यूरिड मीडिया:-
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अचानक नोट बन्दी के निर्णय से उत्तर प्रदेश में 2017 विधानसभा चुनाव में राजनीतिक समीकरण गड-मड हो गया है। समाजवादी पार्टी, बसपा, भाजपा, कांग्रेस आैर छोटे दल सभी 31 दिसम्बर के बाद का इंतजार कर रहे है। पिछले 10 नवम्बर से लाईनों में लगे लोग की मंशा को भापने में नेता अभी तक सफल नही दिखाई दे रहे हैं। नोट बन्दी के पहले जिस तरह से चुनावीं सरगर्मियां थी उन पर भी विराम लगा है। रैलियों, यात्राओं आैर गाडि़यों के काफिलें में कमी आयी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कालाधन रखने वालों पर कारवाई करके जनता के बीच में यह संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं कि भाजपा भ्रष्टचारियों पर कड़ी कारवाई कर रही है। विरोध करने वाले भ्रष्टाचारियों के समर्थक है। प्रधानमंत्री प्रतिदिन कहीं-कहीं रैलियों आैर अपने मन की बात के माध्यम से जनता के बीच सीधा संवाद कर रहे हैं। जनता को यह बताने का प्रयास कर रहे है कि नोट बन्दी का कदम देश हित में है। इससे जनता को परेशानी हो रही है लेकिन आने वाले दिनों में गरीबों को इसका लाभ मिलेगा। भाषणों के माध्यम से नोट बन्दी को गरीबों अौर अमीरों में बांटने का प्रयास भी कर रहे है। भाजपा को लाईनों में लगे जनता के आक्रोश का एहसास भी हो गया है। इसलिए लाईनों को कम करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा कई तरह के रियायतें आैर भविष्य में बेहत्तर हालात के आश्वासन दे रहे हैं,लेकिन इस सबके बावूजद भी 8 नवम्बर के पहले की चुनावी तैयारियों आैर भाजपा कार्यकर्त्ताओं में उत्साह था वह अब बदला हुआ नजर आ रहा है।
सपा की परिवारिक लड़ाई अभी भी थमने का नाम नही ले रही है। टिकट बंटवारे को लेकर चल रही खींचतान में अभी भी चाचा-भतीजा आमने-सामने है। कहने के लिए तो विराम लग गया है लेकिन एैसा नही है। नोट बन्दी ने समाजवादी पार्टी के रथ के पहियें पर भी ब्रेक लगा दी है। जिस जोर-शोर से विकास के नाम पर रथ यात्रा की तैयारी थी, वह रूक गयी है। पांच साल तक सत्ता में रहने के बाद अरबों-खरबों की कमाई करने वाले समाजवादी पार्टी के नेता, मंत्री एवं विधायक बड़े नोटों को ठीकाने लगाने में लगे हैं। इन नेताओं की प्राथमिकताएं बदल गयी हैं। नोट बन्दी के पहले जिस तरह से होडिंग, बैनर, पोस्टर, रैलियां, एवं गाड़ियों के काफिले से जनता में सत्ता की धमक दिखाकर मतदाताओं को लुभाने का प्रयास कर रहे थे वह सभी नेता अपने कालेधन को तरह-तरह के हठकन्डे अपना कर सफेद करने मे जुटे हैं।
पांच साल तक सत्ता में रहने के बाद अरबों-खरबों की कमाई करने वाले समाजवादी पार्टी के नेता, मंत्री एवं विधायक बड़े नोटों को ठीकाने लगाने में लगे है इन नेताओं की प्राथमिकताएं बदल गयी हैं। नोट बन्दी के पहले जिस तरह से होडिंग, बैनर, पोस्टर, रैलियां, एवं गाड़ियों के काफिले से जनता में सत्ता की धमक दिखाकर मतदाताओं को लुभाने का प्रयास कर रहे थे वह सभी नेता अपने कालेधन को तरह-तरह के हठकन्डे अपना कर सफेद करने मे जुटे हैं। इन खरबपती नेताओं पर नोट बन्दी का एेसा असर दिखाई दे रहा है कि चुनाव के पहले ही हतोत्साहित होकर हार मान चुके हैं।
