लखनऊ।
बीते पांच साल से लगातार हार का स्वाद चख रही बहुजन समाज पार्टी को सपा परिवार में चल रहे संग्राम से संजीवनी मिल गयी है। पार्टी के बेस वोट बैंक के साथ ही मुस्लिमों का रूझान भी बसपा की ओर इधर बीच बढा है। मुस्लिमों को अपने साथ जोडने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने भाजपा के खिलाफ हमले और तेज कर दिये है। जिससे मुस्लिमों को यह आभास हो जाए कि भाजपा को हराने में बसपा की सक्षम है।
2012 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद बसपा के समक्ष अपने बेस दलित वोट बैंक को सहेजने की सबसे बडी चुनौती बन गयी थी। क्योंकि 2014 के लोक सभा चुनाव में इस वोट बैंक में बसपा सेंध लगाने में कामयाब रही। इसी कारण बसपा का इस चुनाव में खाता नहीं खुला। इसकेे अलावा बीते कई माह से बसपा के कई मजबूत नेताओं ने पार्टी का दामन छोड भाजपा में शामिल हो गये। इससे भी बसपा का जनाधार कमजोर होने लगा था। लेकिन बीते दो माह से सपा परिवार में छिडे महासंग्राम ने बसपा की उम्मीदें बढा दी। जो बसपा अपने नेताओं एवं बेस वोट बैंक में सेंध को रोकने के लिए परेशान थी। वहीं आज फाम में आ गयी। क्योंकि सपा की सबसे बडी ताकत मुस्लिम मतदाता थे। जो आज सपा परिवार में छिडे महा संग्राम से दूर हो रहा है। यूपी में कांग्रेस का कोई खास जनाधार नहीं है। इसलिए मुस्लिमों के समक्ष एक मात्र विकल्प बसपा ही बचता था। क्योंकि यूपी में जो हालात बन रहे है उसे देख कर यह लगता है कि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र की अधिकांश सीटों पर भाजपा का मुकाबला बसपा से ही होगा।
जातिगत राजनीति में माहिर बसपा सुप्रीमो मायावती ने पहले से मुस्लिम बाहुल क्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अधिकांश सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी ही उतारे है। इसके अलावा मायावती ने आगरा, आजमगढ, सहारनपुर , लखनऊ में जो चुनावी रैलियां की है। इन क्ष्ेात्रों में दलितों के साथ मुस्लिमों की ठीक ठाक आबादी है। बसपा को मालूम है कि पार्टी के पास करीब 23 प्रतिशत वोट दलितों का है। इसके साथ ही प्रदेश में करीब 20 प्रतिशत आबादी मुस्लिमों की है। ऐसे में यदि बसपा के साथ दलित एवं मुस्लिम आ गया तो पार्टी अप्रत्याशित परिणाम ला सकेगी। पूर्वाचंल में मुस्लिमों को जोडने के लिए बसपा पांच नवम्बर को बलरामपुर तथा छह को प्रतापगढ में सम्मेलन करने जा रही है।
पार्टी की नजर दलित मुस्लिमों के साथ ही ब्राम्हण समाज पर भी है। क्योंकि प्रदेश का करीब दस प्रतिशत यह वोट बैंक पूर्व में बसपा का समर्थन कर चुका है। इसलिए बसपा इस वर्ग को भी आकर्षित करना चाह रही है। ब्राम्हणों को पार्टी से जोडने के लिए बसपा अगले माह करीब दस ब्राम्हण सम्मेलन करने जा रही है। इन सम्मेलनो में बसपा महासचिव एवं सांसद सतीश चन्द्र मिश्र बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे। यह सम्मेलन नवम्बर माह में 11 को कानपुर, 12 को कन्नौज में, 13 को औरैया, 18 को लखनऊ में, 20 को सीतापुर में, 25 को उन्नाव तथा 26 नवम्बर को जालौन में होंगे। इसके अलावा बसपा सुप्रीमो के निर्देश पर पार्टी के विधानसभा क्षेत्र के प्रत्याशी एवं कोर्डीनेटर अलग अलग भाई चारा बैठकें कर रहे है।
सपा परिवार में संग्राम को देख बसपा सुप्रीमो मायावती ने भाजपा के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला तेज कर दिया है। पार्टी मुख्यालय द्वारा कभी कभार मीडिया के लिए जारी होने वाला प्रेसनोट अब औसतन रोज ही जारी हो रहा है। इसमें सपा एवं कांग्रेस का नाम तक नहीं होता लेकिन भाजपा के खिलाफ तीखा हमला होता है। इसके अलावा सपा सरकार की सबसे कमजोर कब्ज प्रदेश की लचर कानून व्यवस्था है। बसपा शासनकाल में पार्टी सुप्रीमो मायावती कानून व्यवस्था को चुस्त दुरूस्त रखती थी। ऐसे में बसपा को सत्ता विरोधी लाभ का भी फायदा मिल सकता है।
28th October, 2016