आखिर खुल गया यदुबंशी परिवार का सच
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विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया)
लखनऊ। समाजवादी पार्टी के विधान परिषद सदस्य उदयवीर सिंह ने प्रदेश के सबसे बड़े यदुबंशी परिवार के रार के पीछे के चेहरे को उजागर कर दिया। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की शह पाकर कुछ दिनों से इतराये चल रहे छोटे भाई शिवपाल तो यदुबंशी परिवार में बिष घोलने वाले साजिशकर्ता के केवले मोहरे ही है। भारतीय इतिहास में धाय मां तो त्याग की प्रतिमूर्ति रही है परन्तु किसी मायभा (सौतेली मां) की मिसाल कम ही साथ देने की मिलती है।किसी भी बादशाह के बुढ़ाये में किसी भी तरह के मोह पाश में फंसने पर बड़ी सन्तान को उसका भुगतान करना ही पड़ता है। इसीलिए सनातन ऋषियों ने जीवन को चार चरणों में बांटते हुए वानप्रस्थ में पारिवारिक मोह एवं बंधनों से मुक्त होने आैर अन्तिम चौथे चरण सन्यास में सभी सामाजिक बंधनों से मुक्त हो विरक्ति भाव में जीवन यापन करने का दृष्टान्त दिया गया है। तमाम प्रतापी राजाओं ने इसका पालन भी किया।
मोहरे शिवपाल--
समाजवादी यदुबंशी परिवार में कलह सामने आने के बाद ही (यूरिड मीडिया) ने यह संकेत दे दिया था कि इसके पीछे शिवपाल, अमर सिंह मात्र मोहरे है, चाल कोई आैर चल रहा है। शिवपाल आैर अमर सिंह इतने राजनीतिक रूप से प्रभावी नही थे कि अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से हटा सके। राजनीति के चतुर खिलाड़ी आैर कुश्ती के चरखा दांव के माहिर मुलायम सिंह यादव जैसे शख्सियत को शिवपाल आैर अमर जैसे छोटे पिद्दे बरगला नही सकते। यही नही कोई अन्य बाहरी व्यक्ति की भी यह हैसियत नही थी कि वह मुलायम को ऐसे कुचक्र में फंसा सके। ऐसे में साफ था कि यदुबंशी परिवार में कोई इतना प्रभावी अवश्य हो गया है जो मुलायम की राजनीति में दखलन्दाजी कर रहा है। हालांकि इसका संकेत कई माह पहले ही मिल गया था जब मुलायम परिवार की दूसरी पुत्रबधु अर्पणा यादव को लखनऊ के कैन्ट से विधानसभा का प्रत्याशी घोषित किया गया। उस समय जनता तथा मीडिया ने इस घटनाक्रम को सामान्य माना परन्तु इस परिवार के गर्भगृह में चल रहे ज्वालामुखी विस्फोट से पहले की उथल-पुथल का यह पहला संकेत था।
अखिलेश को अलग-थलग करने की साजिश--
राजनीति आैर परिवार में अखिलेश के बढ़ते प्रभाव को कई लोग अन्दर से पचा नही पा रहे थे परन्तु कोई भी खुलकर विरोध करने की हैसियत में नही था। इसके लिए अमर सिंह ने चाणक्य नीति का सुझाव दिया आैर सीधे अखिलेश पर हमला करने की बजाय उनकी राजनैतिक हैसियत कम करने की रणनीति अपनायी गयी। पिछले कई वर्षो से अखिलेश प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ ही सपा के प्रदेश अध्यक्ष की भी जिम्मेदारी निभा रहे थे। ऐसे में कोई कारण नही बनता था कि चुनाव से कुछ माह पहले उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया जाय। यहां तक कि प्रदेश अध्यक्ष बनने वाले चचा शिवपाल यादव भी बिना मंत्री पद के यह काम करने को तैयार नही