उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 का सबसे बड़ा सर्वे
यूरिड मीडिया ग्रुप:-
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 को लेकर प्रदेश के सभी 403 विधानसभाओं में पांच-पांच सौ विभिन्न जाति व धर्म के मतदाताओं से उनकी राय जानी। मतदाताओं ने बड़े ही बेबाकी से अपनी राय व्यक्त किया है। सर्वे में मतदाताओं की राय गत सात विधानसभा चुनाव 1989, 1991, 1993, 1996, 2002, 2007 एवं 2012 चुनाव परिणामों के विश्लेषण से राजनीतिक स्थिति एक दम स्पष्ट दिखायी दे रही है। जाति-धर्म में बंटे मतदाताओं की राय से यह सुनिश्चित लगता है कि लड़ाई और त्रिकोणत्मक बहुमत की सरकार की कमान (फ्लोटिंग) मतदाताओं के हाथ में होगी।
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार जून से लेकर अक्टूबर तक देश में घटे राजनीतिक घटना-क्रम के बाद भी जातीय समीकरण की जड़ आज भी बहुत गहरी है। दलित मतदाता बसपा के साथ मजबूती के साथ जुड़ा हुआ है। यही नहीं बसपा छोड़कर जाने वाले नेताओं के मायावती पर तानाशाही व टिकट बेचने जैसे आरोपों से दलित मतदाता टूटा नहीं बल्कि एकजुट हुआ है।
समाजवादी पार्टी में चाचा-भतीजे के सत्ता संघर्ष में यादव समुदाय एकजुटता के साथ सपा के संग खड़ा है। उसे मुलायम सिंह यादव से शिकायत जरूर है कि निर्णय लेने में देरी से सपा का समर्थन घटा है। भारतीय जनता पार्टी प्रदेश के जातीय समीकरण को समझती है। इसीलिए कहने को तो विकास का नारा सर्जिकल स्टाइक, भ्रष्टाचार, कालाधन पर अंकुश जैसे तमाम मुद्दे उछाल रही है, लेकिन चुनावी तैयारी जातीय एवं धार्मिक ध्रुव्रीकरण के ही आस-पास पर टिकी है।
1989 से ही सत्ता से बाहर कांग्रेस भी उत्तर प्रदेश के चुनाव में जातीय ध्रुव्रीकरण को स्वीकार कर चुकी है। यही कारण है कि 27 साल यूपी बेहाल का नारा देकर राहुल गांधी के नेतृत्व में यात्राओं के माध्यम से जन-सम्पर्क करने वाली कांग्रेस का पूरा चुनावी ताना-बाना भी जातीय समीकरण पर बुना हुआ है। कांग्रेस जानती है कि दलित बसपा, पिछड़े सपा के मतदाता हैं। इसलिए सर्वण एजेंडा चलाया जाना है। ब्राह्मण नेता के रूप में शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित किया, प्रचार की कमान राजपूत नेता संजय सिंह को सौंपी। इसके पीछे कांग्रेस की रणनीति है कि सर्वण जोड़ने से अल्पसंख्यकों का समर्थन मिलेगा। छोटे-छोटे दल की अपनी सियासत का खाका जातीय व धार्मिक के आस-पास खोज रहे हैं।
देश के सबसे बड़े सूबे की 403 विधानसभा सीटों का समीकरण भी अलग-अलग है और चुनाव में मतदाताओं की रूझान भी अलग ही है। यूरिड ने मतदाताओं के राय एवं चुनावी आंकड़ों का विश्लेषण सूक्ष्मता व निष्पक्षता से किया है। जिसमें 2017 की झलक स्पष्ट दिखायी दे रही है। पहला भाजपा, कांग्रेस, सपा व बसपा एक दूसरे पर भ्रष्टाचार, अपराध व विकास को लेकर आरोप प्रत्यारोप चाहे जो लगाएं, लेकिन सभी चुनाव की तैयारियों के मूल जड़ में जातीय व धार्मिक ध्रुव्रीकरण ही है।
15th December, 2016