मोदी की छवि, भाजपा का ब्रह्मास्त्र
विजय शंकर पंकज ( यूरिड मीडिया)
लखनऊ
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बाजी एक ही पांसे से बदलती है। शतरंज के खेल का यह मुहावरा जीवन के हर क्षेत्र में लागू होता है। देश में चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम में सेना के सर्जिकल स्ट्राइक ने 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों की तस्वीर ही बदल दी है। यह कार्य समय आैर परिस्थितियों के अनुरूप लिए गये नेतृत्व के निर्णय से ही सफलीभूत होता है। देश की सेना कभी भी राजनीतिक घटनाक्रमों में हस्तक्षेप नही करती है परन्तु जाने-अनजाने सर्जिकल स्ट्राइक ने देश की राजनीति की दिशा बदल दी है। इस पर तुर्रा यह है कि कुछ नेताओं के अनाप-शनाप बयानों ने उनकी बनी-बनायी जमीन कसरत को भी मटियामेट कर दिया है। इस घटना के बाद भाजपा बाजी मार गयी है आैर प्रतिद्वन्दी दल केवल गुब्बार देख रहे है।
भाजपा का चुनावी ब्रह्मास्त्र मोदी
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पिछले कई वर्षो से देश में आये दिन होने वाली आतंकी घटनाओं आैर काश्मीर में तनाव से देश भर में एक निराशा का भाव बना हुआ था। केन्द्र में भाजपा शासित नरेन्द्र मोदी सरकार बनने से जनता में कुछ कठोर कार्रवाई की आस जगी थी परन्तु 18 सितम्बर को सेना के कैम्प पर आतंकी घटना ने लोगों का मनोबल तोड़ दिया। मोदी सरकार के एक्शन को भी लेकर जनता के मन में पिछली कांग्रेस सरकारों जैसी द्विविधा की स्थिति दिखायी दे रही थी। मोदी सरकार के क्रिया कलापों को लेकर चारों तरफ प्रतिकूल आवाजे उठने लगी थी। सेना पर हमले के 10 दिन बाद 28-29 सितम्बर की रात सर्जिकल स्ट्राइक की सूचना ने देश वासियों की बाहें खिला दी। सेना की अपार क्षमता आैर साहस को सैल्यूट करते हुए देश ने नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व आैर समय पर निर्णय की क्षमता की सराहना की। लगभग 12 वर्षो तक गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी की छवि विकास, स्वच्छ प्रशासन एवं राष्ट्रवादी नेता के रूप में उभरी थी। इसके पूर्व 10 वर्षो की मनमोहन सरकार ने देश को लाचार स्थिति में ला दिया जिससे जनता में नैराश्य भाव बढ़ता जा रहा था। इसके साथ ही कांग्रेसी शासन के दौरान आये दिन हो रहे भ्रष्टाचार की रिपोर्ट ने सरकार के प्रति जनता का विश्वास ही खो दिया। ऐसे हालात में मोदी के लछीले भाषण तथा खुशहाली के बयानों ने जनता को आकर्षित किया। केन्द्र में मोदी की ढाई वर्ष की सरकार में बढ़ती महंगाई ने जनता को निराश किया। इस बीच बढ़ती आतंकी घटनाओं से जनता की निराशा बढ़ रही आैर मोदी की राष्ट्रीय छवि को लेकर आलोचनाएं शु डिग्री हो गयी थी लेकिन समय पर हुई सेना की सर्जिकल स्ट्राइक ने पूरे देश में माहौल बदल दिया। इसका असर यह दिख रहा है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा उत्तर प्रदेश में जातीय रणनीति बनाने में जुटी थी तो उत्तराखंड, पंजाब आैर गोवा में आपसी कलह की वजह से राह नही दिख रही थी। अब इस घटना ने इन चारो राज्यों में भाजपा की पौ बारह कर दी है तो मिजोरम भी सकरात्मक संदेश देने लगा है। भाजपा के लिए अब मोदी का नाम ही चुनाव जिताने के लिए "" ब्रह्मास्त्र"" बन गया है। यूपी में तो भाजपाई बाग-बाग हो सरकार बनाने के सपने देखने लगे है।
सपा का भस्मासुर
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समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के बारे में उनके मित्र कहते है कि "" जब तक छेड़ते रहेंगे,वह लड़ता रहेगा। धराशायी करना हो तो मुलायम को शान्त छोड़ दो।"" मुलायम के राजनीतिक क्रियाकलाप में यह कहावत साफ उजागर होती है। साढ़े चार वर्ष तक चली प्रदेश में सपा सरकार में पहली बार विकास का एजेन्डा सफल रहा। मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव की छवि स्वच्छ एवं साफ नेता के रूप में उभरी है। सपा सरकार में अखिलेश ही एक मात्र ऐसे नेता है जिन पर भ्रष्टाचार एवं राजनीति के अपराधीकरण के आरोप नही लगे है। ऐसे में विधानसभा चुनाव के ऐन मौके पर मुलायम सिंह यादव जैसा नेता जिस प्रकार अपने छोटे भाई शिवपाल को आगे कर अपने ही पुत्र की छवि को धूमिल करने में जुटे हुए