थे। अमर की इस चाल को शिवपाल क्रियान्वित नही कर सकते थे, इसलिए मुलायम की पत्नी साधना को यह जिम्मेदारी सौंपी गयी। अखिलेश की राजनैतिक हैसियत कम करने आैर विवाद के बाद परिवार में अलग-थलग करने की रणनीति का यह पहला हिस्सा था। साधना ने वह कर दिखाया तो त्रेता में कैकेयी ने किया था परन्तु यदुबंशी परिवार को द्वापर काल से जुड़ा है, इसलिए न तो मुलायम (दशरथ की तरह) पिता निकले आैर नही अखिलेश (राम की तरह पितृ भक्त)। रामयुग में पारिवारिक प्रेम एवं आपसी त्याग का इतिहास है तो महाभारत में सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की ख्वाहिश।
सुलझेगा विवाद ?--
महाभारत में एक कथा है। युद्ध शुरु होने से पहले शान्ति के सारे प्रयास किये जा रहे थे। अन्त में भगवान कृष्ण पाण्डवों की तरफ से शान्ति दूत बनकर कौरव पक्ष में दुर्योधन से मिलने जाने को तैयार हुए। द्रौपदी अपने अपमान का बदला लेने के लिए हर हाल में युद्ध चाहती थी। उसे लगा कि कृष्ण दूत बनकर जा रहे है तो युद्ध टालने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेगे। घबड़ाकर द्रौपदी ने कृष्ण से कहा- हे माधव क्या युद्ध नही होगा? कृष्ण सखा थे आैर सखी द्रौपदी के हर भाव को समझते थे। कृष्ण ने बड़े धैर्य से जवाब दिया- सखी, युद्ध के बारे में मुझसे ज्यादा दुर्योधन पर विश्वास रखो, वह बिना युद्ध नही मानेगा। इस कलयुगी यदुबंशीय परिवार की रार में भी साधना आैर अखिलेश के बीच की लड़ाई कुछ-कुछ द्रौपदी आैर दुर्योधन के एक दूसरे के प्रति हद की घृणात्मक भावों से भरे है। यह तो यदुबंशीय परिवार के गर्भ में है कि किसने, कब, किसका आैर कैसे-कैसे अपमान किया है। यह महाभारत तो कुछ ऐसे ही घटनाक्रमों की पुनरावृति कर रही है।
विनाश की नींव है मोह--
किसी तरह के मोह से बचने के लिए हमेशा ही सचेत किया जाता है। मोह से लोभ, लोभ से मद, मद से क्रोध आैर क्रोध से विनाश होता है। यह सभी एक दूसरे के पूरक है। राजा दशरथ को स्त्री से आसक्ति थी तो बिना सोचे समझे कैकेयी को वरदान दे दिया जिसके परिणाम स्वरूप राम स्वरूप बेटे को बनवास जाना पड़ा जिसके प्रति दशरथ सबसे ज्यादा मोहग्रस्त थे। अन्त में दशरथ को अपने प्राण त्याग करना पड़ा। इसके विपरीत धृतराष्ट्र के पुत्रमोह ने पूरे परिवार को महाभारत के युद्ध में ढकेल दिया। वर्तमान यदुबंशी परिवार के कलह में भी साफ है कि मुलायम सिंह यादव भी कई मोह पाश में फंस गये है। अब इससे मुक्ति का एक मात्र रास्ता मोह से मुक्ति है परन्तु वृद्धावस्था कई तरह की ब्याधियों की जड़ भी होती है। भगवान कृष्ण भी द्रौपदी के अपमान से उपजी घृणा, धृतराष्ट के पुत्र मोह आैर दुर्योधन के अहम से मुक्ति नही दिला पाये थे।
पत्राचार की लड़ाई--
