लखनऊ।देश के दो युवा चेहरे अब एक होने जा रहे है। आश्चर्य न करे, अखिलेश आैर राहुल की दोस्ती अब राजनीतिक परवान चढ़ने जा रही है। इसको राजनीतिक जामा पहनाने वालों का कहना है कि यह फिल्म "" शोले "" की तर्ज पर "" जय-वीरू"" की बेमिसाल जोड़ी साबित होगी जो उत्तर प्रदेश की राजनीतिक काया बदल देगी। प्रदेश के एक बड़े कांग्रेसी नेता यह दोस्ती पक्का कराने में जुटे हुए है। इस संदर्भ में सूत्रों का दावा है कि तीन-चार चरण की फोन पर लंबी वार्ताएं हो चुकी है आैर जल्द ही पूरे मसले की रूपरेखा खींचने के लिए मुलाकात होनी है। अखिलेश-राहुल दोस्ती की राजनीतिक घोषणा इसी माह के अन्त तक होने की संभावना है। इस कड़ी में दोनों नेताओं की पहली संयुक्त रैली अगले माह समाजवादी गढ़ में होगी।
अखिलेश की एकला चलो की पहल --
पारिवारिक कलह से परेशान मुख्यमंत्री अखिलेश ने अब स्वयं से पल्ला झाड़ते हुए आज यह कह कर अप्रत्यक्ष रूप से साफ संकेत दे दिया कि अब वह अपना राजनैतिक अभियान अकेला ही चलाएगा। बाप आैर चचा के साये से अलग होते हुए अखिलेश ने अकेला चलों की घोषणा ऐसे ही अनायास नही कर दी है। इसके पहले ही अखिलेश ने राहुल की तरफ दोस्ती की पेंगे बढ़ाकर अपनी भविष्य की राजनीति एवं रणनीति की दिशा तय कर ली है। अखिलेश की युवा टीम इस अभियान में राहुल कांग्रेस से मिल-जुलकर चुनावी रणनीति तैयार करेंगे। जय प्रकाश ट्रस्ट के नये कार्यालय में आगामी राजनीति की रूपरेखा खींची जा रही है। अखिलेश-राहुल की नयी कार्य योजना को बोल चाल में समाजवादी कांग्रेस का नाम दिया जा रहा है। वैसे यह दोनों दलों का विलय न होकर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में राजनीतिक गठबंधन होगा जो समय के अनुकूल आगे बढ़ाया जाएगा।
समाजवादी यदुबंश का बंटवारा--
अखिलेश के अकेला चलों की घोषणा के साथ ही वीसवीं सदी के अन्त में गठित समाजवादी पार्टी के बंटवारे का भी संकेत साफ हो गया है। अखिलेश की नयी युवा टीम ने पिता मुलायम के तमाम विरोधोंं के बाद भी उनके खिलाफ न कुछ कहने आैर न कुछ करने की रणनीति बनायी है आैर हर कार्य योजना में उनके आर्शिबाद की मुहर भी लगायेंगे। इसके विपरीत चचा शिवपाल की सपा से हर स्तर पर दो-दो हाथ करने को भी तैयार है। शिवपाल की सपा को नयी बिग्रेड ने (सपा-एम.एस.) अर्थात समाजवादी पार्टी (मुख्तार-शिवपाल) रखा है तो अखिलेश की सपा को ( सपा-एम.ए) अर्थात समाजवादी पार्टी (मुलायम-अखिलेश) रखा है। अखिलेश ने आज साफ तौर पर कहा कि बचपन में जब मेेरे साथ कोई नही था तो मैने खुद अपना नाम रखा था। अखिलेश के दिल में काफी दिनोंं से इस विवाद को लेकर कितनी भड़ास थी,वह खुलकर आज बाहर आ गयी। अखिलेश ने कहा कि मुलायम सिंह जी मेरे पिता है, यह प्राकृतिक सत्य है आैर इससे कभी अलग नही हुआ जा सकता परन्तु आगे बढ़ने के लिए व्यक्ति को अपना रास्ता बनाना पड़ता है। इसलिए अब पारिवारिक विवाद को छोड़ मैं अकेला ही चलूंगा चाहे कोई साथ दे या न दे।
अखिलेश को यादवी सहानुभूति --
