घर का बंटवारा, अखिलेश की लोकप्रियता धुमिल करने का प्रयास
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यादव,मुुस्लिम राजनीति की मुहर अखिलेश पर
विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया)
लखनऊ। समाजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव अपने राजनीतिक जीवन के सबसे दुरूह माहौल से गुजर रहे है। लगभग 60 वर्ष के राजनीतिक जीवन में तमाम उतार-चढ़ाव देखते हुए मुलायम ने तमाम विरोधियों को अपने चर्चित "" चरखा दांव"" से पटखनी दी परन्तु अपने जीवन के उतार में अपनों से ही हारते नजर आ रहे है। मुलायम के परिवार में बढ़ता यह कलह वैचारिक नही है बल्कि "" मनी-मसल्स तथा पावर "" का खतरनाक स्वरूप लेता जा रहा है। मुलायम परिवार राजनीतिक दुश्चक्र के सबसे गहरे भंवरजाल में फंस गया है। महाभारत के युद्ध में तो दोनों पक्षों के भाइयों मेंं एका बनी रही जबकि मुलायम परिवार के संग्राम में चाचा-भतीजा का आमने-सामने आना पूरे समाजवादी परिवार के लिए संकट खड़ा कर गया है। इस पूरे संग्राम में एक तरह से अखिलेश की लोकप्रियता आैर राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ उनकी छवि को धुमिल करने का प्रयास किया जा रहा है।...आगे क्लिक करे.
अखिलेश ने बनाया नया आसियाना --
तमाम विवादों के बाद भी मुलायम परिवार अभी तक एक बना हुआ था। यहां तक कि आपसी मनमुटाव होते हुए भी अखिलेश मुख्यमंत्री बनने के बाद भी सरकारी आवास छोड़ पिता के आवास में ही साथ रहते थे। हालांकि इस आवास में अखिलेश के रहने को लेकर तमाम तरह की चर्चाए भी होती थी परन्तु अखिलेश ने पिता का सम्मान आैर प्यार का मान रखते हुए उन्हीं की साया में रहने का निर्णय लिया। यही नही चाचा शिवपाल के यहां भी अखिलेश का आये दिन आना जाना रहता था। मुख्यमंत्री बनने के बाद यह पहला मौका आया है कि अखिलेश अब पिता का घर छोड़ अपने आवास में रहने जा रहे है। यह स्थिति तब हुई है जब चचा शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने के बाद शिवपाल ने अखिलेश समर्थकों को न केवल सपा से निष्कासित कर दिया बल्कि कार्यालय आने-जाने से भी मनाही कर दी गयी। नाराज अखिलेश ने समर्थकों के लिए जयप्रकाश ट्रस्ट को नये कार्यालय के रूप में चयनित कर लिया है। इस घटना से साफ हो गया है कि समाजवादी परिवार के घर आैर कार्यालय दोनों का ही बंटवारा शु डिग्री हो गया है। आगामी विधानसभा चुनाव के समय सपा के झंडे तले आैर साइकिल चुनाव चिन्ह पर कौन चुनाव लड़ेगा आैर कौन समाजवादी विरोध में डंका बजाएगा, यह तो समय बताएगा परन्तु यह साफ है कि इस बार सपा के झंडे-बैनर को ही लेकर घमासान होना है। यही नही लखनऊ आने के बाद से अपने पिता मुलायम सिंह यादव के साथ जिस 4 विक्रमादित्य मार्ग पर अब रहते आये है, वहां से भी अब पहली बार हटकर वह नये आसियाने 7 विक्रमादित्य मार्ग पर 9 अक्टूबर को शिफ्ट हो जाएगे। अखिलेश पिता का आसियाना ऐसे समय छोड़ रहे है जबकि साढ़े चार वर्ष मुख्यमंत्री बनने के बाद भी यह सरकारी आवास 5 कालिदास मार्ग पर रात्रि निवास नही किया। अखिलेश के पिता का आवास छोड़ने के पीछे उनके खिलाफ इसी भवन से की जा रही साजिश को बताया जा रहा है। इसके बाद भी अखिलेश ने पिता का मान रखते हुए इस साजिश का पर्दाफाश नही किया है।..आगे क्लिक करे.