बसपा पर नोटबंदी का ऐसा प्रभाव पड़ा है मायावती सुबह से लेकर शाम तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कोस रही हैं। हालांकि प्रधानमंत्री के खिलाफ बोलते समय वह यह सावधानी बरतती हैं कि उनके बयान से ऐसा कतई न लगे कि बसपा भ्रष्टाचारियों के साथ खड़ी है। 8 नवम्बर के पहले मायावती ने टिकट बंटवारे का जो समीकरण बनाया था। नोट बन्दी से माया उसमें बदलाव लाने के लिए मजबूर हो गयी। बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या, बृजेश पाठक व अन्य नेताओं ने टिकट को बेचने का जो आरोप लगाया था नोट बन्दी के बाद बसपा में हुई हल-चल ने उसे सही भी साबित कर दिया। बसपा प्रत्याशी नोटों की गड्डियां लेकर काले को सफेद करने में लगे हुए है। प्रत्याशी खुद ही बोल रहे है कि टिकट के लिए नये नोट कैसे लायें। 2017 को लेकर बसपा मुखिया मायावती जिस तरह से समाजवादी पार्टी की सरकार कानून व्यवस्था आैर परिवारिक लड़ाई को लेकर आक्रमक थी नोट बन्दी से उसमें बदलाव आया, सपा से ज्यादा प्रधानमंत्री पर तीखेे हमले कर रही है।
कांग्रेस नोटबंदी के बाद लगता है चुनाव के पहले ही मैदान से बाहर हो गयी है। जिस जोश खरोस से राहुल गांधी के नेतृत्व में प्रदेश के 55 लोकसभा के 235 विधानसभा से होकर 40 दिनों तक जनता को जोड़ने के लिए जन-जागरण शुरु किया था उससे कार्यकर्त्ता उत्साहित थे। जनता में चर्चा भी हो रही थी। नोट बन्दी ने कांग्रेस के यात्राओं एवं चर्चाओं पर विराम लगा दिया है। हतोत्साहित नेता अब बैशाखी के सहारे चुनाव वैतरणी पार करना चाहते हैं। इसलिये मुलायम सिंह के मना करने के बाद भी बार-बार चुनाव गठ-बन्धन की चर्चा हो रही है।
अजीत सिंह व अन्य छोटे दल 2017 चुनाव को लेकर जो तैयारियां कर रहे थे नोट बन्दी ने उसमें बदलाव लाने के लिए मजबूर कर दिया है।
कुल मिलाकर नोट बन्दी ने सभी राजनीतिक दलों के चुनावीं तैयारियों आैर समीकरण बदल दिये है। विधानसभा चुनाव 2017 को लेकर की गयी तैयारियों में सभी दलों को बदलाव लाना पड़ रहा है आैर 31 दिसम्बर का इंतजार कर रहे है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अचानक नोट बन्दी के निर्णय से उत्तर प्रदेश में 2017 विधानसभा चुनाव में राजनीतिक समीकरण गड-मड हो गया है। समाजवादी पार्टी, बसपा, भाजपा, कांग्रेस आैर छोटे दल सभी 31 दिसम्बर के बाद का इंतजार कर रहे है। पिछले 10 नवम्बर से लाईनों में लगे लोग की मंशा को भापने में नेता अभी तक सफल नही दिखाई दे रहे हैं। नोट बन्दी के पहले जिस तरह से चुनावीं सरगर्मियां थी उन पर भी विराम लगा है। रैलियों, यात्राओं आैर गाडि़यों के काफिलें में कमी आयी है।
