लखनऊ
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समाजवादी पार्टी के बडे नेता भले ही परिवार एवं पार्टी एक होने का दावा कर रहे हो। लेकिन परिवार मेें छिडा संग्राम अंदर ही अंदर सुलग रहा है। इसका असर अब दूर दराज के आम कार्यकर्ताओं में देखने को मिल रहा है। यह गुट बाजी जमीनी स्तर पर पहुंच गयी है। इसके अलावा परिवार के दोनों गुट अब शक्ति प्रदर्शन करने की तैयारी कर रहे है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव रथयात्रा निकालने तो प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव रजत जयंती समारोह का आयोजन करने जा रहे है।
सपा संग्राम के बाद अब दोनों ही गुट शक्ति प्रदर्शन के जरिये एक दूसरे को अपनी ताकत का एहसास कराके परास्त करना चाहते है। पार्टी के 25 साल पूरे होने पर आगामी पांच नवम्बर को रजत जयंती समारोह का आयोजन किया गया है। इस पूरे कार्यक्रम में की जिम्मेदारी सपा प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव देख रहे है। कार्यक्रम की भव्यता के लिए वह पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह, गांधी वादी एवं प्रखर समाजवादी डा राम मनोहर लोहिया के अनुयाईयों को एक मंच पर लाना चाहते है। इसके लिए वह जनता दल यू के अध्यक्ष एवं बिहार के सीएम नितीश कुमार, रालोद सुप्रीमो चौ अजित सिंह तथा एचडी देवगौढा को भी इस कार्यक्रम में लाना चाहते है। इस समारोह को बडे पैमाने पर आयोजित करके यूपी में एक महा गठबंधन बनाने की तैयारी चल रही है। हालाकि यूपी में महागठबंधन बनना आसान नहीं है। क्योकि जिन दलों को सपा इस कार्यक्रम में आमंत्रित कर रही है। उनमें रालोद को छोड दे तो किसी के पास कोई वोट बैंक नहीं है। इसके बावजूद इनके सपने काफी बडे है। लेकिन सपा गठबंधन के जरिये प्रदेश में भाजपा एवं बसपा को मात देना चाहती है। इसका पूरा ताना बाना शिवपाल यादव बुन रहे है।
वहीं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की प्रदेश अध्यक्षी जाने के बाद संगठन में पकड कुछ कमजोर हुई है। लेकिन उनका सरकार पर एक छत्र कब्जा है। अखिलेश यादव आगामी तीन नवम्बर से रथ यात्रा आरंभ करने जा रहे है। इस यात्रा में वह अपने बीते पांच साल के विकास कार्यो को जनता को गिनाकर उसका दिल जीतने की कोशिश करेंगे। इस यात्रा को सफल बनाने के लिए अखिलेश इन दिनों अपने समर्थकों के साथ बैठकें कर रहे है। वह इस यात्रा के जरिये परिवार के अपने विरोधियों को ताकत का ऐहसास कराना चाहते है।
वहीं सपा परिवार में छिडे संग्राम का असर अब आम कार्यकर्ताओं तक पहुंच गया है। बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एवं प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव को लेकर लाबिंग हो रही है। एक दूसरे का विरोध करने पर उतर आये है। वहीं 2012 के चुनाव में हारी सीटों पर घोषित प्रत्याशी अब पूरी तरह से आशंकित है उन्हें अपने टिकट कटने का खतरा मडरा रहा है। इस तरह सपा में बीते दो माह से छिडा विवाद शांत नहीं हुआ है बल्कि बढा है। परिवार के नेताओं का विवाद अब आम समर्थकों एवं कार्यकर्ताओं तक पहुच गया है। इसका नुकसान सपा को आगामी विधानसभा चुनाव में उठाना पड सकता है।
29th October, 2016