यदुबंशी परिवार की कलह अब वाकयुद्ध से बाहर आकर पत्राचार से शुरु हो गयी है। पहले बयानबाजी आैर समर्थकों का शक्ति प्रदर्शन शुरु हुआ। अब बातचीत बंद हो गयी। एक ही घर में रहते हुए भी पिता मुलायम आैर पुत्र अखिलेश में बातचीत नही हो हो रही है। सभी संचार साधनों के बाद आैर कैबिनेट में शामिल होने के बाद भी मुख्यमंत्री अखिलेश आैर दूसरे नंबर के मंत्री शिवपाल की स्थिति नेता पक्ष एवं नेता प्रतिपक्ष की हो गयी है। एमएलसी उदयवीर सिंह का पत्र मूल रूप से अखिलेश की ही भावना है। अभी तक अखिलेश अपनी जिस सौतेली मां साधना का नाम लेने से कतरा रहे थे, उदयवीर ने उसका खुलासा कर दिया। शायद अखिलेश पिता का मान रखने के कारण ही सौतेली मां का नाम लेने से कतरा रहे थे कि इससे पिता की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी परन्तु इसमें मुलायम को ही दोष दिया जाएगा कि उन्होंने बिन मां के बेटे के साथ ऐसा व्यवहार किया जैसे किसी अनाथ के साथ किया जाता है। यहां तक कि मुलायम के प्रिय राजनीतिक भाई शिवपाल भी उन्ही के साथ हो गये। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी पिता के साये में रहने के लिए अखिलेश ने सरकारी आवास में रहना मुनासिब नही समझा आैर उन्ही के साथ परिवार साथ रहे। परिवार में अलग-थलग करने के बाद ही अखिलेश ने अलग आवास में जाने का निर्णय लिया।
अखिलेश का रथ आैर मुलायम की पंचायत--
पारिवारिक आैर राजनीतिक रूप से अलग किये जाने की साजिश का तोड़ करते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पार्टी से अलग "एकला चलो" की राह अपनायी। इसके लिए अखिलेश ने 3 नवम्बर से चुनाव प्रचार के लिए "रथयात्रा" निकालने की घोषणा की है। वैसे पहले यह रथयात्रा 3 अक्टूबर से होना था परन्तु समझौते की बार्ता के बाद इसे स्थगित कर दिया गया है। अखिलेश ने यह घोषणा तब की है जब सपा की स्थापना की 25 वीं वर्षगांठ 5 नवम्बर को लखनऊ में मनायी जानी है आैर मुलायम सिंह यादव इसकी घोषणा कर चुके है। इसके पहले 24 नवम्बर को सभी पदाधिकारियों तथा जिलों के नेताओं की भी बैठक बुलायी गयी है। अखिलेश ने अपने कार्यक्रम की भी जानकारी सपा मुखिया को पत्र के जरिये दी है जबकि रथयात्रा की तैयारी पूरी तरह से सपा के यंग बिग्रेड के हाँथों में है।
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महाभारत में एक कथा है। युद्ध शुरु होने से पहले शान्ति के सारे प्रयास किये जा रहे थे। अन्त में भगवान कृष्ण पाण्डवों की तरफ से शान्ति दूत बनकर कौरव पक्ष में दुर्योधन से मिलने जाने को तैयार हुए। द्रौपदी अपने अपमान का बदला लेने के लिए हर हाल में युद्ध चाहती थी। उसे लगा कि कृष्ण दूत बनकर जा रहे है तो युद्ध टालने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेगे। घबड़ाकर द्रौपदी ने कृष्ण से कहा- हे माधव क्या युद्ध नही होगा? कृष्ण सखा थे आैर सखी द्रौपदी के हर भाव को समझते थे। कृष्ण ने बड़े धैर्य से जवाब दिया- सखी, युद्ध के बारे में मुझसे ज्यादा दुर्योधन पर विश्वास रखो, वह बिना युद्ध नही मानेगा। इस कलयुगी यदुबंशीय परिवार की रार में भी साधना आैर अखिलेश के बीच की लड़ाई कुछ-कुछ द्रौपदी आैर दुर्योधन के एक दूसरे के प्रति हद की घृणात्मक भावों से भरे है। यह तो यदुबंशीय परिवार के गर्भ में है कि किसने, कब, किसका आैर कैसे-कैसे अपमान किया है। यह महाभारत तो कुछ ऐसे ही घटनाक्रमों की पुनरावृति कर रही है।