पांच साल तक सत्ता में रहने के बाद अरबों-खरबों की कमाई करने वाले समाजवादी पार्टी के नेता, मंत्री एवं विधायक बड़े नोटों को ठीकाने लगाने में लगे है इन नेताओं की प्राथमिकताएं बदल गयी हैं। नोट बन्दी के पहले जिस तरह से होडिंग, बैनर, पोस्टर, रैलियां, एवं गाड़ियों के काफिले से जनता में सत्ता की धमक दिखाकर मतदाताओं को लुभाने का प्रयास कर रहे थे वह सभी नेता अपने कालेधन को तरह-तरह के हठकन्डे अपना कर सफेद करने मे जुटे हैं। इन खरबपती नेताओं पर नोट बन्दी का एेसा असर दिखाई दे रहा है कि चुनाव के पहले ही हतोत्साहित होकर हार मान चुके हैं।
बसपा पर नोटबंदी का ऐसा प्रभाव पड़ा है मायावती सुबह से लेकर शाम तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कोस रही हैं। हालांकि प्रधानमंत्री के खिलाफ बोलते समय वह यह सावधानी बरतती हैं कि उनके बयान से ऐसा कतई न लगे कि बसपा भ्रष्टाचारियों के साथ खड़ी है। 8 नवम्बर के पहले मायावती ने टिकट बंटवारे का जो समीकरण बनाया था। नोट बन्दी से माया उसमें बदलाव लाने के लिए मजबूर हो गयी। बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या, बृजेश पाठक व अन्य नेताओं ने टिकट को बेचने का जो आरोप लगाया था नोट बन्दी के बाद बसपा में हुई हल-चल ने उसे सही भी साबित कर दिया। बसपा प्रत्याशी नोटों की गड्डियां लेकर काले को सफेद करने में लगे हुए है। प्रत्याशी खुद ही बोल रहे है कि टिकट के लिए नये नोट कैसे लायें। 2017 को लेकर बसपा मुखिया मायावती जिस तरह से समाजवादी पार्टी की सरकार कानून व्यवस्था आैर परिवारिक लड़ाई को लेकर आक्रमक थी नोट बन्दी से उसमें बदलाव आया, सपा से ज्यादा प्रधानमंत्री पर तीखेे हमले कर रही है।
कांग्रेस नोटबंदी के बाद लगता है चुनाव के पहले ही मैदान से बाहर हो गयी है। जिस जोश खरोस से राहुल गांधी के नेतृत्व में प्रदेश के 55 लोकसभा के 235 विधानसभा से होकर 40 दिनों तक जनता को जोड़ने के लिए जन-जागरण शुरु किया था उससे कार्यकर्त्ता उत्साहित थे। जनता में चर्चा भी हो रही थी। नोट बन्दी ने कांग्रेस के यात्राओं एवं चर्चाओं पर विराम लगा दिया है। हतोत्साहित नेता अब बैशाखी के सहारे चुनाव वैतरणी पार करना चाहते हैं। इसलिये मुलायम सिंह के मना करने के बाद भी बार-बार चुनाव गठ-बन्धन की चर्चा हो रही है।
अजीत सिंह व अन्य छोटे दल 2017 चुनाव को लेकर जो तैयारियां कर रहे थे नोट बन्दी ने उसमें बदलाव लाने के लिए मजबूर कर दिया है।
कुल मिलाकर नोट बन्दी ने सभी राजनीतिक दलों के चुनावीं तैयारियों आैर समीकरण बदल दिये है। विधानसभा चुनाव 2017 को लेकर की गयी तैयारियों में सभी दलों को बदलाव लाना पड़ रहा है आैर 31 दिसम्बर का इंतजार कर रहे है।
कुल मिलाकर नोट बन्दी ने सभी राजनीतिक दलों के चुनावीं तैयारियों आैर समीकरण बदल दिये है। विधानसभा चुनाव 2017 को लेकर की गयी तैयारियों में सभी दलों को बदलाव लाना पड़ रहा है आैर 31 दिसम्बर का इंतजार कर रहे है।
13th December, 2016