विजय शंकर पंकज ( यूरिड मीडिया )
लखनऊ।
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव से लेकर उनके मुख्यमंत्री बेटे अखिलेश यादव तक 17 पिछड़ी जाति के लोगों को अनुसूचित जाति का बनाने पर आमादा है। जातीय आरक्षण की इस समाजवादी मुहिम से इन 17 जातियों के लोगों को पिछले एक दशक से आरक्षण के लाभ से बंचित रहना पड़ रहा है। प्रदेश का सबसे ताकतवर यादवी परिवार पता नही किस कारणों से इन जातियों को पिछड़ा नही मानकर उन्हें अनुसूचित बनाने पर तुली हुई है। असल में पिछड़ा वर्ग का प्रदेश में सर्वाधिक लाभ यादव जाति को ही मिल रहा है आैर उसमें भी मुलायम सिंह यादव का परिवार सबसे उपर है। ऐेसे में पिछड़ा वर्ग से अन्य जातियों को निकाल कर यादवों को आैर ज्यादा लाभ दिये जाने की तैयारी की जा रही है। यही वजह है कि बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती इस समाजवादी फरमान पर उखड़ी हुई है। उन्हें पता है कि यादव परिवार किस मुहिम के तहत 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कराने को लेकर आमादा है।
पिछड़े वर्ग की 17 जातियों को अनुसूचित कोटे में शामिल करने की मांग 2004 में सपा के प्रजापति सम्मेलन में उभरकर आयी। सपा मुखिया तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री ने बड़ी ही चालाकी से इन 17 जातियों के मांग पत्र को लेकर विधानसभा से एक प्रस्ताव पारित कराकर केन्द्र सरकार को भेज दिया। राज्य सरकार यह जानती थी कि बिना केन्द्र की सहमति आैर संसद से प्रस्ताव पारित किये बगैर इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने को मंजूरी नही मिलेगी। चुनावी हथकंडे के तहत इन जाति के कुछ नेताओं को सरकार एवं संगठन में आगे लाकर यह समझाने का प्रयास किया गया कि अनुसूचित जाति में शामिल होने से उन्हें आरक्षण का ज्यादा लाभ मिलेगा। असल में पुरानी सामाजिक व्यवस्था में अनुसूचित जाति में कई जातियां तत्कालीन तौर पर अस्पृश्य मानी जाती थी जबकि पिछड़े वर्ग की इन 17 जातियों में कोई की इस कटगरी में नही आता है। मुलायम की इस मुहिम को केन्द्र ने ठुकरा दिया। तबसे यह 17 जातियां पिछड़े आैर अनुसूचित कोटे में आरक्षण को लेकर भटक रही है। इन्हें एक तरफ पिछड़े वर्ग का लाभ नही मिल रहा है तो अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र भी नही मिलता। इस प्रकार की समाजवादी मुहिम ने इन 17 जातियों को आरक्षण के चौराहे पर ला खड़ा कर दिया है। हालांकि दो वर्ष बाद ही प्रदेश में बसपा की सरकार बनते ही 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने पर यह मामला फिर से उठने लगा आैर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इसे लागू करने पर जोर देते रहे परन्तु पांच वर्ष की सरकार में तमाम सरकारी नियुक्तियों में इन जाति के लोगों को न तो पिछड़े वर्ग में आरक्षण मिला आैर नही अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र। अब जब फिर से चुनाव सामने है तो इन जातियों का हिमायती दिखाने के लिए विधानसभा से प्रस्ताव पारित कराकर केन्द्र सरकार को भेज दिया गया। सपा सरकार के इस निर्णय से दोनों ही तरफ से राजनीतिक लाभ है। केन्द्र से अनुमति न मिलने पर सपा सरकार कहेगी कि हमने तो अपना काम कर दिया लेकिन केन्द्र की भाजपा सरकार नही होने दे रही है। सपा का यह भी आरोप होगा कि भाजपा आैर बसपा नही चाहती कि गरीब पिछड़ो को आरक्षण का सही लाभ मिले। इस कड़ी में सपा सरकार पिछली केन्द्र सरकार के निर्णय न करने के मामले को भूला देना ही उचित समझेगी।
पिछड़ा-अनुसूचित का फुटबाल बनी 17 जातियां -
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कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोंड, मांझी आैर मछुआ।
23rd December, 2016