तमाम विवादों के बाद भी मुलायम परिवार अभी तक एक बना हुआ था। यहां तक कि आपसी मनमुटाव होते हुए भी अखिलेश मुख्यमंत्री बनने के बाद भी सरकारी आवास छोड़ पिता के आवास में ही साथ रहते थे। हालांकि इस आवास में अखिलेश के रहने को लेकर तमाम तरह की चर्चाए भी होती थी परन्तु अखिलेश ने पिता का सम्मान आैर प्यार का मान रखते हुए उन्हीं की साया में रहने का निर्णय लिया। यही नही चाचा शिवपाल के यहां भी अखिलेश का आये दिन आना जाना रहता था। मुख्यमंत्री बनने के बाद यह पहला मौका आया है कि अखिलेश अब पिता का घर छोड़ अपने आवास में रहने जा रहे है। यह स्थिति तब हुई है जब चचा शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने के बाद शिवपाल ने अखिलेश समर्थकों को न केवल सपा से निष्कासित कर दिया बल्कि कार्यालय आने-जाने से भी मनाही कर दी गयी। नाराज अखिलेश ने समर्थकों के लिए जयप्रकाश ट्रस्ट को नये कार्यालय के रूप में चयनित कर लिया है। इस घटना से साफ हो गया है कि समाजवादी परिवार के घर आैर कार्यालय दोनों का ही बंटवारा शु डिग्री हो गया है। आगामी विधानसभा चुनाव के समय सपा के झंडे तले आैर साइकिल चुनाव चिन्ह पर कौन चुनाव लड़ेगा आैर कौन समाजवादी विरोध में डंका बजाएगा, यह तो समय बताएगा परन्तु यह साफ है कि इस बार सपा के झंडे-बैनर को ही लेकर घमासान होना है। यही नही लखनऊ आने के बाद से अपने पिता मुलायम सिंह यादव के साथ जिस 4 विक्रमादित्य मार्ग पर अब रहते आये है, वहां से भी अब पहली बार हटकर वह नये आसियाने 7 विक्रमादित्य मार्ग पर 9 अक्टूबर को शिफ्ट हो जाएगे। अखिलेश पिता का आसियाना ऐसे समय छोड़ रहे है जबकि साढ़े चार वर्ष मुख्यमंत्री बनने के बाद भी यह सरकारी आवास 5 कालिदास मार्ग पर रात्रि निवास नही किया। अखिलेश के पिता का आवास छोड़ने के पीछे उनके खिलाफ इसी भवन से की जा रही साजिश को बताया जा रहा है। इसके बाद भी अखिलेश ने पिता का मान रखते हुए इस साजिश का पर्दाफाश नही किया है।..आगे क्लिक करे.
बंटवारे से सपा महाभारत की सुगबुगाहट --
महाभारत युद्ध टालने के लिए कौरव बंश के भीष्म पितामह ने राज्य का बंटवारा कर दिया। पाण्डवों को सबसे खराब हिस्सा दिया गया है परन्तु उनकी मेहनत रंग लायी आैर कुछ ही दिनों में इन्द्रप्रस्थ के ऐश्वर्य से कौरवों में जलन पैदा हो गयी क। कुछ ऐसी ही स्थिति सपाई परिवार में भी दिखने लगी है। मुख्यमंत्री बनने के बाद से अखिलेश का राजनैतिक कैरियर जिस गति से आगे बढ़ा है, उससे विपक्षी राजनीतिज्ञों से ज्यादा कुछ सपाई परिवार के लोग ही खार खा रहे है। अखिलेश के खिलाफ चल रही राजनीतिक साजिश विपक्षी दलों से नही घर के अन्दर से ही की जा रही है। मुख्यमंत्री बनने के बाद से अखिलेश यादव अपनी स्वच्छ एवं इमानदार छवि को लेकर सचेत रहे। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा का प्रदेश अध्यक्ष रहते अखिलेश की युवा आैर स्वच्छ छवि सब पर भारी रही। अखिलेश ने डी.पी.यादव के टिकट का विरोध कर राजनीति के अपराधिकरण के खिलाफ अपनी सोच आैर कार्यविधि को साफ कर दिया था। जनता पर इसका सकरात्मक प्रभाव पड़ा था। अखिलेश तमाम विवादों के बाद भी प्रदेश के लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे है।...आगे क्लिक करे.
