यूरिड मीडिया:-
सर्वे में सितम्बर से अक्टूबर तक प्रत्येक विधानसभा से 50 मतदाताओं की राय ली गयी। सर्वे में सभी जाति, धर्म एवं ग्रामीण, शहरी-विभिन्न आयु वर्ग को शामिल किया गया। मतदाताओं की राय के साथ-साथ गत सात चुनावों के आंकड़े एवं वर्तमान राजनीतिक माहौल तथा जाति/धर्म के अनुसार राजनीतिक दलों द्वारा की जा रही चुनावी तैयारियों का भी सूक्ष्मता से विश्लेषण किया गया। 1997 से लेकर विभिन्न चुनावों में किये गये सर्वे के पणिाम सच के काफी करीब रहे हैं। सर्वे में हम मतदाताओं की राय के साथ-साथ प्रत्येक विस के चुनावी ट्रेंड/जातीय, संख्या एवं प्रत्याशियों की छवि को भी केन्द्र में रखा गया है।
भारतीय जनता पार्टी:-
जून 2016 के सर्वे में 23 प्रतिशत मतदाताओ ने भाजपा के पक्ष में राय दिया था। यह अक्टूबर में बढ़कर 26 प्रतिशत हो गया। तीन प्रतिशत तुलानात्मक बढ़ोत्तरी भी भाजपा को पूर्ण बहुमत सरकार बनाने से काफी दूर है। भाजपा इन आंकड़ों से 5-6 प्रतिशत ’फ्लोटिंग“ मतदाताओं को कैसे अपने में जोड़ती है यह आने वाले दिनों एवं मतदान के दौरान स्पष्ट हो जाएगा। सर्वे में भाजपा के पुराने चुनावी रिकार्ड को देखें तो लगता है कि भाजपा लहरों की तरह चलने वाला राजनीतिक दल है। लहर की तरह किसी चुनाव में ऊचांईया मिली तो दूसरे चुनाव में वह धरातल पर पहुंच गयी। इसका एक उदाहरण यह भी है कि 1974 में भाजपा को उत्तर प्रदेश में 17.60 प्रतिशत मत और 61 सीटे मिलीं थीं, जबकि 1991 मेें 33 प्रतिशत एवं 221 विधायको के साथ बहुमत की सरकार बनायी।
दूसरी तरफ 2012 में 15 प्रतिशत मत एवं 47 सीट तक सिमट कर रह गयी। भाजपा अपनी स्थापना के बाद नरेन्द्र मोदी की बोल पर पहली बार केन्द्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी। जिसमें उत्तर प्रदेश के 73 सांसदों का अप्रत्याशित योगदान है, लेकिन भाजपा को लोकसभा चुनाव की सफलता पर गलत फहमी नहीं होनी चाहिए। 1989 में इन्दिरागांधी की हत्या के बाद सहानुभूति में कांग्रेस को 83 सीटें मिलीं थीं, लेकिन विधानसभा में यह सीटें सिमट गयी, जबकि इस समय कांग्रेस के सामने विपक्ष काफी कमजोर था। भाजपा भी मोदी की बोल पर 73 सासदों ने अप्रत्याशित जीत हासिल किया, लेकिन विधानसभा चुनाव फिर भाजपा मोदी के ही चेहरे पर लड़ने जा रही है। क्या होता है अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।
सर्वे में मतदाताओं में तीन प्रतिशत बढ़ोत्तरी का विश्लेषण करने पर भाजपा की चुनावी रणीनीति स्पष्ट दिखाई दे रही है। कहने के लिए भाजपा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में विकास और नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर लड़ेगी, लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है। भाजपा के रणनीतिकार जानते है कि उत्तर प्रदेश में विकास के मुद्दे पर चुनाव नहीं जीता जा सकता। ढाई वर्ष के सरकार के कार्यकाल में मोदी जी कोई विकास का ऐसा मॉडल उप्र में नहीं बना पाए। जिस पर मतदाता भरोसा कर सकें। भाजपा की वास्तविक रणनीति जाति एवं धार्मिक ध्रुवीकरण को अपनाना ही लक्ष्य हैं। सर्वे के दौरान भाजपा नेताओं एवं कार्यकर्ताओं का भाषण और पार्टी कार्यक्रम पूरी तरह से जाति आधारित एवं धार्मिक ध्रुवीकरण की तरफ इशारा कर रहे है। इसलिए बीते तीन माह में मतदाताओं की भाजपा की तरफ 3 प्रतिशत बढोतरी हुई है।
