विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया)
लखनऊ।
समाजवादी पार्टी के 25वें स्थापना दिवस पर मुलायम सिंह यादव का मौन राष्ट्रीय क्षितिज पर बहुत कुछ संदेश दे गया। पारिवारिक कलह पर भाई-भतीजे की रार को दरकिनार कर मुलायम सिंह यादव ने देश भर के समाजवादियों की मौजूदगी में बहुत ही खूबसूरती से राजनीतिक विरासत सौंपते हुए सभी का आर्शिवचन भी दिला दिया। सपा की स्थापना समारोह में समाजवादियों की एकजुटता तथा नये गठबंधन की कोई नही दिशा आैर पहल तो नही दिखी परन्तु अखिलेश का राष्ट्रीय स्तर पर समाजवादी स्वीकार्यता ने राष्ट्रीय राजनीति में नया आयाम किया। इस पूरे प्रकरण में पारिवारिक कलह का दुखड़ा रोने वाले शिवपाल यादव एक बार फिर से अपनी राजनीतिक महत्वाकांछा तथा कमजोरियों का शिकार हो गये जिससे जनता में उनकी छवि आैर खराब बनी। यहां तक कि संगठन में भी शिवपाल की जड़ लगातार कमजोर होती जा रही है। मुलायम सिंह यादव के अपमान की बात कहकर शिवपाल लगातार पारिवारिक खटास को ही उभारते रहे जबकि प्रदेश भर से आयी समाजवादी भीड़ अखिलेश के नारों से अपनी मंशा को साफ उजागर कर रही थी। इस भीड़ ने अखिलेश की लोकप्रियता के मामले में मुलायम सिंह यादव को भी पीछे छोड़ दिया। भीड़ का अन्दाज देखकर ही मंच पर मौजूद सभी बड़े नेताओं ने अखिलेश को भी बधाई देने में कोताही नही की।
चचा-भतीजे की नही मिटी दूरियां--
मुलायम सिंह यादव के तमाम प्रयासों के बाद भी चचा शिवपाल तथा भतीजे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बीच चल रही तल्ख आज आैर भी उभरकर सामने आ गयी। हालांकि राजद नेता लालू सिंह यादव ने चचा-भतीजे में एका कराने का बहुत प्रयास किया आैर मंच से कहकर अखिलेश से शिवपाल का पैर छुववाया परन्तु मंच पकड़ते ही शिवपाल ने अपनी ही रौ में अखिलेश पर करारे हमले करने शुरु कर दिया। शिवपाल के पूरे भाषण पर उनकी राजनीतिक महत्वाकांछा के साथ ही मंत्रिमंडल से निकाले जाने की पीड़ा ही झलक रही थी जबकि वह पद के लालच में न पड़ने की बात कहते रहे। शिवपाल के प्रहार का अखिलेश ने बड़े ही परिमार्जित ढ़ग से जवाब देते हुए पिता को अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश दिया कि जब तलवार दिया है तो चलाने का भी आदेश दें। समाजवादी कार्यक्रम में संयोजक गायत्री प्रजापति ने चचा-भतीजे को एक-एक तलवार सौंपी तो दोनों ही लहराते हुए उसके वार को जैसे तैयार बैठे थे।
गठबंधन से पहले ही खींचतान--
स्थापना दिवस पर मुलायम सिंह यादव विधानसभा चुनाव में पुराने सभी समाजवादियों एवं चौधरी चरण सिंह समर्थकों को एकजुट कर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी नयी पहचान बनाना चाहते थे। इसके लिए देवगौड़ा, शरद यादव तथा लालू यादव आैर अजित सिंह को आमन्त्रित किया गया था। यूपी की राजनीति में देवगौड़ा, शरद या लालू का कोई प्रभाव नही है। राजद से यदि कोई प्रभावी भूमिका निभा सकते थे तो वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार थे परन्तु वह नही आये। ऐसे में राजद का मुलायम के लिए सहयोग का वादा बेमतलब बन गया। बिहार चुनाव में जिस प्रकार मुलायम सिंह यादव ने गठबंधन को धत्ता बताकर सपा के प्रत्याशी खड़े किये, उसका काफी नकरात्मक संदेश गया। वैसे भी गठबंधन की राजनीति में मुलायम सिंह का व्यवहार हमेशा से ही अविश्वसनीय रहा है आैर मौके से पाला बदल कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने में रहते है। मुलायम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर अन्य कई नेताओं को भी मौके से धोखा दे चुके है। इसकी मिसाल लालू आैर शरद यादव भी है। ऐसे में मुलायम का इन नेताओं से विश्वास हासिल करना आसान नही होगा।