महाभारत युद्ध टालने के लिए कौरव बंश के भीष्म पितामह ने राज्य का बंटवारा कर दिया। पाण्डवों को सबसे खराब हिस्सा दिया गया है परन्तु उनकी मेहनत रंग लायी आैर कुछ ही दिनों में इन्द्रप्रस्थ के ऐश्वर्य से कौरवों में जलन पैदा हो गयी क। कुछ ऐसी ही स्थिति सपाई परिवार में भी दिखने लगी है। मुख्यमंत्री बनने के बाद से अखिलेश का राजनैतिक कैरियर जिस गति से आगे बढ़ा है, उससे विपक्षी राजनीतिज्ञों से ज्यादा कुछ सपाई परिवार के लोग ही खार खा रहे है। अखिलेश के खिलाफ चल रही राजनीतिक साजिश विपक्षी दलों से नही घर के अन्दर से ही की जा रही है। मुख्यमंत्री बनने के बाद से अखिलेश यादव अपनी स्वच्छ एवं इमानदार छवि को लेकर सचेत रहे। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा का प्रदेश अध्यक्ष रहते अखिलेश की युवा आैर स्वच्छ छवि सब पर भारी रही। अखिलेश ने डी.पी.यादव के टिकट का विरोध कर राजनीति के अपराधिकरण के खिलाफ अपनी सोच आैर कार्यविधि को साफ कर दिया था। जनता पर इसका सकरात्मक प्रभाव पड़ा था। अखिलेश तमाम विवादों के बाद भी प्रदेश के लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे है।...आगे क्लिक करे.
शिवपाल का दामन --
पारिवारिक विवाद में मुलायम सिंह यादव जिस भाई शिवपाल के राजनीतिक योगदान का गुणगान कर रहे थे, वह एक अराजक आैर अपराधी मुखौटा था। भ्रष्टाचार आैर भूमाफियों को लेकर भी शिवपाल का दामन साफ नही है। जिन सपा कार्यकर्ताओं के शिवपाल के पक्ष में होने की बात है, वह प्रदेश के दबंग आैर अराजक है। मुलायम की सरकार में यह आतंक हमेशा सरकार पर हावी रहा है। यही वजह रही है कि तमाम प्रयासों के बाद भी अखिलेश सरकार में कानून-व्यवस्था में सुधार होने के आसार नही बने। इन सारे हालातों के बाद भी अखिलेश की निश्चल मुस्कान आैर स्वच्छ छवि के कारण जनता में उसकी लोक प्रियता बनी हुई है। होना तो यह चाहिए था कि सपा प्रदेश अध्यक्ष की कमान शिवपाल को सौपने से पहले मुलायम सिंह यादव को शिवपाल आैर अखिलेश की लोक प्रियता का सर्वे करा लेना चाहिए था। प्रदेश की राजनीति में अखिलेश युवा वर्ग का चेहरा बना हुआ है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी अखिलेश के इस छवि को चुनौती नही दे पाये।...आगे क्लिक करे.
पारिवारिक विवाद में मुलायम सिंह यादव जिस भाई शिवपाल के राजनीतिक योगदान का गुणगान कर रहे थे, वह एक अराजक आैर अपराधी मुखौटा था। भ्रष्टाचार आैर भूमाफियों को लेकर भी शिवपाल का दामन साफ नही है। जिन सपा कार्यकर्ताओं के शिवपाल के पक्ष में होने की बात है, वह प्रदेश के दबंग आैर अराजक है। मुलायम की सरकार में यह आतंक हमेशा सरकार पर हावी रहा है। यही वजह रही है कि तमाम प्रयासों के बाद भी अखिलेश सरकार में कानून-व्यवस्था में सुधार होने के आसार नही बने। इन सारे हालातों के बाद भी अखिलेश की निश्चल मुस्कान आैर स्वच्छ छवि के कारण जनता में उसकी लोक प्रियता बनी हुई है। होना तो यह चाहिए था कि सपा प्रदेश अध्यक्ष की कमान शिवपाल को सौपने से पहले मुलायम सिंह यादव को शिवपाल आैर अखिलेश की लोक प्रियता का सर्वे करा लेना चाहिए था। प्रदेश की राजनीति में अखिलेश युवा वर्ग का चेहरा बना हुआ है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी अखिलेश के इस छवि को चुनौती नही दे पाये।...आगे क्लिक करे.