उत्तर प्रदेश में 1989 के बाद से अभी तक के सभी चुनाव में जातीय समीकरण की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण रही। भाजपा की रणनीति बनाने वाले इसीलिए पूरा ताना-बाना जातीय समीकरण को केन्द्र में रखकर धार्मिक ध्रुवीकरण की तरफ बढ़ रहे हैं। भाजपा ने 54 प्रतिशत आबादी वाले अति-पिछड़ों में सेंध लगायी है यदि 54 प्रतिशत आबादी में यादव व कुर्मी को छोड़ दे तो भी 40 प्रतिशत अतिपिछड़ी जातियां है। इनमें 9 प्रतिशत मुस्लिम भी अतिपिछड़ी जाति में शामिल है। पिछड़े वर्गो के आरक्षण में 79 पिछड़ी जातियों में से सबसे अधिक यादव, फिर कुर्मी लाभ उठाये हैं, जबकि 40 प्रतिशत पिछड़ी जाति की आबादी लाभ से वंचित है।
भाजपा ने अति पिछड़ी जाति को जोड़ने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाया, बसपा के प्रभावशाली नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को भी शामिल करके बसपा के अतिपिछड़ों को तोड़ने का प्रयास किया। चुनावी आंकड़े गवाह है कि सपा एवं बसपा के अधार वोट बैंक में 7-8 प्रतिशत अतिपिछड़ी जातियां है। जिसके कारण सीट कम होने पर भी इनका मत प्रतिशत 25 एवं 26 प्रतिशत रहता है। अतिपिछड़ी जो जोड़ने के लिए विधानसभा वार अतिपिछड़ी सीट का सम्मेलन भी कर रहे है। भाजपा की अतिपिछड़ों की रणनीति सर्वे में धरातल पर कारगार होती भी दिख रही है।
वैसे भाजपा का दलित एजेन्डा मायावती के सामने बहुत कमजोर है। इसलिए भाजपा का अतिपिछड़ा व सवर्ण एजेंडा ही कारगार साबित हो सकता है। अतिपिछड़ों को महत्व देने के साथ ही अगड़ी जाति नाराज न हो इसलिए राज्यसभा सीट पर शिव प्रताप शुक्ला को भेजा। भाजपा के सभी 10 ब्राह्मण एवं 11 राजपूत सांसदों को जातीय समीकरण में कार्य करने की रणनीति बनायी गयी। जातीय एजेंडा को लेकर भाजपा सभी जातीयों के नेताओं के बीच से विधानसभास्तर पर सघन अभियान शुरू किया है। जातीय समीकरण के लिए बसपा के ब्रााह्मण चेहरा बृजेश पाठक को भाजपा में शामिल कर बसपा को कमजोर करने का प्रयास किया गया। बसपा में ब्राह्मण संगठन को मजबूत करने में बृजेश पाठक का काफी योगदान रहा है।
सर्वे के दौरान जनपदों में भाजपा के कार्यक्रमों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भाजपा जातीय समीकरण को जमीनी अमलीजामा पहना करके धार्मिक ध्रुवीकरण में जुट गयी है। भाजपा के रणनीतिकार जानते है कि पूर्ण की बहुमत की सरकार विकास नारे एवं मोदी के चेहरे पर नहीं, बल्कि जातीय-धार्मिक ध्रुवीकरण से ही बन सकती है। जातीय एवं धार्मिक ध्रुवीकरण कराने के लिए नेताओं की अलग-अलग टोली भी बनायी गयी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुज्जफरनगर काण्ड से लेकर शामली में पलायन का मुद्दा वरिष्ठ नेता सांसद हुकूम सिंह, पूर्वाचल में ध्रुवीकरण के लिए फायरब्रांड विनय कटियार, योगी आदित्यनाथ, बुन्देलखण्ड में उमा भारती की दी गयी। बयान बांकुरों को भी धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए लगा दिया गया। तीन तलाक, सर्जिकल स्ट्राट्रक, राममंदिर, हिन्दुओं का पलायन आदि मुद्दे धार्मिक ध्रुवीकरण की तरफ इशारा कर रहे है।
15th December, 2016