जिस अखिलेश यादव को कांग्रेसी मुलायम से अलग मान रहे थे, उनका भ्रम टीपू ने शुक्रवार को तोड़ दिया. अब लखनऊ के कांग्रेसी ये मान गए कि अखिलेश तो अपना राजनीतिक हित साधने में अपने पिता से चार कदम आगे हैं. जैसे ही अखिलेश यादव ने ताबड़तोड़ 209 लोगो की अपनी लिस्ट जारी की कांग्रेसियों की धड़कनें बढ़ गई. लखनऊ के पार्टी दफ्तर पर सभी सन्न हो गए. गठबंधन में टिकट फाइनल मानकर चल रहे नेताओं को तो जैसे काटो तो खून नहीं.
मथुरा में नॉमिनेशन के बाद तो जब ये बात कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रदीप माथुर से पूछी गई तो वो ये मानने को तैयार ही नहीं थे कि ऐसा कुछ हुआ है. वो बार-बार खुद को कांग्रेस और सपा का जॉइंट कैंडिडेट ही बताते रहे और पत्रकारो को कंफ्यूजन होने की बात करते रहे.
पार्टी दफ्तर में मौजूद नेता बताते रहे कि पिछले 100 दिन में कोई कांग्रेसी जनता के बीच गया ही नहीं. किसी ने कोई कार्यक्रम किया ही नहीं और वो अखिलेश से गठबंधन मानकर ही चलता रहा. सबसे खराब हालात उन नेताओं की है जो इस गठबंधन को पक्का मानकर चल रहे थे और पिछले कुछ दिनों से अखिलेश की मजबूरी का फायदा उठाकर बैतरणी पार करने का ख्वाब पाले बैठे थे. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता नाम न छापने की शर्त पर बतातें हैं कि कांग्रेस की हालात अखिलेश के इस धोबियापाट से ऐसी खराब हुई है कि पार्टी ऐसी रसातल में जा पंहुची है जहां से उठना भी फिलहाल मुमकिन नहीं है. यही वजह है कि जो कांग्रेस पिता-पुत्र के इस झगड़े में ज्यादा फायदा उठाने की फिराक में थी. वो समझौते के लिए अब 80 सीटों के आस-पास मान सकती है.
शुक्रवार को राजबब्बर पहले दफ्तर आए, जहां इस उम्मीद में रुके कि कोई बात हो जाएगी. एयरपोर्ट से कांग्रेस ने वापस लौटाया, तब भी इस उम्मीद में अपने घर करीब ढेड़ घंटे रुके कि शायद कोई बात बनेगी, लेकिन जब अखिलेश यादव ने कोई घास नहीं डाला तो बैरंग वापस हो गए. लखनऊ के कांग्रेसियों को अब आखिरी उम्मीद बाकी है और उम्मीद कर रहे हैं कि शायद 80 के आसपास कोई आखिरी समझौता हो जाए. वहीं समाजवादी पार्टी नेता किरणमय नंदा ने कहा है कि सपा कांग्रेस को 84-89 सीटें दे सकती है.
21st January, 2017