मुलायम का राजनीतिक वारिस --
समाजवादी परिवार में चल रही यह उठा पटक असल में मुलायम की राजनीतिक विरासत को लेकर है। मुलायम सिंह यादव के दो बेटे अखिलेश एवं प्रतीक है। बताया जाता है कि मुलायम सिंह यादव ने इन दोनों में आर्थिक बंटवारा कर दिया है। जहां तक मुलायम के राजनीतिक वारिस का है, वह अखिलेश ने केवल हासिल ही नही किया है बल्कि पिता से कोसो आगे तक पहुंचा दिया है। पहले प्रदेश सपा का अध्यक्ष रहते अखिलेश ने पहली बार पार्टी को पूर्ण बहुमत दिलाया। उसके बाद मुख्यमंत्री बनते ही अखिलेश एक तरह से पिता मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक वारिस हो गये। इस बीच अखिलेश ने समाजवादी राजनीति के परचम को अपराधीकरण आैर भ्रष्टाचार से मुक्त कर विकासवादी नयी पहचान बनाने का प्रयास किया। समाजवादी राजनीति में मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक पहचान "" यादवी नेतृत्व एवं मुस्लिम परस्ती "" रही है। इन दो बिन्दुओं पर भी अखिलेश आज के समय में अपने पिता मुलायम सिंह यादव से काफी आगे निकल गये है। मुलायम सरकार में कुछ सिपाही तथा अन्य कर्मचारियों की भर्ती में ही यादवों को वरीयता दिये जाने के राजनीतिक आरोप लगे थे परन्तु अखिलेश सरकार में सिपाही, शिक्षक, ग्राम पंचायतों आदि लाखों भर्तियों मेंं ही नही लोक सेवा आयोग तथा सचिवालय की भर्तियांे तक में जिस प्रकार यादव कुल का बोलबाला रहा, उससे अखिलेश...आगे क्लिक करे..
समाजवादी परिवार में चल रही यह उठा पटक असल में मुलायम की राजनीतिक विरासत को लेकर है। मुलायम सिंह यादव के दो बेटे अखिलेश एवं प्रतीक है। बताया जाता है कि मुलायम सिंह यादव ने इन दोनों में आर्थिक बंटवारा कर दिया है। जहां तक मुलायम के राजनीतिक वारिस का है, वह अखिलेश ने केवल हासिल ही नही किया है बल्कि पिता से कोसो आगे तक पहुंचा दिया है। पहले प्रदेश सपा का अध्यक्ष रहते अखिलेश ने पहली बार पार्टी को पूर्ण बहुमत दिलाया। उसके बाद मुख्यमंत्री बनते ही अखिलेश एक तरह से पिता मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक वारिस हो गये। इस बीच अखिलेश ने समाजवादी राजनीति के परचम को अपराधीकरण आैर भ्रष्टाचार से मुक्त कर विकासवादी नयी पहचान बनाने का प्रयास किया। समाजवादी राजनीति में मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक पहचान "" यादवी नेतृत्व एवं मुस्लिम परस्ती "" रही है। इन दो बिन्दुओं पर भी अखिलेश आज के समय में अपने पिता मुलायम सिंह यादव से काफी आगे निकल गये है। मुलायम सरकार में कुछ सिपाही तथा अन्य कर्मचारियों की भर्ती में ही यादवों को वरीयता दिये जाने के राजनीतिक आरोप लगे थे परन्तु अखिलेश सरकार में सिपाही, शिक्षक, ग्राम पंचायतों आदि लाखों भर्तियों मेंं ही नही लोक सेवा आयोग तथा सचिवालय की भर्तियांे तक में जिस प्रकार यादव कुल का बोलबाला रहा, उससे अखिलेश...आगे क्लिक करे..
..उत्तर प्रदेश की राजनीति में यादवों का शिरमौर बनकर उभरे है। पश्चिम के दंगों में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जिस दरियादिली से मुस्लिम वर्ग की सहायता की, वह इस मामले में भी अपने पिता से आगे निकल गये। इस वोटिंग लिहाज से शिवपाल आैर अखिलेश में तुलना की जाय तो शिवपाल के लिए राह नही मिलेगी। पुत्रों के न होने पर ही भाई संपत्ति या अन्य किसी का वारिस होता है। ऐसे में शिवपाल राजनीतिक रूप से मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक वारिस नही हो सकते। अखिलेश ने वह अधिकार पहले ही अपने हाथ कर ली है। असल में इस विवाद के पीछे प्रतीक को पर्दे के पीछे कर शिवपाल राजनीतिक चाल चल रहे है। जब दो भाई आपस में भीड़ जाय तो चचा की बाजी लग सकती है।