चुनावी दौर में दिखने लगी है। हताश-निराश कांग्रेसी नेता एसी कमरों आैर एसी गाड़ियो से ही राजनीति करने के आदी हो गये परन्तु जब उनके युवराज उमस भरी गरमी में खाट पर बैठने आैर खुली गाड़ी में चलने लगे तो उनका भी बाहर आना मजबूरी हो गयी। दशकों तक राज्य से केन्द्र में ब्राह्मण, मुस्लिम, दलित कम्बिनेशन पर सरकार बनाने वाली कांग्रेस अब सभी के लिए अपने दरवाजे खोल रही है। कांग्रेस अब जातिवादी राजनीति की बात न कहकर भी समीकरण बनाने में जुटे है। सोनिया-राहुल की कांग्रेस विरासत की ही जाति है परन्तु उन्होंने पार्टी के जातिवादी चेहरों को आगे किया है। राहुल का यह प्रयास तीनों दलों भाजपा, सपा एवं बसपा में सेंध लगाने में कितना सफल होगा तो यह समय बताएगा परन्तु यह साफ है कि कांग्रेस ने अपनी मौजुदगी दिखा दी है।
23rd September, 2016