है, उससे परिवार की कलह सपा की राजनीति पर भारी पड़ती जा रही है। सपा में चल रही खींचतान का क्या असर पड़ रहा है, इसकी असलियत मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इस बयान से ही साफ हो जाती है। कल इटावा में मुख्यमंत्री ने कहा कि ""सर्वे में पहले सपा पहले नंबर पर थी, अब पता नही किस नंबर पर है""। सपा के प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभालने के बाद से चचा शिवपाल लगातार अखिलेश समर्थकों को पार्टी विरोधी अारोपों से बाहर का रास्ता दिखा रहे है। चचा-भतीजे एक दूसरे के क्रिया कलापों से आहत है परन्तु एकता का नाटक भी कर रहे है। चचा-भतीजे की इस जंग में सपा का चुनाव अभियान बंद पड़ा है। अब ऐेसे में चर्चा शु डिग्री हो गयी है कि सपा का भस्मासुर कौन है।
बसपा का अर्थतंत्र
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दलित समाज के राजनीतिक एवं आर्थिक विकास से शु डिग्री हुआ बहुजन समाज पार्टी का सामाजिक आन्दोलन राजनीति के अर्थ तंत्र के दलदल में आकर फंस गया है। ""अति सर्वत्र वर्जयेत"" का सूत्र निजी जीवन से लेकर समाज के हर पहलू में लागू होता है। दलित समाज के उत्थान से सर्वजन सुखाय का नारा देने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती अपने ही तमाम निष्ठावान सहयोगियों को साथ नही रख पायी आैर सभी बेइन्तहा पैसे की मांग की बात कहकर एक- एक कर अलग होते जा रहे है। बसपा में टिकटों की ब्रिकी की राजनीतिक गलियारे में काफी वर्षो से चर्चा होती रही परन्तु मार्च 2016 के एक मीडिया सर्वे में मायावती की सरकार बनने की खबर ने टिकटों की बिक्री करोड़ों तक पहुंचा दी। असल में बसपा छोड़ने वाले नेताओं के पैसे के आरोप तो बाहरी रूप से दिखावे के है परन्तु इसकी जड़ में मूल कारण मायावती का लोगों से न मिलना तथा पदाधिकारियों को अपमानित करने की बात कही जाती है। बसपा के कई विधायकों तथा बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने की खबरों के बाद भी अब भी दलित वर्ग का बड़ा हिस्सा मायावती के साथ एकजुट है। यही वजह है कि मायावती ने विधान सभा चुनाव की रणनीति के तहत सर्वाधिक 130 मुस्लिम प्रत्याशी खड़े किये है। बसपा की रणनीति है कि दलित-मुस्लिम गठबंधन पार्टी की साख बचा सकता है। 2007 में बसपा ने ब्राह्मण कार्ड खेलकर सवर्णो को अपने पक्ष में कर लिया था। मायावती सरकार में प्रमोशन में आरक्षण तथा केवल दलित समुदाय के हितों की बात करने के कारण सवर्ण एवं पिछड़ा वर्ग नाराज चल रहा है। नेताओं के जाने के बाद बसपा में मचे कोहराम तथा कार्यकर्ताओं के मनोबल को बनाये रखने के लिए मायावती ने 9 अक्टूबर को लखनऊ में शक्ति प्रदर्शन करने के लिए रैली बुलायी है। ऐसे में जब कि सपा आपसी द्वन्द में फंसी हुई है बसपा मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने में लगी है।
गलतबयानी से राहुल की खड़ी खाट
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कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पूर्वी यूपी के देवरिया से खाट पंचायत की शुरूआत कर प्रदेश में सुस्त एवं बेजान पड़ी पार्टी में सांस फूंकने का प्रयास किया। इस राजनीतिक कसरत के बाद जब कांग्रेसी कुछ आशान्वित हो रहे थे, राहुल की नादानी ने सारी मेहनत पर पानी फेर दिया। सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जब देश में राष्ट्रभक्ति का एक माहौल बना, ऐसे में राहुल ने सेना के जवानों के खून की दलाली की बात कहना, उनका बचकाना ही झलकता है। इससे साफ है कि कांग्रेस जिस व्यक्ति को देश के प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है, उसे सामान्य शब्दों का भी अर्थ पता नही है। यही नही राहुल इसी रौ में यह भी बोल गये कि राजबब्बर (प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष) की सबसे अच्छी फिल्म " इंसाफ का तराजू " है। यह जुमला कहकर आम जनता में हास्यापद बन गये। असल में राहुल को इस फिल्म के कीरदार की ही जानकारी नही, वह इंसाफ की बात सुन ऐसा कह गये। जबकि इस फिल्म में राजबब्बर का किरदार बलात्कारी खलनायक का है। राष्ट्रीय मुद्दों पर जहां कांग्रेस अभी तक संभल कर चल रही थी, राहुल के बचकानेपन ने सब करे कराये पर पानी फेर दिया।
7th October, 2016