गठबंधन की चर्चा के बीच पहली बैठक में ही मंच से विरोध के स्वर भी दिखायी दिये। रालोद नेता अजित सिंह प्रदेश की राजनीति में अलग-थलग पड़े हुए है आैर हर दल से गठबंधन की बात चलाकर वह किनारे हो गये है। ऐसे में समाजवादी पार्टी की कलह को देखते हुए अजित ने एक बार फिर डोरा डाला परन्तु मंच से यह कहने से नही चुके कि गठबंधन के लिए नेता जी को बड़ा दिल करना होगा। इसमें किसी को भी निजी स्वार्थ को छोड़ना होगा। अजित सिंह ने साफ कर दिया कि गठबंधन में वह अच्छी सीटों की मांग करेंगे।
समाजवादी पार्टी के 25वें स्थापना दिवस पर मुलायम सिंह यादव का मौन राष्ट्रीय क्षितिज पर बहुत कुछ संदेश दे गया। पारिवारिक कलह पर भाई-भतीजे की रार को दरकिनार कर मुलायम सिंह यादव ने देश भर के समाजवादियों की मौजूदगी में बहुत ही खूबसूरती से राजनीतिक विरासत सौंपते हुए सभी का आर्शिवचन भी दिला दिया। सपा की स्थापना समारोह में समाजवादियों की एकजुटता तथा नये गठबंधन की कोई नही दिशा आैर पहल तो नही दिखी परन्तु अखिलेश का राष्ट्रीय स्तर पर समाजवादी स्वीकार्यता ने राष्ट्रीय राजनीति में नया आयाम किया। इस पूरे प्रकरण में पारिवारिक कलह का दुखड़ा रोने वाले शिवपाल यादव एक बार फिर से अपनी राजनीतिक महत्वाकांछा तथा कमजोरियों का शिकार हो गये जिससे जनता में उनकी छवि आैर खराब बनी। यहां तक कि संगठन में भी शिवपाल की जड़ लगातार कमजोर होती जा रही है। मुलायम सिंह यादव के अपमान की बात कहकर शिवपाल लगातार पारिवारिक खटास को ही उभारते रहे जबकि प्रदेश भर से आयी समाजवादी भीड़ अखिलेश के नारों से अपनी मंशा को साफ उजागर कर रही थी। इस भीड़ ने अखिलेश की लोकप्रियता के मामले में मुलायम सिंह यादव को भी पीछे छोड़ दिया। भीड़ का अन्दाज देखकर ही मंच पर मौजूद सभी बड़े नेताओं ने अखिलेश को भी बधाई देने में कोताही नही की।
मुलायम सिंह यादव के तमाम प्रयासों के बाद भी चचा शिवपाल तथा भतीजे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बीच चल रही तल्ख आज आैर भी उभरकर सामने आ गयी। हालांकि राजद नेता लालू सिंह यादव ने चचा-भतीजे में एका कराने का बहुत प्रयास किया आैर मंच से कहकर अखिलेश से शिवपाल का पैर छुववाया परन्तु मंच पकड़ते ही शिवपाल ने अपनी ही रौ में अखिलेश पर करारे हमले करने शुरु कर दिया। शिवपाल के पूरे भाषण पर उनकी राजनीतिक महत्वाकांछा के साथ ही मंत्रिमंडल से निकाले जाने की पीड़ा ही झलक रही थी जबकि वह पद के लालच में न पड़ने की बात कहते रहे। शिवपाल के प्रहार का अखिलेश ने बड़े ही परिमार्जित ढ़ग से जवाब देते हुए पिता को अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश दिया कि जब तलवार दिया है तो चलाने का भी आदेश दें। समाजवादी कार्यक्रम में संयोजक गायत्री प्रजापति ने चचा-भतीजे को एक-एक तलवार सौंपी तो दोनों ही लहराते हुए उसके वार को जैसे तैयार बैठे थे।
स्थापना दिवस पर मुलायम सिंह यादव विधानसभा चुनाव में पुराने सभी समाजवादियों एवं चौधरी चरण सिंह समर्थकों को एकजुट कर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी नयी पहचान बनाना चाहते थे। इसके लिए देवगौड़ा, शरद यादव तथा लालू यादव आैर अजित सिंह को आमन्त्रित किया गया था। यूपी की राजनीति में देवगौड़ा, शरद या लालू का कोई प्रभाव नही है। राजद से यदि कोई प्रभावी भूमिका निभा सकते थे तो वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार थे परन्तु वह नही आये। ऐसे में राजद का मुलायम के लिए सहयोग का वादा बेमतलब बन गया। बिहार चुनाव में जिस प्रकार मुलायम सिंह यादव ने गठबंधन को धत्ता बताकर सपा के प्रत्याशी खड़े किये, उसका काफी नकरात्मक संदेश गया। वैसे भी गठबंधन की राजनीति में मुलायम सिंह का व्यवहार हमेशा से ही अविश्वसनीय रहा है आैर मौके से पाला बदल कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने में रहते है। मुलायम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर अन्य कई नेताओं को भी मौके से धोखा दे चुके है। इसकी मिसाल लालू आैर शरद यादव भी है। ऐसे में मुलायम का इन नेताओं से विश्वास हासिल करना आसान नही होगा।
5th November, 2016