समाजवादी यदुबंशीय परिवार के इस कलह में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपनी विरादरी के लोगों का पूरा साथ मिल रहा है। अखिलेश युवा यादवों के नायक के रूप में उभरे है तो शिवपाल की स्थिति जयचन्दीय राजनीति से भी बदतर हो गयी है। यादव चिन्तकों का कहना है कि शिवपाल बाप-बेटे को आपस में लड़ाकर अपना हित साधने में लगे हुए है। अखिलेश को मां के न होने आैर परिवार में अकेला किये जाने की भी यादव विरादरी से लाभ मिल रहा है। मुलायम सिंह यादव समर्थक यादव भी अब यह कहने लगे है कि अखिलेश को मायभा महतारी का दंश झेलना पड़ रहा है। ऐसे में पारिवारिक कलह की आंच विधान सभा चुनाव तक जाती है तो ज्यादातर यादवों की रूझान अखिलेश की तरफ होने की संभावना है।
अखिलेश-राहुल का राजनीतिक कूच --
अगले माह से प्रदेश की राजनीति में अखिलेश-राहुल की जोड़ी राजनीतिक कूच करेगी। प्रदेश में प्राय: मृत पड़ी कांग्रेस को राहुल ने खाट पंचायत कर अंगड़ाई की स्थिति में ला दिया है परन्तु कांग्रेसी विश्लेषक भी मानते है कि इन सारे प्रयासों के बाद भी पार्टी में अभी चुनावी जीत की स्थिति में नही आ पायी है। कांग्रेस नेतृत्व को पता है कि अकेले पर यूपी में राजनीतिक ताकत बनना संभव नही है। बिहार चुनाव में कांग्रेस को गठबंधन का लाभ मिला था आैर उसकी सीटों में बढ़ोतरी हुई। यही स्थिति यूपी में भी है परन्तु कांग्रेस को किसी मजबूत दल सपा-बसपा को अभी तक गठबंधन का साथ नही मिला। अब यदुबंशीय परिवार में कलह के बाद कांग्रेस को सपा की तरफ हाथ बढ़ाने का मौका मिला है। ऐसे हालात में अखिलेश-राहुल का साथ कांग्रेस के राजनीतिक उद्धार के लिए राम बाण साबित होगा। चचा से परेशान अखिलेश को भी एक नये मजबूत साथी की जरूरत है जो उन्हें राहुल में दिख रहा है। यूपी की राजनीति में राहुल कभी भी अखिलेश के प्रतिद्वन्दी नही हो सकते है आैर केन्द्र की राजनीति में दोनों एक दूसरे के सहायक बनकर नयी ताकत बन सकते है। ऐसे में अखिलेश-राहुल की दोस्ती देश एवं प्रदेश की भावी राजनीति के लिए अहम कदम साबित हो सकती है।
मुृलायम ने बढाया विवाद----
मुख्यमंत्री के अखिलेश के अकेला चलो की धोषणा के बाद सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने यह कह करके कि मुख्यमंत्री का चुनाव विधायक करेंगे, पारिवारिक कलह को औऱ हवा दे दी इससे साफ हो जाता है कि शुक्रवार की सुबह अखिलेश ने अकेले चलो की जो बात कही वह मामले को सुलझाने के सब दरवाजे बंद हो जाने के बाद बाहर आई। पिछले कुछ दिनों से यदुवंशी परिवार मे जो कुछ चल रहा था उससे यह कयास तो लगाया जा रहा थी कि अभी मामला शांत नही हुआ है , लेकिन आज पिता व पुत्र के दोनो बयानों ने साफ कर दिया है कि समाजवादी यदुवंशी परिवार विभाजन के कगार पर खड़ा है।
पारिवारिक कलह से परेशान मुख्यमंत्री अखिलेश ने अब स्वयं से पल्ला झाड़ते हुए आज यह कह कर अप्रत्यक्ष रूप से साफ संकेत दे दिया कि अब वह अपना राजनैतिक अभियान अकेला ही चलाएगा। बाप आैर चचा के साये से अलग होते हुए अखिलेश ने अकेला चलों की घोषणा ऐसे ही अनायास नही कर दी है। इसके पहले ही अखिलेश ने राहुल की तरफ दोस्ती की पेंगे बढ़ाकर अपनी भविष्य की राजनीति एवं रणनीति की दिशा तय कर ली है। अखिलेश की युवा टीम इस अभियान में राहुल कांग्रेस से मिल-जुलकर चुनावी रणनीति तैयार करेंगे। जय प्रकाश ट्रस्ट के नये कार्यालय में आगामी राजनीति की रूपरेखा खींची जा रही है। अखिलेश-राहुल की नयी कार्य योजना को बोल चाल में समाजवादी कांग्रेस का नाम दिया जा रहा है। वैसे यह दोनों दलों का विलय न होकर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में राजनीतिक गठबंधन होगा जो समय के अनुकूल आगे बढ़ाया जाएगा।